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Exclusive ! Okhla Garbage Story: दिल्ली के ओखला को कूड़ा किसने बनाया ? आम लोगों ने बयां किया अपना दर्द

Exclusive ! Okhla Garbage Story: मिलिए ओखला की आम जनता से जो हैं कूड़े के ढेर में रहने को मजबूर, पूछ रही है सरकार से सवाल

Highlights:

  • दिल्ली के ओखला फेज 2 का संजय कॉलोनी जहां प्रवेश करते ही आपकी नज़र चारों तरफ फैले कचरे के ढ़ेर पर पड़ती है।
  •  जिसे देखकर आप सबसे पहले यहां के निवासियों के बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं।
  •  इनकी ज़िंदगी यहां कैसे व्यतीत होती है?
  • क्या घर के बिल्कुल सामने पड़े कूड़े – कचरे की ढ़ेर इनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है और करता है तो इसका यहां के आम लोगों पर कैसा असर है?

Exclusive ! Okhla Garbage Story : देश की राजधानी दिल्ली जहां लाखों लोग रोजगार की तलाश में आते हैं। एक ऐसा शहर जो हज़ारों लोगों के सपनों को साकार करने की एक उम्मीद है।

लेकिन चकाचौंध भरे इस शहर की एक और सच्चाई है। एक ऐसी सच्चाई जिससे बहुत कम लोग ही वाकिफ हैं। बहुमंजली इमारतों के नीचे बसे हैं मोतियों की तरह हज़ारों ऐसे घर जहां के निवासी बदहवाली की ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं।

दिल्ली के ओखला फेज 2 का संजय कॉलोनी जहां प्रवेश करते ही आपकी नज़र चारों तरफ फैले कचरे के ढ़ेर पर पड़ती है। जिसे देखकर आप सबसे पहले यहां के निवासियों के बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं। इनकी ज़िंदगी यहां कैसे व्यतीत होती है? क्या घर के बिल्कुल सामने पड़े कूड़े – कचरे की ढ़ेर इनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करता है और करता है तो इसका यहां के आम लोगों पर कैसा असर है?

जी हां घर के सामने पड़े कूड़े – कचरे का ढ़ेर इनकी रोजमर्रा का एक हिस्सा बन चुका है। 66820 लोगों की जनसंख्या वाला यह क्षेत्र उदाहरण है सालों से यहां काम कर रही सरकार की विफलताओं का।

एक इंसान को जीने के लिए क्या-क्या चाहिए होता है। खाने के लिए दो वक्त की रोटी, सर ढ़कने के लिए एक छत, पहनने के लिए जरूरत के कपड़े और एक साफ – सुथरी जगह जहां वह अपने परिवार के साथ शांती से रह सके। लेकिन यहां के नागरिक अपना जीवन इस कचरे में बीताने को मजबूर हैं और इसकी जिम्मेदार है यहां की सरकार।

वन वर्ल्ड न्यूज़ की टीम ओखला फेज 2 की आम लोगों की ज़मीनी हकीकत जानने के लिए ग्राउंड में उतरी। हमने यहां के नागरिकों से फेस – टू – फेस बात की और उनके हालत को जानने की पूरी कोशिश की।

यहां के आम नागरिकों से बात करते हुए हमें ओखला की स्थिति के बारे में काफी करीब से पता चला। हमने ये जाना कि कैसे यहां के आम लोग कचरे के ढ़ेर में अपना जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं। बिमारियों का घर बना यह क्षेत्र सबूत है यहां की जनता की बदहवाली का और यहां की सरकार की विफलताओं का।

एक नज़र ओखला की औरतों पर डालते हैं। यहां कि अधिकतर महिलाएं गृहणियां हैं जो घर – गृहस्ती संभालती हैं और कहें तो सबसे अधिक इन्हीं महिलाओं का इन कूड़ों के ढ़ेर से वास्ता होता है। इन्हीं कूड़ों के ढ़ेर के पास चापाकल है जहां से महिलाएं काम – काज के लिए पानी लेकर जाती हैं। ये पानी पीने के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसी संदर्भ में हमने यहां की एक आशा वर्कर से बात की जहां हमें बच्चों में गंदगी की वजह से फैल रही बीमारियों के बारे में भी पता चला। महिलायें किसी तरह अपना जीवन यापन इस गंदगी के अंबार में कर लेती हैं लेकिन बच्चों के लिए इस कचरे में उन्हें मात्र अंधकार से भरा भविष्य नज़र आता है।

आप स्वंय अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कैसे जो महिलायें पूरा दिन इन कचरों के पास अपने परिवार को पाल रही हैं उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थय के बारे में क्या बात की जाए।

ओखला की औरतों से बात करते वक्त हमें यहां पल रहे बच्चों के बारे में भी जानकारी प्राप्त हुई। छोटे बच्चे जो पूरा दिन इस गंदगी में खेलने – कूदने में व्यस्त हैं उन्हें आने वाले भविष्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है क्योंकि वो इस बात से अंजान हैं कि आज खेलने – कूदने वाली ये जगह उनके लिए काफी खतरनाक है।

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इंटरव्यू के दौरान हमें कुछ ऐसे लोग भी मिले जो काफी पढ़े – लिखे थे, जिनके पूर्वज सालों से ओखला के निवासी हैं। उन्हें यह कहता देख बहुत बुरा प्रतीत हो रहा था जब वह खुद के जेब से पैसे देकर कचरे की ढ़ेर को साफ करने की बात कर रहे थे। कई ये कहते नज़र आए की दीवाली के वक्त आग की समस्या यहां आम है, यहां के लोग इसी स्थिति में जीने के लिए विवश हैं।

कचरे की वजह से कितने नौजवानों की शादी नहीं हो रही है। कारण पूछने पर वह ओखला की गंदगी की ओर इशारा करते हैं। वो बार – बार कहते हैं कि कोई अपनी बेटी यहां क्यों देगा भला। कितनों के रिश्तेदार यहां के लोगों के घरों में आने से बचते हैं।

बूजूर्ग जिन्होंने अपना बचपन, अपनी जवानी इस गंदगी में बिताया है वह सरकार से सवाल पूछ – पूछ कर थक गए हैं। अब तो यह आलम है कि वह इस कचरे के ढेर में रहने के आदी हो गए हैं।

ऐसा है कि चुनाव से पहले हर बार नेता जी आते हैं और ढ़ेरों वादे करके चले जाते हैं और चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद इन गंदगी वाली गलियों में दोबारा लौटकर नहीं आते हैं। ये हम नहीं यहां के आम नागरिक बोलते नज़र आते हैं।

हाल ही में दिल्ली के एमसीडी चुनाव खत्म हुए हैं। पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार एमसीडी में जीती है। अब यहां की जनता इस पार्टी के नेता जी से उम्मीदें लगाई है। अब देखने वाली बात ये होगी कि सरकार अपने वादों पर कितनी खड़ी उतरती है।

निवासियों की जमीनी हकीकत आप और करीब से यहां देख सकते हैं-

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