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International Yoga Day 2024: कैसे योग और आध्यात्म हैं एक दूसरे के पूरक, एक क्लिक में जानें सब कुछ

International Yoga Day 2024: वैसे तो अध्यात्म और योग दो अलग अलग विषय हैं। लेकिन यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दरअसल अध्यात्म का पथ प्रदर्शन योग की निरंतर साधना से ही संभव है।

International Yoga Day 2024: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है योग, आखिर क्यों है इसकी जरूरत

वैसे तो अध्यात्म और योग दो अलग अलग विषय हैं। लेकिन यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दरअसल अध्यात्म का पथ प्रदर्शन योग की निरंतर साधना से ही संभव है। विश्व योग दिवस हर साल 21 जून को दुनिया भर में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य योग के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में इसके अभ्यास को बढ़ावा देना है। भारत योग में विश्व में अग्रणी है।

भारत ने योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है और योग के माध्यम से सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया है। जब योग की बात आती है तो अध्यात्मिक दर्शन भी इससे अछूता नहीं रहता। हालांकि अध्यात्म और योग दो अलग-अलग विषय हैं, लेकिन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वस्तुतः योग के निरंतर अभ्यास से ही अध्यात्म की राह दिखाना संभव है। माना जाता है कि योग का अर्थ भागीदारी है, लेकिन आध्यात्मिक रूप से यह स्वयं को देखने और आत्मनिरीक्षण के माध्यम से स्वयं के साथ संवाद करने की एक प्रक्रिया है।

कैसे हैं योग और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक

बाकी दुनिया के लिए योग एक स्वास्थ्य उपचार हो सकता है, वहीं भारत में इसे खुद से जुड़ने की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। ऐसी गतिविधियां जो लोगों को अपने अंदर देखने की अनुमति देती हैं। भारतीय आध्यात्मिक दर्शन का योग से गहरा संबंध है। यह पारंपरिक योग अभ्यास, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, दुनिया भर में अपनाया जाता है। चलिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर जानते हैं योग और अध्यात्म के बारे में। दरअसल योग हमारे भारत में प्राचीन समय से चलते आ रहा है, आधुनिक जमाने में इसे लोग योगा कहने लगे।

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शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा है योग

योग शरीर, मन व बुद्धि को स्वस्थ करते हुए, आत्मस्वरूप तक पहुंचने का तरीका है। योग के जरिए हम अपनी चेतना की सबसे ऊंची स्थिति से जुड़कर जीवन जीते हैं। इस प्रकार का जीवन, पूर्णता से भरा होता है। यही कारण है कि योग और अध्यात्म इन दोनों को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। अध्यात्म का पथ प्रदर्शन योग की निरंतर साधना से ही संभव है।

योग और योगा में अंतर का कारण

भगवद्गीता के सभी 18 अध्यायों के नाम किसी न किसी योग पर ही रखे गए हैं। जैसे- अर्जुनविषादयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, ज्ञान कर्म सन्यास योग, कर्मसन्यास योग, आत्मसंयम योग, ज्ञान विज्ञानं योग, अक्षर ब्रह्मं योग, राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूति योग, विश्व रूप दर्शन योग, भक्तियोग, क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रयविभागयोग, पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसम्पद्विभाग योग, श्रद्धात्रयविभागयोग और मोक्षसंन्यासयोग।

योग और भगवदगीता का संबंध

आपको बता दें कि प्रत्येक अध्याय में योग, धर्मनिरपेक्ष जीवन और अध्यात्मिकता से संबंधित विषयों को शामिल किया गया है। साथ ही दिखाया गया है कि यदि योग को अध्यात्मिकता से अलग कर दिया जाता तो योग का अस्तित्व ही नहीं है। दूसरे शब्दों में, यदि योग हमारा शरीर है, तो हमारी आध्यात्मिकता इसका मस्तिष्क है। जिस प्रकार मस्तिष्क के बिना शरीर बेकार है, उसी प्रकार अध्यात्म के बिना योग बेकार है। जब तक योग आध्यात्मिकता के साथ जुड़ा है, तब तक यह न केवल शरीर और मन को स्वस्थ रखता है, बल्कि मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है।

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योग कैसे बना योगा

जब योग ने भारत से पाश्चात्य देशों की ओर रुख किया तब वह योगा बन गया। उदाहरण के रूप में जैसे राम- रामा और कृष्ण-कृष्णा हो गया। पाश्चात्य देशों में योग का केवल शारीरिक पक्ष मजबूत हुआ। इसे और लचीला बनाने के लिए योगा का प्रचलन हुआ। आज के समय में जो भी योग अपना रहे हैं वो सिर्फ उसका शारीरिक पक्ष देख रहे हैं और आध्यात्म और इश्वर से जुड़ने की साधना से दूर हो रहे हैं।

दो पक्षों में बंट गए योग और आध्यात्म

आज योग और आध्यात्म दो पक्षों में बंट गए हैं- अभी भी बहुत ही कम संख्या में लोग ऐसे होंगे जिन्हें योग और आध्यात्म की पूर्ण जानकारी होगी। आज ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जिन्हें योग की जानकारी है लेकिन आध्यात्म से वो जुड़ नहीं पाते और जिनका जुड़ाव आध्यात्म की ओर है, उन्हें योग के शारीरिक पक्ष की अच्छी समझ नहीं। वैसे देखा जाए तो योग विशेषज्ञों के प्रयास व जागरूकता से अब पाश्चात्य देशों में भी योग के आध्यात्मिक पक्ष की ओर भी रुझान बढ़ रहा है।

योग में आध्यात्म शामिल करना जरूरी

योग के साथ-साथ अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने से ही उसका सही अर्थ समझ आएगा। इसका लक्ष्य भी प्राप्त होगा। योग के माध्यम से ही आंतरिक शांति मिलती है। अगर योग का ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त न कर सके तो वो योग के मूल स्वरूप से भटक जाएगा। वहीं हम आसनों के अभ्यास से शरीर को स्वस्थ और लचीला बना सकते हैं, लेकिन योगी नहीं बन सकते हैं। अगर शरीर को लचीला बनाना योग है तो फिर तो सबसे बड़े योगी जिम्नास्टिक हो जाएंगे, क्योंकि उनमें संतुलन, लचीलापन और फुर्ती सब शामिल है। अतः योग में आध्यात्म शामिल करना अत्यंत आवश्यक है। योग की आध्यात्मिकता से भारत हमेशा ही विश्व गुरु बना रहेगा।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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