क्या आप जानते हैं देश में 10 लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं…
जागरुकता की अभी कमी है, लोगों को सजग होने की जरुरत है
‘काम की बात’ लेख में हम हर सप्ताह सरकार की स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं के बारे में आपको बता रहे हैं. योजनाओं का कितना लाभ जनता तक पहुंचा और कितने लोग अभी तक इन सुविधाओं से वंचित हैं. इस सप्ताह के लेख में हम ‘मिशन इंद्रधनुष’ के बारे में बताएंगे.
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अहम बातें
- मिशन इंद्रधनुष
- उद्देश्य
- आंकडे
- कमी
- जागरुकता अभियान
देश में टीकाकरण की शुरुआत 1978 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा विस्तारित प्रतिरक्षण(इम्यूनजैशन) कार्यक्रम के रुप में की गई. लेकिन नियमित तरीके से इसकी शुरुआत 1985 में की गई. यह विश्व का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम था. जिसका मुख्य उद्देश्य देश के सभी जिलों में साल 1980 से 90 तक पूर्ण प्रतिरक्षण प्रदान करना था. लंबे समय तक टीकाकरण करने के बावजूद भी एक साल तक के बच्चों को 65 प्रतिशत तक ही प्रतिरक्षित(इम्यूज्य) कर पाएं.
टीकाकरण को आगे बढ़ाने के लिए 25 दिसंबर 2014 को ‘मिशन इंद्रधनुष’ की शुरुआत की गई. यह एक बुस्टर टीकाकरण प्रोग्राम है . जिसकी शुरुआत 201 कम टीकाकरण वाले जिलों से हुई थी. जैसे इंद्रधनुष में सात रंग होते है वैसे ही इस यूनिर्वसिल टीकाकरण में मुख्यरुप से सात टीकों का शामिल किया गया है.
- तपेदिक(Tuberculosis)
- पोलियोमाइलाइटिस(Poliomyelitis)
- हेपेटाइटिस बी(Hepatitis B)
- डिप्थीरिया(Diptheria)
- पर्टुसिस(Pertussis)
- टेटनस(Tetanus)
- खसरा(Measles)
उद्देश्य
- हर सरकारी स्वास्थ्य योजना की तरह इसका भी पहला उद्देश्य मृत्युदर को कम करना है.
- दो वर्ष तक की उम्र के सब बच्चों और गर्भवती महिलाओं का सभी उपलब्ध टीकों के माध्यम से पूर्ण प्रतिरक्षण(इम्यूनजैशन) सुनिश्चित करना.
- टीकाकरण के साथ-साथ लोगों को बीमारियों के प्रति जागरुक और शिक्षित करना.
- 2030 तक बाल मृत्यु पर रोकथाम लगाना और सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करना.
सघन मिशन इंद्रधनुष
टीकाकरण के कार्यक्रम के तहत आखिरी शख्स तक पहुंचना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 अक्टूबर, 2017 को सघन मिशन इंद्रधनुष की शुरुआत की. इसका मुख्य लक्ष्य दो साल तक के बच्चे और गर्भवती महिलाओं तक पहुंचना जो नियमित टीकाकरण से बच गए हैं. इस योजना के तहत अक्टूबर 2017 और जनवरी 2018 के बीच हर महीने सर्वोच्च प्राथमिकता वाले जिलों और शहरी क्षेत्रों के 173 जिलों, 16 राज्यों के 121 जिले और 17 शहरों और 8 पूर्वोत्तर राज्यों के 52 जिलों में निरंतर सात दिनों तक टीकाकरण चरण आयोजित किया गया था. यह शहरी क्षेत्रों एवं चयनित जिलों में चलाया गया था.
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सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0
साल 2019 और 2020 तक चयनिय जिलों के सभी ब्लॉकों तक बच्चों और गर्भवती महिला के लिए सभी उपलब्ध टीकों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0 की शुरुआत की गई. जिसका मुख्य उद्देश्य 27 राज्यों के 272 जिलों तथा दुर्गम स्थान और जनजातीय आबादी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश औ र बिहार ब्लॉक स्तर में 652 ब्लॉकों मे पूर्ण प्रतिरक्षण कवरेज का लक्ष्य प्राप्त करना है.
आंकड़े
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार मिशन इंद्रधनुष के तहत प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ 70 लाख नवजात शिशुओं का टीकाकरण किया जा रहा है. यह विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम है. इसे सुनिश्चित करने के लिए 90 से भी अधिक टीकाकरण सत्रों का आयोजन किया जाता है.
भारत में लगभग 10 लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं. इनमें से चार में से एक की मृत्यु निमोनिया और डायरिया से हो जाती है.
एनएफएचएस4, 2015- 16 के अनुसार संपूर्ण टीकाकरण की राष्ट्रीय औसत 62 प्रतिशत है. डीपीटी3 की पहुंच 78.4 प्रतिशत और मीजल्स के पहले डोज की पहुंच 81.1 प्रतिशत है. अप्रैल 2015 से जुलाई 2017 तक चले इस प्रोग्राम में 25.5 मिलियन बच्चें और 6.9 मिलियन गर्भवती महिलाओं को कवर किया गया है. इससे पूर्ण टीकाकरण की कवरेज में 6.7प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसके साथ ही टीकाकरण की कवरेज 87% तक बढ़ गई है. लेकिन अधिकारिक तौर पर यह अब भी 62% ही है.
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार हाल में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार टीकाकरण की कवरेज में 18.5% की वृद्धि हुई है. इस मिशन से प्राप्त अनुभवों के आधार पर देश में टीकाकरण से छूट चुके शिशुओं को टीकाकरण में शामिल करना है और संपूर्ण टीकाकरण कवरेज को 90 प्रतिशत तक स्थाई बनाने का उपयोग करना है.
इस बारे में बरेली, यूपी के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर के सुपरिटेंडेट डॉ. सौरभ सिंह का कहना है कि यह बहुत ही लाभकारी योजना है. इस योजना से पहले भी टीकाकरण किया जा रहा था. लेकिन इसके आने का बाद कई बदलाव आएं है. टीकाकरण से पहले हमारी टीम एक सर्वे करती है. इसमें जिन बच्चों का टीकाकरण नहीं किया गया है उनकी जानकारी एकत्र की जाती है. इसके साथ ही मीटिंग की जाती है जिसमें लोगों को यह बताया है कि टीकाकरण आर्थिक और सामाजिक तौर कितना लाभप्रथ है. मिशन इंद्रधनुष के आने से रुटीन इम्यूनजैशन में और वृद्धि हुई है. इन्यूनजैशन में 90 प्रतिशत में वृद्धि होती है. बचाव की स्थिति में काफी बदलाव आया है. टीकाकरण के प्रोग्राम के तहत हमारी आने वाली पीढ़ी ज्यादा स्ट्रांग होगी उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी. इस योजना के तहत मृत्युदर भी कमी आई है.
कमी
योजना कोई भी हो उसमें थोड़ी बहुत कमी होती ही है. इस योजना के तहत टीकाकरण का काम लगभग पांच सालों में 80-90% तक पहुंच गया है. लेकिन अभी भी यह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई है. इस बारे में का परिवार और कल्याण मंत्रालय यूपी की हाल में रिटायर्ट हुए डॉ. बदरी विशाल कहना है डेटा का बात करें तो 85 प्रतिशत लोंगों तक सुविधा पहुंच चुकी है. लेकिन कुछ लोग अभी भी जो छूट रहे हैं. यह ज्यादातर गरीब तबके के लोगो हैं. जो इन सारी बातों से जागरुक नहीं हैं उन तक ही टीकाकरण नहीं पहुंच पा रहा है. टीके का बात करें तो कुछ लोगो में अभी टीके को लेकर डर भी फैला हुआ है. साल 2014 में रिपोर्टिंग के दौरान में मैंने देखा कि नोएडा जिला अस्पताल में एक बच्चे की मौत हो गई. इस बारे में घरवालों का कहना था कि पोलियो पिलाया गया और इसके बाद ही बच्चा बीमार पड़ गया. यह एक तरह की सूचना के अभाव के कारण ऐसी बातें सामने आती है जबकि टीकाकरण और पोलियो बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
कैसे जागरुकता फैलाई जा रही है
किसी भी योजना का सुचारु रुप से चलाने के लिए लोगों के बीच उसके बीच जागरुकता फैलानी बहुत जरुरी है. कई लोगों का लगता है कि सरकारी अस्पताओं में टीकाकरण सही नहीं होता है जबकि इस बारे में डॉ बदरी विशाल का कहना है कि सरकारी अस्पातलों में सरकारी और मेडिकल नियमों के तहत टीकाकरण किया जाता है. इतना ही नहीं टीके को सही से स्टोर करके रखा जाता है . प्राइवेट अस्पतालों में कौन देखने जा रहा है टीके को कैसे रखा गया है. इतना ही नहीं यहां टीका लगने के लिए लोगों को प्रशिक्षित भी किया जाता है. इसलिए लोग थोड़ा जागरुक हो और सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण कराएं.
जागरुकता अभियान के बारे में डॉ. सौरभ सिंह का कहना है कि किसी भी योजना को पूरा करने लिए रैलियां निकाली जाती है. उसके लिए ऐड तैयार किए जाते हैं. इस योजना में भी ऐसा ही किया जाता है. इतना ही नहीं आशा वर्क्स द्वारा लोगों को शिक्षित किया जाता है ताकि लोगों को इनके लाभ के बारे में पता चल सके.
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