Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अटल जी की ये कविताएं देंगी आपको जीवन जीने के नए आयाम, एक बार जरूर पढ़ें
Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अटल जी की इन कविताओं से करें अटल जी को उनके जन्मदिवस पर याद
Highlights –
- भारतीय इतिहास में तीन बार के प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 25 दिसंबर 1924 में मध्य प्रदेश के एक गांव में हुआ था।
- कविता एक शक्तिशाली चीज होती है।
- इसमें भावनाओं को जगाने, कार्रवाई को प्रेरित करने और यादों को कैद करने की क्षमता होती है।
- एक अच्छी तरह से लिखी गई कविता लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल सकती है जो इसे पढ़ने में लगने वाले समय से अधिक है।
Atal Bihari Birth Anniversary: भारतीय इतिहास में तीन बार के प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में 25 दिसंबर 1924 में मध्य प्रदेश के एक गांव में हुआ था।
कविता एक शक्तिशाली चीज होती है। इसमें भावनाओं को जगाने, कार्रवाई को प्रेरित करने और यादों को कैद करने की क्षमता होती है। एक अच्छी तरह से लिखी गई कविता लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल सकती है जो इसे पढ़ने में लगने वाले समय से अधिक है।
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के सबसे विपुल कवियों में से एक हैं जिन्होंने भारत और इसकी संस्कृति के लिए अपने प्रेम के बारे में कई कविताएँ लिखी हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में उनके काम के 20+अटल बिहारी वाजपेयी कविताएँ छंद होंगे जो निश्चित रूप से आपके दिल को छू लेंगे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी भारत के प्रधामंत्री और एक कवी भी थे| अटल जी 3 बार भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। बहुत जयादा लोग वाजपेयी जी की कविताएं आज भी पढ़ते हैं और वो कवितायें बहुत ही सुप्रसिद्ध है इसीलिए हम आज बिहारी जी के कुछ कविताये प्रस्तुत कर रहे है।
कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा
गीत नहीं गाते हैं
बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ।
गीत नही गाता हूँ।
लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ।
गीत नहीं गाता हूँ ।
पीठ मे छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ।
गीत नहीं गाता हूँ।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अंधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अंतिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प,
वज्र टूटे या उठे भूकंप,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किंतु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की मांग अस्वीकार।
दांव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
हरी – हरी दूब पर
हरी हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं|
ऐसी खुशियाँ
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं|
क्काँयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।