काम की बात

सारे एग्जिट पोल धरे के धरे रह गए, अंत में आया एनडीए के समर्थन में परिणाम

सातवीं बार नीतीश कुमार बन सकते है बिहार के मुख्यमंत्री


बिहार में एनडीए की जीत हुई है. इस जीत के साथ ही नीतीश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. कल रात आए परिणाम के अनुसार एनडीए को 125 और महागठबंधन को 110 सीटें मिली हैं. बिहार चुनाव में पिछले एक महीने में कितना बदलाव आया है इस पर आज हम काम की बात पर चर्चा करेंगे.

बढ़त में एनडीए सीट में राजद ने मारी बाजी

चुनाव में भले ही एनडीए की जीत हुई है. लेकिन सबसे ज्यादा सीटें लाकर राजद प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है. राजद ने 144 में से 75 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि 2015 के चुनाव में 80 सीटों पर विजय मिली थी. इस बार राजद को 5 सीट के नुकसान हुआ है. वही दूसरी ओर पहली बार बीजेपी प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. बीजेपी ने 74 सीटों पर फतह पाई है. जबकि 2015 के चुनाव में 53 सीटों पर ही सब्र करना पड़ा था. इस बार के चुनाव में बिहार की जनता ने एनडीए के गठबंधन में बीजेपी को ज्यादा वोट दिए है. पिछले चुनाव में जदयू ने 71 सीट जीती जबकि इस बार लोगों ने इन्हें कम सराहा है. जिसके कारण जदयू को सिर्फ 43 सीटे ही मिल पाई है.

वायदों की बौछार

बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे तक सिर्फ जातीय समीकरण ही दिख रहा था. लेकिन अचानक से चुनाव प्रचार में विकास की बात होने लग गई. रोजगार का मुद्दा जोरों शोरों से उठने लगा. तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरियों के ऐलान ने बिहार चुनाव में एक नया मोड़ ला दिया. जिसके बाद बिहार में नौकरियों के वायदों की बौछार होने लगी. तेजस्वी के वायदे पर एनडीए ने पलटवार करते हुए 19 लाख नौकरियों का ऐलान किया.  और इसके साथ ही कोरोना की वैक्सीन आते ही सबको फ्री में लगाने की घोषणा की.

पहले चरण में महागठबंधन ने बढ़त बनाई, लेकिन दूसरे चरण के बाद बिगड़ा मामला

तीन चरणों के मतदान में पहले चरण में महागठबंधन ने बढ़त बनाई. पहले चरण में महागठबंधन को 71 सीटों में से 46 पर जीत हासिल हुई. जबकि एनडीए की झोली में मात्र 22 सीटें ही आई. महागठबंधन का पूरा मामला दूसरे और तीसरे चरण में बिगड़ गया और यही से एनडीए की जीत आगे बढ़ती गई. दूसरे चरण में महागठबंधन को 39 और तीसरे चरण में 21 सीटों पर जीत मिली. जबकि एनडीए ने यही बाजी मार ली दूसरे चरण के मतदान में 54 और तीसरे में 52 सीटों पर जीत हासिल की. जिसने चुनाव के पूरे समीकरण को ही बदल कर रख दिया. जिस तरह से तेजस्वी यादव की रैली में भीड़ दिख रखी थी. वैसा समर्थन राजद को तो मिला लेकिन कांग्रेस को 70 सीटे देना इनको सबसे ज्यादा भारी पड़ गया। कांग्रेस को मात्र 19 सीट ही हासिल हुए.

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एग्जिट पोल का हुआ बुरा हस्र

बिहार में तीन चरणों में मतदान हुआ. तीसरे चरण का मतदान 7 नवंबर को हुआ था. मतदान समाप्त होते ही हर एग्जिट पोल में महागठबंधन की जीत दिखाई जा रही थी. यहाँ तक की मतगणना के पहले फेज में भी महागठबंधन को ही आगे बताया जा रहा था. लेकिन जैसे जैसे दिन का तापमान बढ़ता गया एनडीए ने बढ़त बनाना शुरु कर दी. जिसका अंत रात लगभग 11 बजे के बाद हुआ. और इसके साथ ही एक बार फिर बिहार में एनडीए की सरकार बनी.

15 दलों के 370 रही महिला उम्मीदवार

वर्ष 2015 के विधान सभा चुनाव में महिलाओं की संख्या 273 थी जिनमें 28 महिलाओं ने जीत हासिल की थी वहीं 2010 में चुनावी मैदान में 307 महिलाएं थीं जिनमें 34 ने जीत हासिल कर सदन में अपनी जगह बनाई थी. इस बार के चुनावी दंगल में 15 राजनीतिक पार्टियों ने 370 सीटों पर महिलाओं को प्रत्याशी बनाया.

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इन दलों ने दिए उम्मीदवार

बिहार विधान सभा चुनाव में इस बार के चुनाव की बात करें तो सबसे ज्यादा महिलाओं को टिकट देने में जेडीयू नंबर वन पर रही. जेडीयू ने 22 महिलाओं को चुनावी दंगल में उतारा वहीं बीजेपी ने 13 तो वीआईपी ने 1 हम ने 1, कांग्रेस ने 7 ,आरजेडी ने 16, माले ने 1, एआईएमआईएम 3, एनसीपी ने 4 ,जाप ने 12 तो एलजेपी ने 23, आरएलएसपी ने 10 ,प्लूरल्स में 15 ,बीएसपी ने 8 शिवसेना ने 1 महिला प्रत्याशी को टिकट दिया था.

भाजपा के 9 महिला उम्मीदवारों ने हासिल की जीत

बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की महिला नेताओं का शानदार प्रदर्शन रहा. चुनाव 2020 में भाजपा ने इस बार 13 महिलाओं को टिकट दिया था. इसमें नौ ने चुनावी मैदान में बाजी मारी है. चुनाव जीतने वाली महिलाओं में निक्की हेम्ब्रम, अरुणा देवी, श्रेयसी सिंह, रेणु देवी, भागीरथी देवी, रश्मि वर्मा, गायत्री देवी, निशा सिंह व कविता पासवान तो चुनाव हारने वालों में  मुन्नी देवी, रिंकी रानी पांडेय, आशा देवी व स्वीटी सिंह शामिल हैं.

25 वर्षों बाद वामदलों की दहाई अंकों में वापसी

बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के प्रमुख घटक दल के रूप में वामदलों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। तीन प्रमुख वामपंथी दलों ने कुल 29 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें भाकपा माले के 19 उम्मीदवारों में से 12 को जीत मिली है जबकि सीपीआई व  सीपीएम को 2- 2 सीटें हासिल हुई है. इस सफलता को वर्ष 1995 के बाद से अब तक की बड़ी कामयाबी मानी जा रही है.

एक नजर में वामदलों का हाल

वर्ष 1995 : वामपंथी विधायकों की संख्या-35

2000 : वामपंथी दलों के विधायकों की संख्या-9

2005 : वामपंथी दलों के 7  विधायक रहे

2010 : भाकपा के एकमात्र विधायक

2015 : भाकपा माले के विधायक-3

2020: वाम दलों के 16 विधायक

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