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Operation Maa: अस्थानीय आतंकियों को दोबारा अपनी सामान्य जिंदगी जीने का मौका देती है ऑपरेशन मां, आप भी जानिए इस डॉक्यूमेंट्री के बारे में

ऑपरेशन मां के जरिये सेना ने स्थानीय आतंकियों की माताओं से अपील की थी कि वह दहशतगर्दों से प्रभावित अपने बेटों हिंसा के रास्ते पर जाने से रोकें और मुख्यधारा में लौटने को प्रेरित करें।

Operation Maa: जानिए कैसी है डॉक्यूमेंट्री ऑपरेशन मां की कहानी और डायरेक्शन…


Operation Maa: भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा मानवीय सैन्य अभियान चला, जहाँ बंदूकें कुछ देर के लिए रुकीं और माँ की पुकार ने युवाओं को आतंकवाद छोड़ने पर मजबूर कर दिया। ऑपरेशन मां के जरिये सेना ने स्थानीय आतंकियों की माताओं से अपील की थी कि वह दहशतगर्दों से प्रभावित अपने बेटों हिंसा के रास्ते पर जाने से रोकें और मुख्यधारा में लौटने को प्रेरित करें।

डॉक्यूमेंट्री ऑपरेशन मां की कहानी

‘ऑपरेशन मां’ डॉक्यूमेंट्री इसी सच्ची और भावनात्मक पहल की कहानी बयां करती है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे एक मां का प्रेम और उसकी पुकार, आतंकवाद की गिरफ्त में आए नौजवानों को हिंसा की राह छोड़कर सामान्य जीवन की ओर लौटने के लिए प्रेरित करती है। यह वृत्तचित्र न केवल एक सैन्य अभियान की झलक देता है बल्कि मातृत्व की ताकत, सामंजस्य और देशभक्ति की गहराई को भी उजागर करता है।

डॉक्यूमेंट्री ऑपरेशन मां की डायरेक्शन

डॉक्यूमेंट्री ऑपरेशन मां का डायरेक्शन तनुज भाटिया ने किया है। डायरेक्शन काफी अच्छा है और सधा हुआ है। डाक्यूमेंट्री के जरिए डायरेक्टर तनुज ने लोगों तक उस सच्चाई को पहुंचाने की कोशिश की है जो शायद कुछ लोगों को ना पता हो। इसमे सिर्फ उन लोगों की कहानी को ही नहीं बल्कि उन सभी भावनाओं को भी काफी करीब से दिखाया गया है। ऑपरेशन मां डॉक्यूबे पर रिलीज हो चुकी है। हर भारतीय को यह डॉक्यूमेंट्री एक बार तो जरूर देखनी चाहिए। यह कोई फिल्म नहीं है तो शायद आपको बोरियत हो लेकिन तनुज भाटिया ने ऑपरेशन मां के पीछे की पूरी कहानी को दिखाया जो काफी इंट्रस्टिंग है।

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आतंकवादी गुटों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या घटी

सुरक्षा एजेंसियों द्वारा हाल ही में तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, छह महीने पहले जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और उसके दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद से हर महीने औसतन महज पांच युवक ही आतंकवादी समूहों में शामिल हुए हैं। जबकि 5 अगस्त, 2019 से पहले हर महीने करीब 14 युवक आतंकवादी समूहों का हाथ थाम लेते थे।

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