इस दिन मनेगी सरोजनी नायडू की 145वीं जयंती, जानिए उनके जीवन से जुड़े कुछ खास बातें: Sarojini Naidu Birth Anniversary
भारत की कोकिला के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू की 145वीं जयंती मनाई जा रही है। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था और 2 मार्च 1949 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।
Sarojini Naidu Birth Anniversary:भारत की पहली महिला राजयपाल बनी सरोजनी नायडू , जानिए क्यों मिली उन्हें भारत कोकिला की उपाधि
Sarojini Naidu Birth Anniversary:सरोजनी नायडू का जन्म हैदराबाद में 13 फरवरी वर्ष 1879 में हुआ था। बताया जाता है कि वे बचपन से ही बेहद होशियार, कुशाग्र बुद्धि वाली थीं। पढ़ाई-लिखाई में तेज सरोजनी नायडू छोटी उम्र से ही कविताएं लिखने का शौक रखती थीं। हमेशा वे महिलाओं की सशक्त आवाज बनकर सामने आईं। उन्होंने कहा था, यदि पुरुष देश की शान है तो महिला उस देश की नीव है।
प्रारंभिक जीवन
भारत की कोकिला के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू की 145वीं जयंती मनाई जा रही है। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था और 2 मार्च 1949 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। सरोजिनी आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। सरोजिनी नायडू होनहार छात्रा थीं और उर्दू, तेलगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषा में निपुण थीं। उनके पिता एक वैज्ञानिक थे और उनकी माता एक फिलोस्फर थीं। सरोजनी नायडू की बचपन से ही कविताओं में बहुत रुचि थी। सरोजिनी नायडू ने भारत को अंग्रेज़ों से आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
वैवाहिक जीवन
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में सरोजिनी नायडू ने डॉ गोविंदराजुलू से विवाह कर लिया। डॉ गोविंदराजुलू गैर ब्राह्मण परिवार से थे जबकि सरोजिनी एक ब्राह्मण थीं। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया जो कि उस दौर में मान्य नहीं था, लेकिन उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा और उनके चार बच्चे भी हुए- जयसूर्या, पदमज, रणधीर और लीलामणि।
क्यों मिली भारत कोकिला की उपाधि
गांधी जी से सरोजिनी नायडू के मित्रवत सम्बन्ध थे और गांधी जी ने उनके भाषणों और प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। अपने पत्रों में गाँधी जी उन्हें कभी-कभी ‘डियर बुलबुल’,’डियर मीराबाई’ और कभी ‘मदर’ कहकर संबोधित करते थे।
भारत की पहली महिला राजयपाल
स्वतंत्रता के बाद 1947 में वह संयुक्त प्रांत जिसका नाम अब अब उत्तर प्रदेश है की राज्यपाल बनीं। सरोजिनी भारत की पहली महिला राज्यपाल थीं। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल घोषित होने के बाद वो लखनऊ में ही बस गयीं। उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई। सरोजिनी नायडू के महिलाओं और देश के लिए योगदान को उनके जन्म दिवस पर याद करते हुए हम सभी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
सरोजनी नायडू से जुड़े कुछ अहम बातें
12 साल की उम्र में ही उन्होंने 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली थी। सरोजिनी नायडू एक बेहतरीन कवियत्री थीं। स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई के दौरान भी वे कविताएं लिखती रहती थीं। उनका पहला कविता संग्रह ‘गोल्डन थ्रैशोल्ड’ था। देश के प्रति अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि देश का बलिदान, महानता और प्रेम उस देश के आदर्शों पर निहित करता है।
आत्म सम्मान इंसान का सबसे बड़ा गहना
सरोजिनी नायडू ने देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिए। उनके द्वारा किए गए कार्यों, योगदान को सम्मान देने के लिए ही आज के दिन को ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के तौर पर भी मनाया जाता है। उन्होंने आत्म सम्मान को लेकर एक बहुत अच्छी बात कही थी। उनके अनुसार, ‘आत्म सम्मान इंसान का सबसे बड़ा गहना होता है।’
महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर बढ़ चढ़कर वकालत की
सरोजिनी नायडू ने बढ़ चढ़कर महिला सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों की वकालत की। देश भर में घूमकर महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। देश को आजाद कराने की लड़ाई में औरतों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित भी करती थीं। उन्होंने एक बार कहा था, ‘किसी भी देश की स्थिति, वहां रहने वाली महिलाओं की स्थिति से मालूम पड़ती है।
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ब्रिटिश सरकार में मिली कैसर-ए-हिंद की उपाधि
जब वर्ष 1928 में देश में प्लेग महामारी फैली थी, तब उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना ही बढ़ चढ़कर लोगों में जागरूकता फैलाने के साथ-साथ काफी कार्य भी किए थे। उनके समर्पण, जुनून को देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तब कैसर-ए-हिंद उपाधि दी थी। उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। उनके विचार, ‘एक देश को महान और बेहतर बनाने के लिए कई वर्ष लग जाते हैं।’
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