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विशाखापट्नम गैस लीक हादसा: 11 लोगों की मौत, सैकड़ों बीमार, जाने ऐसे ही एक और गैस हादसे के बारे में

विशाखापट्टनम में दिल दहला देने वाला गैस लीक हादसा


आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम के वेंकटपुरम गांव में गुरुवार को देर रात करीब 3 बजे केमिकल फैक्ट्री से स्टाइरीन गैस लीक होने से अब तक वहा 11 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें दो बच्चे भी शामिल है। मौके पर सभी आपातकालीन सेवाएं वहा पहुंची। जिसके कारण 300 से ज़्यादा लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। ये गैस एलजी पॉलिमर्स के प्लांट से लीक हुई। स्टाइरीन गैस प्लास्टिक, फाइबर ग्लास, रबर और पाइप बनाने में इस्तेमाल होती है। इस गैस का असर प्लांट के आसपास के तीन से चार किमी इलाके में रहा। पुलिस ने आसपास के इलाक़ों को खाली करा कर सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। खबरों के मुताबिक फिलहाल अब वहा कहीं भी गैस लीक नहीं हो रही। सुरक्षा के लिहाज़ से चार गांवों को ख़ाली कराया गया है।

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विशाखापट्नम गैस लीक हादसा ने दिलाये देश को भोपाल गैस कांड की याद

अभी आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम में जो गैस लीक हादसा हुआ उसने देश को भोपाल गैस कांड की याद दिला दी। 36 साल पहले भोपाल में ऐसी ही एक दुर्घटना हुई था। जिसे देश ‘भोपाल गैस कांड’ या ‘भोपाल गैस त्रासदी’ के नाम से जनता है। यह हादसा विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक था। ये हादसा 2 दिसंबर 1984 को हुआ था। इस हादसे में भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसका असर आज भी वहां के लोगों में देखा जा सकता है। हालांकि, यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में हुआ हादसा विशाखापत्तनम में हुए हादसे से कहीं ज्यादा डराने वाला और घातक था।

भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की काली रात को यूनियन कार्बाइड की फर्टिलाइजर फैक्ट्री से जहरीले गैस का रिसाव शुरू हुआ था। उसके बाद धीरे धीरे ये पूरे शहर में बादल की तरह छा गया। उस समय लोग सो रहे थे। सोने के दौरान कई लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और जिनकी जानें बच गईं, उनके फेफड़े कमजोर पड़ गए और आखें खराब हो गईं। इस हादसे का असर लोगों के जिस्म पर ही नहीं, बल्कि उनके दिमाग पर भी पड़ा था। इनमें से कई की तो सुधबुध ही चली गई, वे मनोरोगी हो गए। यह जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइड थी। इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर 3,000 लोग की मौत हो गयी और लगभग 1.02 लाख लोग प्रभावित हुए थे। ये इतना बड़ा हादसा था जिसका असर आज भी भोपाल में देखने को मिलता है।

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