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Secret City Of India: भारत ने बनाई सीक्रेट न्यूक्लियर सिटी, क्यों इससे खतरा मानता है पाकिस्तान

Secret City Of India: कर्नाटक में बन रहा एक नया शहर पिछले कुछ सालों से लगातार विदेशी मीडिया के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है। पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक का मीडिया मानता है कि ये भारत का वो शहर तैयार हो रहा है, जहां भारत के न्यूक्लियर हथियार तैयार होंगे।

Secret City Of India: सालों से भारत के सीक्रेट न्यूक्लियर सिटी में बदल गया सब कुछ

पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ में एक बार छपा था कि भारत ने एक ‘सीक्रेट न्यूक्लियर सिटी’ बनाई है। जिसके चलते दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन बिगड़ने का खतरा है। उस दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया ने आरोप लगाया था कि भारत ने परमाणु हथियारों का जखीरा जमा किया है। इतना ही नहीं उनका आरोप था कि भारत ने अंतर-महाद्वीपीय मिसाइलों का परीक्षण भी किया है।

आपको बता दें कि कर्नाटक में बन रहा एक नया शहर पिछले कुछ सालों से लगातार विदेशी मीडिया के बीच कौतूहल का विषय बना हुआ है। पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक का मीडिया मानता है कि ये भारत का वो शहर तैयार हो रहा है, जहां भारत के न्यूक्लियर हथियार तैयार होंगे। जिस तरह से गुपचुप इसके लिए कई गांवों से जमीनें अधिग्रहित की गईं। फिर देखते ही देखते एक बड़े भूभाग पर ऊंची दीवार खड़ी कर दी गई। तो कौन सा है ये शहर। क्यों इसे विदेशी मीडिया भारत का सीक्रेट न्यूक्लियर सिटी कह रहा है।

काम में जुटे हैं बाहर से आए मजदूर

देखते ही देखते कुछ सालों में यहां पर बाहर से आने वालों की भीड़ क्यों बढ़ गई है। क्यों यहां पर बाहर से कुछ ज्यादा ही मजदूर आकर काम में जुटे हुए हैं। क्या ये वास्तव में ऐसा शहर बन रहा है, जिसका अपना रहस्य है या जिसे खास मकसद से बनाया जा रहा है। अब जानते हैं कि ये जगह क्या है और कहां है। इसका नाम है चल्लाकेरे। एक बहुत छोटा से गांव का स्टेशन। जिसे कोई कभी नोटिस नहीं करता था, लेकिन अब यहां ट्रेनें रुकने लगी हैं और कुछ ज्यादा ही लोग उतरने लगे हैं। ये दक्षिणी कर्नाटक में स्थित है। जो चित्रदुर्गा जिले में है।

भारत का इससे इंकार

विदेशी मीडिया को लगता है कि भारत यहां सीक्रेट न्यूक्लियर सिटी बना रहा है, जहां परमाणु हथियार निर्माण, यूरेनियम परिशोधन, शोध और रॉकेट-मिसाइल संबंधी नए काम होंगे। हालांकि भारत ने इससे इंकार किया है, लेकिन कुछ साल पहले परमाणु प्रोग्राम के एक उच्चाधिकारी कहना था कि हो सकता है कि भारत यहां यूरेनियम ईंधन को प्रोसेस करे। अब तक यहां 10000 एकड़ जमीन के भीतर दिन रात काम चल रहा है। चार ऐसे संस्थान एक साथ बनाए जा रहे हैं, जो भारत के सामरिक कार्यक्रम को अंजाम देने में साथ-साथ भूमिका निभाते रहे हैं। ये चारों देश के शीर्ष साइंस और रिसर्च संस्थान हैं।

देश को मिलेगी मजबूती

चारों इस तरह बनाए जा रहे हैं कि उनमें भविष्य में काम शुरू होने के बाद पुख्ता तालमेल रहे ताकि देश की विज्ञान औऱ शोध संबंधी भविष्य की जरूरतों को तेजी से न केवल पूरा किया जा सके बल्कि देश को मजबूती भी दी जा सके। वर्ष 2009 में जब बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन अधिग्रहित होने लगी तो इलाके के लोगों ने बेंगलुरु हाईकोर्ट की शरण ली, जहां कर्नाटक सरकार को जानकारी देनी पड़ी कि ये जमीन किस काम आने वाली है।

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डीआरडीओ को दी गई 4290 एकड़ जमीन

इसमें से 4290 एकड़ जमीन डीआरडीओ यानि डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन को दी गई है। 1500 एकड़ जमीन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को। 573 एकड़ जमीन इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन औऱ 1810 एकड़ भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर को अलाट की गई है। कुछ बचा इलाका कर्नाटक स्माल स्केल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन को मिला। वर्ष 2011 में भारत सरकार ने घोषणा की कि इन चार संस्थानों को एक साथ एक जगह जमीन देने का उद्देश्य ये है कि भारत के भविष्य के प्रोजेक्ट सुरक्षित औऱ शांत जगह में विकसित किए जा सकें।

साइंस सिटी का दिया गया है नाम

आपको बता दें कि इस जगह को साइंस सिटी नाम दिया गया है। यहां डीआरडीओ एयरस्पेस और मिसाइल टेक्नॉलाजी के उन्नत प्रोग्राम चलाएगा। अगर अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका ”फॉरेन पॉलिसी” पर गौर करें, जिसने कुछ समय पहले एक बहुत बड़ी रिपोर्ट छापी कि किस तरह भारत चल्लाकेरे में एक गुप्त न्यूक्लियर सिटी बना रहा है, जहां एटामिक बम के साथ भविष्य के हथियार विकसित किए जाएंगे।

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तरह-तरह की प्रयोगशालाएं करेंगी न्यूक्लियर शोध

ये विशाल परिसर सैन्य गतिविधियों से संबंधित प्रोग्राम के लिए संचालित किया जाएगा। इसमें तरह-तरह की प्रयोगशालाएं होंगी, जो न्यूक्लियर शोध तो करेंगी ही साथ में हथियारों के उत्पादन और एयरक्रॉफ्ट परीक्षण सुविधाओं का भी काम करेंगी। इसी शहर में हमारे न्यूक्लियर रिएक्टरों के लिए ईंधन बनाने का काम होगा, देश के पनडुब्बी बेड़ों को नाभिकीय ताकत से लैस करने के अभियान को अंजाम दिया जाएगा।

2012 में शुरू हुआ था काम

चिल्लाकेरे में वर्ष 2012 में रातों-रात काम शुरू हो गया। गांववालों में तब नाराजगी भी फैली जब उन्होंने देखा कि उनके खेतों और घरों के आसपास कंटीले तारों के बाड़ बिछा दिए गए हैं। गांव की सड़क की दिशा बदल दी गई है। ढेर सारी मशीनें नजर आने लगीं। कुछ दिनों बाद पक्की चारदीवारी बना दी गई। जो इतनी ऊंची थी कि पता भी नहीं चले कि अंदर क्या बन रहा है। दक्षिण भारत की प्रमुख वेबसाइट न्यूजमिनिट्स डॉट कॉम ने रिपोर्ट पब्लिश की कि लोगों ने खुद को जमीनों से बेदखल किए जाने का विरोध किया। लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। एक दो सालों के भीतर इसका काम पूरा हो जाने की उम्मीद है। ये कर्नाटक का ऐसा इलाका भी है, जहां सौ से ऊपर किसान सूखे के कारण आत्महत्या कर चुके हैं।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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