Supreme Court on news Anchors : सुप्रीम कोर्ट ने लगाई न्यूज़ चैनलों को लताड़, कहा हेट स्पीच फैलाना बंद करें
Supreme Court on news Anchors : न्यूज़ एंकर्स के लिए ये हैं नियम जिन्हें ताक पर रखकर की जा रही देश में पत्रकारिता
Highlights –
- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टेलीविजन न्यूज चैनलों पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि टेलीविजन चैनल समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, क्योंकि वे एजेंडे से प्रेरित हैं और सनसनीखेज समाचारों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
- देश में हेटस्पीच से निपटने के लिए 7 तरह के कानून इस्तेमाल किया जाते हैं। आइए एक नज़र डालते हैं।
Supreme Court on news Anchors : न्यूज चैनल एक ऐसा माध्यम है जिसकी मदद से आम जनों तक खबरें पहुंचती हैं जिससे लोग देश – दुनिया में हो रही परिस्थितियां और हालातों के बारे में जानकारी प्राप्त कर पाते हैं।
लेकिन अब ज्यादातर टीवी चैनलों की वजह से यह परिभाषा बदलती नज़र आ रही है। टीवी चैनलों के एंकर्स मॉडरेटर कम प्रवक्ता अधिक जान पड़ते हैं। जिस तरह से एंकरिंग होनी चाहिए, जिस तरीके से बहस को एक शो के दौरान संभालने का काम करना चाहिए , जिस तरीके से बहस को दिशा देनी चाहिए वैसा कुछ प्रतीत नहीं होता है।
अब इसके खिलाफ टीवी न्यूज़ मीडिया के कंटेंट को लेकर भारत के उच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टेलीविजन न्यूज चैनलों पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि टेलीविजन चैनल समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं, क्योंकि वे एजेंडे से प्रेरित हैं और सनसनीखेज समाचारों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
जो एंकर अपने कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें ऑफ एयर कर देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि भारत स्वतंत्र और संतुलित प्रेस चाहता है। जस्टिस के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि चैनल एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, वह चीजों को सनसनीखेज बनाते हैं और एजेंडा पूरा करते हैं।
जस्टिस जोसेफ ने द न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करते हुए वकील से मौखिक रूप से कहा समाचार चैनल समाज के बीच विभाजन पैदा करते हैं, या वो जो भी राय बनाना चाहते हैं वह बहुत तेजी से बनती है।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने आगे कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जितनी अधिक स्वतंत्रता, विचारों का बेहतर हेट स्पीच की घटनाओं में कार्रवाई की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने ये तीखी टिप्पणियां कीं।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने एयर इंडिया के विमान में पेशाब करने के आरोपी शख्स के खिलाफ टीवी चैनलों द्वारा किए गए शब्दों के इस्तेमाल की भी आलोचना की। उन्होंने सुझाव दिया कि आपत्तिजनक एंकरों को ऑफ एयर दिया जाना चाहिए।
ऐसा पहली बार नहीं है जब टीवी न्यूज़ चैनलों को सुप्रीम कोर्ट की इस तरह की हिदायत मिली है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट इन चैनलों को लताड़ लगा चुकी है। इससे पहले सुशांत सिंह राजपूत मौत के केश में भी टीवी चैनलों को संवेदना को ताक में रखकर रिपोर्टिंग करने के लिए कोर्ट से फटकार मिल चुकी है।देश में हेटस्पीच से निपटने के लिए 7 तरह के कानून इस्तेमाल किया जाते हैं। आइए एक नज़र डालते हैं।
भारतीय दंड संहिता
- धारा 124ए (राजद्रोह): इस पर रोक लगाई जा चुकी है।
- धारा 153ए: धर्म, नस्ल आदि के आधार पर वैमनस्य।
- धारा 153बी: राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बयान।
- 295ए और 298: धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना।
- धारा 505 (1) और (2) अफवाह या नफरत भड़काना।
- धार्मिक, जातीय या भाषाई आधार पर चुनावी दुराचरण।
- नागरिक अधिकार अधिनियम, 1955
- धार्मिक संस्था कानून
- केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमन कानून
- सिनेमैटोग्राफी कानून
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973
ये वो कानून हैं जो कानून की किताब में मात्र सजे हुए प्रतीत होते हैं क्योंकि इन सभी कानूनों और नियमों को ताक में रहकर जो देश में पत्रकारिता हो रही है वो सब के सामने है। संविधान द्वारा लागू किए गए नियमों पर ध्यान न देते हुए न्यूज़ चैनल्स टीआरपी के होड़ में कब तक काम करती रहेगी? इन चैनलों के चेहरे कहे जाने वाले एंकर्स कब तक न्यूज़ रूम को वॉर रूम का अवशेष दिखाते रहेंगे? कब ये एंकर्स को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को गंभीरता पूर्वक लेंगे और देश में सीधी और सच्ची पत्रकारिता का प्रमाण देंगे ?