काम की बात
श्रमिक स्पेशल की स्पेशल सेवा भूख, प्यास और लूट: आखिर क्यो रह जाती हैं हमेशा निष्पादन में कमी ?
श्रमिक स्पेशल पर स्पेशल Report
कोरोना का कहर दिसंबर 2019 में ही शुरु हो गया था. भारत में इसका आगमन जनवरी में ही गया था लेकिन इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया गया. नतीजा यह है कि आज जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही है तो कोविड 19 के 1,90, 535 केस हो चुके हैं. भारत में जनवरी में एक केस आने के बाद इस पर एक्शन मार्च में लिया गया. एक्शन के तौर पर पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया. लॉकडाउन ने देश की जनता को घर में रहने का मौका दिया. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस फैसले ने नाखुश थे. और उसके बाद शुरु हुआ कोविड 19 के साथ-साथ प्रवासियों का प्रस्थान.
लॉकडाउन के बाद अलग-अलग राज्यों रहने वाले मजूदर अपने अपने घर को जाने के लिए परेशान होने लगे किसी के लिए रोटी की तंगी थी तो कोई घर से बाहर घूमने के लिए गया और वहीं फंस गया. ऐसी दुविधा में जब बस ट्रेन सबकुछ बंद कर दिए गए तो लोगों ने पैदल चलना शुरु कर दिया क्योंकि लोगों के पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था. हजारों की संख्या में मजदूर शहरों से गांवों के तरफ पलायन करने लगे. लोगों के लगातार पलायन के बाद सरकार ने लॉकडाउन के लगभग डेढ महीने बाद ट्रेन चलाने की कवायत शुरु की.
प्रवासी मजदूर और घर वापसी के लिए ट्रेन
प्रवासी मजदूरों के पैदल आने के प्रकरण में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सबसे पहले संज्ञान लिया. झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार से दूसरे राज्य में फंसे अपने मजदूरों को वापस लाने के लिए ट्रेन की मांग की. इसके बाद एक मई में पहली बार तेलगांना में फंसे मजदूरों को घर वापस लाने का काम किया गया. इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाने का कारवा शुरु हुआ. हिंदुस्तान लाइव में छह मई की एक खबर के अनुसार अलग-अलग राज्यों में फंसे लगभग 1 लाख मजदूरों को 115 स्पेशल ट्रेनों द्वारा घर पहुंचाया जा चुका है. 1 मई से स्पेशल ट्रेन चलाई गई इसकी शर्त यह थी कि राज्य सरकार केंद्र सरकार को बताएं कि उनके कितने मजदूर कहां फंसे है उसके बाद उस रुट के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई जाएंगी. रेलमंत्री के 16 मई के एक ट्वीट के अनुसार तबतक 1,034 श्रमिक स्पेशल ट्रेन को चलाई जा चुका थी. जिसमें से 80% ट्रेनें यूपी और बिहार गई थी. लॉकडाउन 3.0 के बाद दौरान दिल्ली से अलग-अलग राज्यों के लिए स्पेशल एसी ट्रेन चलाई गई. जिसने उन लोगों को राहत दी जो आएं तो थे किसी काम से और फंस गए लॉकडाउन में. इसके साथ ही साथ श्रमिक ट्रेनों का भी परिचालन शुरु रहा. इसके साथ कई नियम भी बताएं गए थे जिसके तहत एक यात्री यात्रा कर सकता था. 1 जून के बाद से 200 पैसेंजर ट्रेनों का परिचालन शुरु किया गया. लेकिन समस्या है कि जबतक सरकार ने ट्रेनों का फैसला लिया तबतक बहुत सारे मजदूर पैदल साइकिल से अपने घर पहुंच चुके थे.
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यात्रियों के लिए रेलवे के निर्देश
रेलवे द्वारा स्पेशल ट्रेन में सफर करने से पहले कुछ शर्ते रखी गई थी. जिसमें पहली बात यह थी कि आपके मोबाइल पर आरोग्य सेतू ऐप्प होना चाहिए. इसके साथ ही ट्रेन की प्रत्येक कोच में 72 सीटों पर सिर्फ 50 लोगों को जाने की अनुमति दी गई थी. सोशल डिस्टेसिंग का ध्यान रखते हुई स्लीपर कोच में बीच की सीट को खाली रखा जाएगा ताकि 20 मीटर का डिस्टेसिंग को मेनटेन किया जा सकें. यात्री ज्यादा समान लेकर यात्रा न करें. मास्क हर किसी की लगाना है. ट्रेन हर स्टेशन पर नहीं रुकेगी कुछ निश्चित बड़े स्टेशनों पर ही इसका ठहराव होगा. ट्रेन में चढ़ने से पहले यात्री का एकबार चैकअप भी किया जाएगा. इसके साथ ही अपने साथ खाना पीना और बिस्तर लेकर आएं ट्रेन द्वारा यह सारी सुविधा नहीं दी जाएगी.
रेल पर राजनीति
देश में कोई भी काम हो उसमें राजनीति जरुर होगी इसमें कोई दोतरफा राय नहीं है. देश आपदा में है और राजनीतिक पार्टियां इसमें भी अपनी रोटियां सेकने पर आमदा है. मजदूरों से लिए जा रहे भाड़े से राजनीति शुरु होती है. जिसका मामला तब शुरु हुआ जब देखा गया कि मजदूरों से सामान्य किराए से ज्यादा पैसा वसूला जा रहा था. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहली पहल इसका विरोध किया. इसके बाद इस कड़ी बसपा सुप्रीमो और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव केंद्र सरकार पर सीधा निशाना साधा. मजदूरों की पीड़ा का कम करने की दृष्टि से कांग्रेस पार्टी की तरफ से किराया देने की पहल की. इसके बाद बीजेपी की वरिष्ट नेता सुब्रहमण्यम स्वामी ने अपनी पार्टी पर निशाना साधा औऱ रेलमंत्री से मुलाकात की. जिसके तुरंत बाद यह निर्णय लिया कि मजदूरों को 85 प्रतिशत केंद्र सरकार और 15 प्रतिशत राज्य सरकार देगी. लेकिन इस बात का पालन नहीं हो पाया मजदूरों से उतना ही किराया वसूल जा रहा था.
जब इस बात को लेकर हो हल्ला होना शुरु हुआ तो केंद्र सरकार की तरफ से जवाब आया कि 85 प्रतिशत के तौर यात्रियों को यह सुविधा दी जा रही है जो इस प्रकार से है एक ट्रेन जो यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंच रही है वह वापसी के वक्त तो खाली आएंगी और दूसरी बात ट्रेन में बीच वाली सीट को खाली रखा जाएगा. इन दोनों की भरपाई इस 85 प्रतिशत से ही हो रही है बाकी 15 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा. इसलिए मजदूर को पूरा किराया देना है. उनका 15 प्रतिशत राज्य सरकार द्वारा उनके वहां पहुंचने पर दिया जाएगा. जबकि बाद में खबरें आई की उन्हें पैसे नहीं मिले.
इस मामले में 4 मई को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर ने ट्वीट किया कि राज्य सरकार मजदूरों को किराया दे रही सिर्फ राजस्थान की कांग्रेस सरकार, केरल की लेफ्ट की सरकार और महाराष्ट्र की आघांडी की सरकार ही मजदूरों को पैसा नहीं दे रही है. इस वक्त में भी कांग्रेस राजनीति कर रही है. शर्म आनी चाहिए. पूरे प्रकरण में यही दिखाई दिया कि सब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे जबकि समय सबको साथ आने का था.
श्रमिक ट्रेन और यात्रियों की परेशानी
श्रमिक ट्रेनों का परिचालन 1मई के बाद से शुरु किया गया. लॉकडाउन के 37 दिन के बाद इतने दिनों में मजदूरों की हालात बहुत खराब हो चुकी थी. लोग अपने घर जाने के लिए परेशान होने लगे थे. इसके लिए लोगों को कई तरह की मशक्त करनी पड़ी. पहली परेशानी यह थी कि ट्रेन का परिचालन तो शुरु कर दिया गया कि लेकिन स्टेशन तक जाने की कोशिश सुविधा उपलब्ध नहीं थी. बीबीसी के एक रिपोर्टर ने ऐसे ही परिवार को दिल्ली में चलते हुए देखा उससे पूछा कहां जा रहे हैं
आपलोग जवाब मिला नई दिल्ली रेलवे स्टेशन क्योंकि उनके पास कोई दूसरा साधन नहीं था तो पैदल ही चलना शुरु कर दिया. परेशानियां यही नहीं थमी लोग को भूखे प्यासे अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना पड़ा. 26 मई को ऐसी खबरें आने लगी 40 ट्रेनें रास्ते भटक गयी है. बैंगलुरु से चली ट्रेन को जाना था बस्ती पहुंच गई गाजियाबाद. पहुंचाना था दो से तीन दिन में पहुंची 9 दिन में..इस दौरान 9 लोगों की मृत्यु हो गई. लेकिन मृत्यु का सरकार पर कोई खास असर भी नहीं पड़ा. रेलमंत्री द्वारा दुःख भी व्यक्त नहीं किया गया.
इसी दौरान कुछ अमानवीय घटना भी सामने आई. उसके लिए हम सिर्फ लोगों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. इसके लिए तो सरकार से भी प्रश्न होना चाहिए. सोशल मीडिया पर कई जगह देखने को मिला की श्रमिक ट्रेन से आ रहे यात्रियों ने स्टेशन पर खाने की दुकानों से सामान लुटा. इसके लिए सिर्फ किसी एक शख्स को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. इसे पूरे में अगर लोग गलत तो रेलवे भी जिम्मेदार है. 40 डिग्री की चिलचिलाती गर्मी में कोई शख्स कितने देर तक भूखा और प्यासा रह सकता था. ट्रेनों में पेन्ट्री कार भी नहीं थी. स्टेशन भी बंद थे. तो लोगों के पास दूसरा विकल्प कोई भी नहीं था.
इसका इंतजाम तो सरकार द्वारा किया जाना चाहिए था. अगर ट्रेन में पेन्ट्रीकार की सुविधा नहीं थी तो कम से कम उन स्टेशनों को थोड़ा बहुत खोलने की अनुमति देते जहां ट्रेनों रुकनी वाली थी क्योंकि श्रमिक ट्रेन में तीन स्टॉप रखे थे. इन स्टॉप के उन प्लेटफॉर्म की दुकानों को थोड़ा बहुत खोलने की अनुमति देनी चाहिए थी जिससे की लोग अपने लिए कुछ खरीद पाते. बात जब ज्यादा बढ़ गई तो सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा और आदेश देना पड़ा कि राज्य सरकारें और रेलवे यात्रियों के खाने और पीने का इंतजाम करें.
रेलवे की बेरुखी
लगभग दो महीने की तालाबंदी ने इंसान को क्या से क्या बना दिया. कोई रास्ते पर चलने के लिए मजबूर है तो कोई घर में रह-रहकर परेशान हो गया है. इन सब के बीच सरकार की बेरुखी ने लोगों के हौसले को और कम दिया है. बमुश्किल राज्यों की बार-बार मांग के बाद 1 मई से श्रमिक ट्रेने चलाई गई. लेकिन लोग इस ट्रेनों से भी सुरक्षित घर नहीं पहुंच पाएं. इस बारे में जब रेलमंत्री पीयूष गोयल को दुःख जाहिर करना चाहिए तो उन्होंने कहा “जो परेशान हो वह श्रमिक ट्रेन में यात्रा न करें”. इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने खूब बवाल भी मचाया लेकिन मंत्री जी के कान में जूं भी नहीं रेंगी. उल्टा रेलवे के चेयरपर्सन विनोद कुमार यादव ने ट्रेनों के रुट भटकने को लेकर अनोखी बात पेश की कि यह सब झूठी अफवाह और फेकन्यूज है. दरअसल जब देखा गया कि किसी जगह के लोगों ज्यादा है तो ट्रेन का रुट उस तरफ डायवर्ट कर दिया गया था. लेकिन सोचने वाली बात है कि जिस बात का जिक्र रेल मंत्रालय कर रहा है वह कितना तर्कसंगत है. मामूली सी बात है अगर कोई ट्रेन हावड़ा के लिए चली है तो उसमें बिलासपुर के लिए सवार हो सकते हैं. टिकट का ब्यौरा तो रेलवे के पास ही होगा तो फिर अचानक से किसी और रुट के यात्री कैसे या गए. सवाल बड़ा पेचीदा है. लेकिन लोगों की जान बडी आसान है. दी लल्लनटॉप की एक खबर के अनुसार ऐसा बहुत कम होता है कि कोई ट्रेन रास्ता भटक जाएं और अभी तक यह न के बराबर हुआ है. साल 2014 में विशाखापट्टनम से चली मालगाड़ी 2018 में पहुंची. इसको लेकर बवाल भी हुआ और बाद में इसके जांच के आदेश दिए गए. देखना अब यह है कि इस बार भी जांच का आदेश दिए जाएगा या फिर इसे एक फेकन्यूज की तरह माना जाएगा जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई.
👉Reality of Shramik train from Tamil Nadu to Bihar
👉Watch Migrant workers & students on board make SERIOUS allegations in MY REPORT WITH VISUALS
👉'No food/water for 30 HOURS'
👉'Takes 48 hours by train. But this special train is still running even after 50+ hrs' pic.twitter.com/rXUgENTzQw
— Saahil Murli Menghani (@saahilmenghani) May 23, 2020
रेलमंत्रियों के इस्तीफे
देश की स्थिति बहुत ज्यादा खराब है. लेकिन इससे पहले जबकि रेलवे की तरफ से बड़ी चूक हुई है तो रेलमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है. इस कड़ी सबसे अगली लाइन में खड़े है लालबहादुर शास्त्री. नवंबर साल 1956 में एक ट्रेन हादसे में 142 लोगों की जान जा चुकी थी. इसके बाद रेलमंत्री ने इस्तीफा दे दिया. 1999 में नीतीश कुमार और 2000 में ममता बनर्जी ने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था. जबकि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ममता बनर्जी का स्वीकार भी नहीं कर रहे थे.
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