Ahoi Ashtami Vrat: क्यों और कब मनाई जाती है अहोई अष्टमी, जानिए इससे जुड़ी मान्यता
अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रखा जाता है। इस साल 2023 में अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर 2023 को रखा जाएगा। अहोई अष्टमी का व्रत दीवाली से आठ दिन पहले आता है इसीलिए इस व्रत को अहोई आठ भी कहते हैं।
Ahoi Ashtami Vrat: दिवाली से 8 दिन पहले मनाई जाती है अहोई अष्टमी, जानें मुहर्त और दिन
अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रखा जाता है। इस साल 2023 में अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर 2023 को रखा जाएगा। अहोई अष्टमी का व्रत दीवाली से आठ दिन पहले आता है इसीलिए इस व्रत को अहोई आठ भी कहते हैं। इस व्रत को माताएं अपनी संतान के लिए रखती है। करवाचौथ के व्रत की तरह इस व्रत को तारों को देख कर खोला जाता है।
अहोई अष्टमी के दिन माताएँ अपने पुत्रों की भलाई के लिए उषाकाल (भोर) से लेकर गोधूलि बेला (साँझ) तक उपवास करती हैं। साँझ के दौरान आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। कुछ महिलाएँ चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती है लेकिन इसका अनुसरण करना कठिन होता है क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन रात में चन्द्रोदय देर से होता है।
इससे जुड़ी कथाएं
प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहाँ से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। खोदते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी ने खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक करके विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
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सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह साँप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है।
स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएँ होने का अशीर्वाद देती है। स्याहू के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
पूजा विधि और महूर्त
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – 05:33 पी एम से 06:52 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 18 मिनट्स
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय – 12:02 ए एम, नवम्बर 06
अहोई अष्टमी के दिन सुबह व्रत रखने वाली महिलाएं जल्दी उठकर स्नान कर लें। उसके बाद पूजाघर को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें। फिर शुभ दिशा देखकर दीवार पर अहोई माता का चित्र बना लें और यदि चित्र नहीं बना सकते हैं तो बाजार से चित्र लाकर दीवार पर लगा दें। उसके बाद शाम के अहोई माता की पूजा करें और उन्हें हलवा, पूरी का भोग लगाएं। फिर व्रत कथा पढ़ें और फिर तारों के निकलने की प्रतीक्षा करें। फिर तारों को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत का पारण करें। अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को दूध भात का भोग लगाना चाहिए और शाम को पीपल के पेड़ पर दीपक जलाना चाहिए।
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