Tulsi Vivah 2021: तुलसी विवाह के दौरान पूजा में शामिल करें ये चीजें, पूरी होगी सभी मनोकामना
Tulsi Vivah 2021: जाने क्या कराया जाता है तुलसी विवाह?
Tulsi Vivah 2021: हर साल हमारे देश में कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन तुलसी जी की और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह करने से कन्यादान के तुल्य फल की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि इस दिन सुहागिन महिलाएं तुलसी विवाह का आयोजन और पूजन करती हैं। इससे उन्हें अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि इस साल तुलसी विवाह 15 नवंबर यानी की सोमवार को किया जाएगा। इस दिन आपको पूजा के समय तुलसी विवाह की पौराणिक कथा का पाठ करना चाहिए। बता दें कि इस दिन तुलसी मंगलाष्टक का पाठ किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शालीग्राम और तुलसी मां खुश हो जाती है और आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है। तो चलिए जा हम आपको बताते है तुलसी जी की पौराणिक कथा के बारे में।
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जाने क्या है तुलसी विवाह पौराणिक कथा?
शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के क्रोध से तेज का निर्माण हुआ। इस तेज के समुद्र में जाने से एक तेजस्वी दैत्य बालक ने जन्म लिया। जो आगे चलकर दैत्यराज जलंधर कहलाया और इसकी राजधानी जालंधर कहलायी। बता दें कि कुछ समय बाद जालंधर का विवाह कालनेमी की पुत्री वृंदा से हुआ। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी। जलंधर ने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया। लेकिन एक दिन वो अपनी शक्ति के मद में चूर हो कर माता पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत जा पहुंचा। जिसे भगवान शिव काफी ज्यादा गुस्सा हो गए और गुस्सा हो कर भगवान शिव ने उसका वध करने का प्रयास किया। लेकिन भगवान शिव का ही पुत्र होने के कारण वो शिव के समान ही बलशाली था इतना ही नहीं इसके साथ ही उसके साथ वृंदा के पतिव्रत की शक्ति भी थी। जिसके कारण भगवान शिव उनका वध नहीं कर पा रहे थे। उसके बाद पार्वती ने सार वृत्तांत विष्णु जी को सुनाया। उन्होंने कहां जब तक वृंदा का पतिव्रत भंग नहीं होगा तब तक जलंधर को नहीं मारा जा सकता है।
जाने विष्णु जी ने क्यों धारण किया ऋषि का वेश?
उसके बाद भगवान विष्णु ने एक ऋषि का वेश धारण कर वन में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा की वृंदा अकेली भ्रमण कर रही है। उसके बाद वृंदा ने ऋषि से महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। जिसके बाद ऋषि रूपी विष्णु ने अपनी माया से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह खबर सुन कर वृंदा मूर्छित हो गई। होश में आने पर उसने ऋषि से अपने पति को जीवित करने की विनती की। उसके बाद भगवान विष्णु ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया और साथ ही स्वयं भी उसके शरीर में प्रवेश कर गए।वृंदा को इस छल का जरा भी आभास न हुआ। जिसके बाद जालंधर बने भगवान विष्णु के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी। जिससे वृंदा का सतीत्व भंग हो गया और ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार कर मारा गया।
भगवान विष्णु की लीला का पता चलने पर वृंदा ने उन्हें ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। वृंदा के श्राप के प्रभाव से विष्णु जी शालिग्राम रूप में पत्थर बन गए। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से सृष्टि में असंतुलन स्थापित हो गया। यह देख कर सभी देवी देवता परेशान हो गए और उन्होंने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर दे। कहा जाता है कि जहा वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उग आया। उसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब से तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। उसके बाद से ही हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
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