Handloom Week: हथकरघा सप्ताह, लोकल को ग्लोबल बनाने की ओर एक कदम
Handloom Week: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में हथकरघा उद्योग का विशेष स्थान है। यह न केवल हमारे देश की कला और संस्कृति को दर्शाता है,
Handloom Week: रंग-बिरंगे धागों में बसी भारतीय परंपरा
Handloom Week: भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में हथकरघा उद्योग का विशेष स्थान है। यह न केवल हमारे देश की कला और संस्कृति को दर्शाता है, बल्कि लाखों कारीगरों की जीविका का प्रमुख साधन भी है। इसी योगदान को सम्मान देने और लोगों में हथकरघा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल हथकरघा सप्ताह (Handloom Week) मनाया जाता है।
हथकरघा सप्ताह का उद्देश्य
हथकरघा सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य भारत के पारंपरिक हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना, कारीगरों के योगदान को मान्यता देना और जनता को स्थानीय उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित करना है। इस सप्ताह के दौरान सरकार और विभिन्न संगठनों द्वारा कई प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें कारीगर अपने उत्पादों को प्रदर्शित करते हैं।
हथकरघा का ऐतिहासिक महत्व
हथकरघा भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यता में भी हथकरघा से बने वस्त्रों के प्रमाण मिलते हैं। मुग़ल काल में बनारसी, चंदेरी, जामदानी जैसी बुनाई शैली प्रसिद्ध हुईं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी ने भी ‘खादी’ को आत्मनिर्भरता और स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बनाया। आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में हथकरघा की अनूठी शैलियाँ देखने को मिलती हैं, जैसे – पटोला (गुजरात), इकत (उड़ीसा), कांजीवरम (तमिलनाडु), बालूचरी (पश्चिम बंगाल) आदि।
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हथकरघा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता
आज के यंत्रचालित युग में हथकरघा उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है – जैसे महंगी कच्ची सामग्री, कम आय, और बाज़ार तक पहुंच की कमी। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम अधिक से अधिक हाथ से बने वस्त्रों को अपनाएं और ‘वोकल फॉर लोकल’ को समर्थन दें। इससे न केवल हमारे कारीगरों को रोज़गार मिलेगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत भी संरक्षित रहेगी।
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