सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर उठते सवाल क्या जनता के बीच गलत संदेश दे रहे है
अन्य पत्रकारों के मामले में क्यों नहीं हो रही सुनवाई, क्या सिर्फ विशेष दर्जा वाले लोगों को लिए ही न्याय है
तेजी से बढ़ते सोशल मीडिया के जमाने में लगभग हर दूसरा व्यक्ति मुखर रुप से अपनी बात सोशल साइट पर लिख बोल रहा है. आएं दिन किसी न किसी मुद्दे पर लोग एक दूसरे से सोशल मीडिया पर उलझते नजर आते हैं. कहीं किसी फैसले को लेकर तो कहीं किसी घटना को लेकर, मुद्दा एक ही होता है फलां व्यक्ति ने इस पर बोल फलां नहीं बोल. विचारधाराओं के हिसाब से लोग अपनी-अपनी बात को रख रहे हैं. एक आजाद देश में हर व्यक्ति को अपने विचार रखने की पूरी आजादी भी है. तो चलिए आज ‘काम की बात’ में अर्नब गोस्वामी वाले किस्से पर चर्चा करेंगे जिस पर लोगों ने खुलकर विरोध और समर्थन किया है.
अहम बिंदु
– सुप्रीम कोर्ट का अर्नब गोस्वामी को बेल देना
– वकील दुष्यंत दवे के सवाल
– अन्य लोगों को भी मिला है विशेष दर्जा
– सोशल मीडिया पर लोगों ने पूछा बाकियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता
सुप्रीम कोर्ट को अर्नब की गोस्वामी की याचिका दायर करने के अगले दिन ही फैसले सुनाने के मामले में आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आधार पर जमानत दी गई थी. जबकि उनपर केस आत्महत्या के लिए उकसाने का था.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने फैसला सुनाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज पर एक टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया कि ऐसी क्या जरुरत आ गई थी कि अर्नब की याचिका को दायर करने के दूसरे दिन ही उस पर सुनवाई की गई.
दुष्यंत दवे ने सवाल किया कि क्या रिपब्लिक टीवी एंकर की याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए सीजेआई, एसए बोबडे से कोई विशेष निर्देश दिया गया था.
वहीं दूसरी ओर हास्य कलाकार कुणाल कामरा ने भी अर्नब गोस्वामी को बेल मिलने के बाद ट्वीट किया था जिसके कारण कुणाल पर न्यायालय की अवमानना का केस दर्ज किया गया है.
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पूरा मामला क्या है
अर्नब गोस्वामी ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 9 नवंबर के आदेश के खिलाफ मंगलवार सुबह या 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इससे पहले डिजाइनर अन्वय मलिक और उसकी मां कुमुद नाइक के आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद याचिका को तुरंत न्यायमूर्ति डीएफवाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की 2-न्यायाधीश पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए पेश किया गया.
दुष्यंत दवे ने अपने पत्र में रजिस्ट्रार से यह भी सवाल किया है कि आपको नहीं लगता एक पत्रकार को इतना तवज्जो दिया जा रहा है कि उसकी बेल की जानकारी भारत के न्यायाधीश को भी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के अनुसार, अर्नब की याचिका में नौ ’दोष थे, जिसमें इस तथ्य को भी शामिल किया गया था कि वकालतनामा अहस्ताक्षरित था. सामान्य परिस्थितियों में जब तक कि दोष ठीक नहीं हो जाते तब तक अदालत एक याचिका के समक्ष एक याचिका को पेश नहीं करती है.
दवे ने आगे अपने पत्र में लिखा है कि हजारों लोग महीनों से जेल में बंद हैं क्योंकि उनके मामलों को अदालत के सामने पेश नहीं किया जा रहा जबकि गोस्वामी के मामले में इतने कम समय में सुनवाई भी कर दी गई. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह लिखते है कि लोगों को लेकर चयनित होना एक गंभीर मुद्दा है .जबिक देखा जाता है जब भी अर्नब गोस्वामी किसी मुद्दे को लेकर सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाते है तो उनके मामले की सुनवाई तुरंत हो जाती है.
अपनी बातों में दुष्यंत दवे ने एक चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि किसी एक व्यक्ति को कैसे विशेष दर्जा दिया जा सकता है. भारत के पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि उन्होंने अदालत के समक्ष अपनी जमानत याचिका के पर बेल पाने के लिए में कई महीने जेल में बिताए है. क्या सुप्रीम कोर्ट कुछ वकीलों को विशेष दर्जा देता है?
आपको बता दें इंटीरियर डिजाइनर की खुदकुशी के मामले में रायगढ़ पुलिस ने 4 नवंबर को रिपब्लिक टीवी एंकर को गिरफ्तार किया था. उन्हें 14 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में नवी मुंबई के तलोजा जेल में रखा गया. जिसके बाद उन्होंने मुंबई हाईकोर्ट में अपनी बेल की याजिका लगाई जिसे रिजेक्ट कर दिया गया था.
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वकीलों की राय
सर्वोच्च न्यायालय के वकील अजय विक्रम सिंह से जब हमने बात की तो उन्होंने कहा, “अर्नब केस की तत्काल सुनवाई में कुछ भी गलत नहीं था. ऐसे प्रावधान हैं जिन्हें जानने की जरूरत है. अर्नब के पास एक अच्छा वकील था जो संविधान के कानून को अच्छे जानता था इसलिए उनकी सुनवाई जल्दी हो गई. जो भी लोग सक्षम है वह अपने लिए अच्छे वकील करते है जिन्हें संविधान की बारिकियां पता होती है वह उसी के अनुसार काम करते हैं . मुझे लगता है कि हमें इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह नियमों के भीतर काम कर रहा था, हमें सरकारी संस्थानों पर पूरा भरोसा रखना चाहिए. ‘
वहीं दूसरी ओर दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील शशांक कुमार इस बारे में कहना है कि, “आम और प्रभावशाली दोनों लोगों को न्याय का अधिकार है. प्रश्नों का उत्तर दिया जाना चाहिए. अर्नब गोस्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय की राय को खारिज करते हुए जमानत दी है लेकिन सिद्दीकी कप्पन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा है. ‘
“अमीर और प्रभावशाली लोगों के लिए, सर्वोच्च न्यायालय ने रात में भी खोला है, लेकिन कुछ मामलों में, इस मामले को वर्षों के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया है. रजिस्ट्री में डिफ़ॉल्ट के लिए एक मामला ढाई साल के बाद सूचीबद्ध किया गया है.” स्टार को ट्रायल कोर्ट राज्य का फैसला सुनाए जाने के 10 मिनट के भीतर ही मिल गया. हाल ही में सिद्दीकी कप्पन (मलयालम पत्रकार) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह अनुच्छेद 32 याचिकाओं को हतोत्साहित करेगा,
आपको बता दें अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को अंतर्गत आता है. जिसके अनुसार एक व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका लगा सकता है.
सिर्फ अर्नब ही नहीं अन्य लोगों की जल्दी सुनवाई हुई है
अर्नब गोस्वामी बड़े वकील होने का फायदा उठाने वाले अकेले नहीं हैं. इससे पहले, प्रशांत भूषण का न्यायलय की अवमानना के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की समीक्षा तत्काल सुनवाई के तहत सूचीबद्ध की गई थी. विनोद दुआ (पत्रकार) की गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को भी जल्द सूचीबद्ध किया गया था.
गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब अर्नब गोस्वामी को विशेष दर्जा दिया गया था. अर्नब ने अपने एक कार्यक्रम के खिलाफ भारत के विभिन्न हिस्सों में उनके खिलाफ की गई एफआईआर पर सुरक्षा की मांग की थी. गोस्वामी ने याचिका रात 8 बजे दायर की थी और यह अगली सुबह 10:30 बजे वह सूचीबद्ध हो गई. इसका पूरा मामला यह था कि अपने शो के दौरान अर्नब ने आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र के पालघर में तीन पुरुषों की लिंचिंग के लिए अल्पसंख्यक जिम्मेदार थे. जिस पर लोगों गुस्सा भड़क गया था. अर्नब आए दिन अपने शो में ऐसे भड़काने वाले बयान देते रहते हैं. सुशांत सिंह राजपूत के मामले में ही इन्होंने रिया चक्रवती के खिलाफ कई तरह की अफवाहें फैलाई थी.
तत्काल मामले की सुनवाई करना यह दर्शाता है कि न्यायलय के समक्ष न्याय पाने के लिए एक वीआईपी होना जरुरी है. इतना ही नहीं सरकार के साथ सुर से सुर मिलना भी जरुरी है. ऐसा देखा गया है कि अर्नब की गिरफ्तारी पर बीजेपी के दिग्गज नेताओं में महाराष्ट्र की आलोचना की थी. जबकि सैकड़ों ऐसे नागरिक हैं जो विभिन्न राजनीति से प्रेरित मामलों के तहत जेल में बंद हैं. उन्हें तत्काल सूची क्यों नहीं मिल रही है? क्या इसलिए कि वे सामान्य नागरिक नहीं हैं और सत्ता में लोगों के साथ संबंध नहीं रखते हैं? क्या शीर्ष अदालत को सभी के लिए समान नहीं माना जाएगा?
ऐसे लोग जो अभी भी बेल से नदारद है
अर्नब गोस्वामी को बेल मिलने बाद ही सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा भड़कना शुरु हो गया. आम जनता का यही कहना था इतने दिनों से जिन लोगों को जेल में बंद रखा है क्या उनकी कोई व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं है कि वह भी बेल पा सके. लोगों ने सुधा भारद्वाज, जगतार सिंह, आनंद तालबुंडे, वारवारा राव, फादर स्टेन स्वामी, का जिक्र भी किया. पिछले कुछ सालों में हजारों की संख्या में लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को दाव पर लगाकर जेल में डाला गया है. कश्मीर के कई जर्नलिस्टों को यूएपीए लगाकर जेल में बंद किया. जिसमें कश्मीर की 26 साल की फोटो जर्नलिस्ट मशरत जाहरा, पीरजादा आशिक, गौहर गिलानी, आसिफ सुल्तान शामिल है. इनमें से ज्यादातर लोगों पर यूएपीए लगाया है. हाल ही में मेघालय की पत्रकार पैट्रीशिया मुखीम, संपादक शिलांग टाइम पर एक फेसबुक पोस्ट लिखे जाने पर आपत्ति जताई गई और कहा गया कि यह दो गुटों के बीच संप्रदायिक माहौल को खराब करता है. जिसके बाद उन पर एफआईआर दर्ज की गई. जिसके जवाब के लिए उन्होंने मेघालय हाईकोर्ट को दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई. पैट्रीशिया एडिटर गिल्ट की सदस्य है और उन्होंने इसकी जानकारी वहां भी दी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. परेशान संपादक ने वहां से इस्तीफा दे दिया. हताश और निराश पैट्रीशिया का कहना है कि वह कोई प्रसिद्ध संपादक नहीं है अर्बन गोस्वामी की तरह जिस पर इतनी जल्दी फैसला सुनाया जा सके. अब देखने वाली बात जब हमारी न्यायपालिका पत्रकारों को ही बराबरी का हक नहीं दे पा रही है तो आमजनता का हाल क्या होगा.
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