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Shaligram shila : : नेपाल से आईं शालिग्राम शिला का क्या हुआ?

Shaligram shila : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है...

Shaligram shila : कहाँ है शालिग्राम ? अयोध्या में जय श्री राम…


Shaligram shila : महर्षि दधीचि का त्याग विश्व में अमरत्व का वरदान हो गया..शिल्प कलाकारों के द्वारा पत्थर भी भगवान हो गया..! कौन शिला शंकर बन जाए उन शिखरों को मालूम नहीं… कौन बूंद मोती बन जाए मेघों को मालूम नहीं !

अयोध्या में नेपाल से लाई गई उन दो शिलाओं के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जिनका राज्याभिषेक तो बिल्कुल राजा रामचंद्र की तरह हुआ और फिर वही वनवास …

Shaligram shila : 14 और 27 टन की दो शिलाएं नेपाल के कालीगंडकी तट से आई थी

शायद आपको याद हो राम मंदिर के निर्माण का काम पूरा होने के बाद पिछले साल यानी 2023 के फरवरी में नेपाल के कालीगंडकी तट से 14 और 27 टन की दो शिलाएं जनकपुर के जानकी मंदिर के माध्यम से अयोध्या लाई गईं थीं।
लेकिन आपको बता दे कि ये शिलाए बस यूँ ही नहीं लाइ गई थी, शुरुआत में इन शिलाओं से राम मूर्ति बनाए जाने की बात सामने आई।
कुछ धार्मिक तर्क आएं थे जैसे की – धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता यह भी है कि इसे कहीं भी रखकर पूजने से उस जगह पर लक्ष्मी का वास होता है। 2024 की मकर संक्रांति से पहले भगवान रामलला की प्रतिमा इसी पत्थर से बनकर तैयार हो जाएगी। इन पत्थरों का सीधा रिश्ता भगवान विष्णु और माता तुलसी से भी है। इसलिए शालिग्राम की अधिकतर मंदिरों में इसकी पूजा होती है और इनको रखने के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत भी नहीं होती।
इतने सारे धार्मिक तर्क के बाद फिर शिलाओं की जांच भी की गई धर्म और आस्था के साथ साथ तर्क और विज्ञान भी दिखाया गया कहा गया की,
राम मंदिर निर्माण का काम देख रहे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अधिकारी खुद नेपाल गए और उन पत्थरों को अयोध्या भेजे जाने से पहले उनकी पहचान करने के लिए कुछ दिनों तक नेपाल में रुके पूरी तसली से शिलाओं की पहचान की और फिर शिलाओं को मंगवाया गया ।
लेकिन क्या आपको पता है? फिर अयोध्या आने के बाद शिलाओं की तकनीकी जांच के बाद मूर्तिकारों ने कहा कि ‘ऐसी शिला से मूर्ति तराशना संभव ही नहीं है’ ।
अब समझ ये नहीं आ रहा है की ट्रस्ट के अधिकारी तकनीकी जांच के लिए मूर्तिकारों को साथ नहीं ले गए थे क्या? अगर नहीं तो फिर जांच की खबर क्या थी?

अगर वो खुद भगवान हैं तो उनके ऊपर कैसे चलेगी हथौड़ी-छेनी?

इसके अलावा एक और विवाद हुआ शिला के अयोध्या पहुंचने के बाद, जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने श्री राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को एक पत्र दिया है। इस सम्बंध में जगद्गुरु ने मीडिया को बताया कि – जो नेपाल से जो शालिग्राम शिलाएं आई हैं, वे चारों भाइयों का स्वरूप हैं। मूर्ति बनाने के बाद शिलाओं में वैदिक विधि से प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। तब भगवान की पूजा होती है। लेकिन शालिग्राम ऐसे हैं जिनमें इसकी जरूरत नहीं होती, वह स्वयं भगवान हैं और जीवाश्म हैं। अगर भगवान हैं तो उनके ऊपर कैसे हथौड़ी-छेनी चलेगी। इसलिए इसी रूप में उनको बैठा करके रामलला स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना शुरू कराई जाए।
अब ये समझ ना मुश्किल है की यही बात नेपाल से शालिग्राम शिलाएं मंगवाने से पहले क्यू नहीं उठाई गई? 

शिलाओं के साथ नेपाल से अयोध्या भेजा गया था एक ताम्रपत्र

आपको पता है जब इन शिलाओं को नेपाल से अयोध्या भेजा गया था तब उनके साथ एक ताम्रपत्र भी भेजा गया था। इस ताम्रपत्र में लिखा गया था कि ”नेपाल सरकार के समझौते एवं गंडकी प्रांत की सरकार के फ़ैसले के मुताबिक़ कालीगंडकी नदी के आसपास के क्षेत्र से भारत में अयोध्या धाम की श्री रामलीला प्रतिमा के निर्माण के लिए दो शिलाएं प्रदान की जाएंगी। मुख्यमंत्री श्री खगराज अधिकारी की ओर से जनकपुरधाम में जानकी मंदिर को प्रदान करने का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है।”

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जनकपुर के जानकी मंदिर में आने की वो प्रथा क्या है?

एक रिवाज के अनुसार अयोध्या से लोगों के लिए शादी के दिन जनकपुर के जानकी मंदिर में आने की प्रथा है और उसी परंपरा को जारी रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेपाल के कालीगंडकी की  शिलाएं भेजने का प्रस्ताव रखा गया था और फिर कांग्रेस इन्हें मूर्तियां बनाने के लिए नेपाल से अयोध्या लाया भी गया।

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कुलराज चालीसे ने क्या कहा?


एक रिपोर्ट के मुताबिक इन शिलाओं को भेजने की प्रक्रिया से जुड़े, कुलराज चालीसे जो शालिग्राम के सांस्कृतिक महत्व समझने वाले विद्वानों में गिना जाते है।
उन्होंने कहा कि ‘वह मानते हैं कि इन शिलाओं को सम्मानजनक ढंग से रखा जाएगा, लेकिन अगर मूर्तियां बनाने के लिए भेजी गई शिलाओं को दूसरे ढंग से इस्तेमाल किया जा रहा है तो सरकार को इसकी जानकारी हमें देनी चाहिए थी ।’
उन्होंने ये भी कहा की , “इस शिला को जानकी मंदिर प्रबंधन की ओर से अयोध्या स्थित राम मंदिर को गोधुवा उपहार के रूप में दिया गया था जिसमें नेपाली करदाताओं का पैसा ख़र्च हुआ… यूँ तो बेटी को दिया गया दहेज वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन गोधुवा का किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, उसके बारे में मैती पक्ष को अवगत कराना चाहिए था।”

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