सोशल मीडिया का बढ़ता बोल बाला
कहाँ गई हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता?
21वी सदी में आ कर अगर आप आधुनिक नहीं हुए तो इसका मतलब आप अभी तक उस पाषाण युग में जी रहे है। माता पिता के लिए आदर आजकल मॉम डैड में तब्दील हो गया हूं और आखिर अब कोई पूछेगा थोड़ी की आपका क्या हाल है। अब तो फेसबुक के माध्यम से सबका हाल चाल पता चल जाता है। क्या दोस्ती, क्या यारी और क्या रिश्तेदारी? ये सब तो अब महज़ फ़्रेंडलिस्ट तक सीमित रह गई है। ना जाने कितना समय हो जाता है और हम अपनों से ही बात नहीं करते। उनके सुख दुख तो क्या, पर हमारे खुद के सुख दुख महज़ एक स्टेटस अपडेट बन कर रह गए है। जैसे मानो अपने ही लोग भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे है।
खूबसूरत भारतीय संस्कृति
त्योहारों की ख़ुशी और शुभकामनाएं देना तो बस मैसेज तक सीमित रह गए है। सोशल नेटवर्क जितना बड़ा होता जा रहा है, हमारी सोच उतनी ही छोटी होती जा रही है। लड़कियो को उनके कपड़ो से जज करते है और लड़को की भावनाओं का मज़ाक उड़ाते है। हमारी सोच इतनी छोटी हो गई है कि उसको खोलना बहुत ही मुश्किल है। हमारे रीति रिवाज़ और हमारी परंपरा की नींव इतनी कच्ची रह गई है कि अब वो स्टेटस अपडेट और पोस्ट पर टिकी है।
इस संस्कृति को सीमित न करे, इसको बढ़ावा दे
नई जगह जाना और भारतीय संस्कृति के बारे में जानना लोगो के लिए अब ज़रूरी नहीं बचा। वो अगर कही जाते है तो सीखने नहीं पर इंस्टाग्राम और फेसबुक के लिए तस्वीरे इकट्ठा करने के लिए। अब हमारी सोच पर इस सोशल मीडिया का इतना गहरा साया है कि इसे हटाना इतना आसान नहीं होगा। हमारी संस्कृति बहुत ही सुन्दर है इसे जितना पढ़ा जाए उतना सीखने को मिलेगा।