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More Heat in Summers: भारत में इस साल पड़ेगी बेइंतेहा गर्मी, खूब तपेगा नॉर्थ इंडिया, जानिए क्या है कारण

More Heat in Summers: IMD के मुताबिक, अप्रैल से जून से देश के ज्यादातर हिस्से सामान्य से अधिक गर्म रह सकते हैं। इसी अवधि में 'अल नीनो' की मौजूदगी के चलते देश में लू वाले दिनों की संख्या में इजाफा हो सकता है। आसान शब्दों में कहें तो पहले की तुलना में इस बार लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है।

More Heat in Summers: इस बार भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ने का अनुमान


मार्च के शुरूआती हफ्ते में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस साल पड़ने वाली गर्मी को लेकर अनुमान जारी किया था। IMD के मुताबिक, अप्रैल से जून से देश के ज्यादातर हिस्से सामान्य से अधिक गर्म रह सकते हैं। इसी अवधि में ‘अल नीनो’ की मौजूदगी के चलते देश में लू वाले दिनों की संख्या में इजाफा हो सकता है। आसान शब्दों में कहें तो पहले की तुलना में इस बार लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। इस अनुमान की पुष्टि कुछ हद तक कोपरनिकस जलवायु बुलेटिन भी करता है। यह औद्योगिक-पूर्व औसत तापमान से 1.77 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था। 1850-1900 के बीच की अवधि को औद्योगिक-पूर्व समय माना जाता है। आइए जानते हैं कि मौसम विभाग क्यों कह रहा है कि इस साल सबसे ज्यादा गर्मी पड़ने वाली है।

ये घोषणा तब की गई है जब भारत पहले से ही अपनी बिजली की मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो गर्मी के मौसम में काफी बढ़ जाती है। रॉयटर्स के एक विश्लेषण में बताया गया कि 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले वर्ष में भारत का जलविद्युत उत्पादन कम से कम 38 वर्षों में सबसे तेज गति से गिरा है। आने वाले महीनों में भी जलविद्युत उत्पादन शायद सबसे कम रहेगा, जिससे कोयले पर निर्भरता बढ़ जाएगी। इससे वायु प्रदूषण अगर बढ़ेगा तो ये गर्मी में और योगदान देगा।

भारत के ज्यादातर इलाकाें में रहेगी गर्मी

IMD के पूर्वानुमान में कहा गया है कि पूर्व और उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्सों और उत्तर-पश्चिम के कुछ हिस्सों को छोड़कर भारत के ज्यादातर इलाकों में गर्मी ज्यादा ही रहेगी। अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से ऊपर रहेगा। इससे लोगों में गर्मी से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है, पानी की कमी हो सकती है, ऊर्जा की मांग बढ़ सकती है और पारिस्थितिकी तंत्र और वायु गुणवत्ता प्रभावित होगी। ऐसा अप्रैल से ही हो सकता है। उत्तर-पश्चिम मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों के कुछ हिस्सों में गर्मी की लहर ज्यादा लगने लगेगी और तपिश महसूस होनी शुरू हो जाएगी।

इस साल बारिश की संभावना कम

अल नीनो भारत में कम वर्षा और अधिक गर्मी का कारण बनती है। भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में मध्यम अल नीनो की स्थितियां अभी मौजूद हैं, जिसकी वजह से समुद्र की सतह के तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। समुद्र के ऊपर सतह की गर्मी समुद्र के ऊपर वायु प्रवाह को प्रभावित करता है। चूंकि प्रशांत महासागर पृथ्वी के लगभग एक तिहाई हिस्से को कवर करता है, लिहाजा इसके तापमान में बदलाव और उसके बाद हवा के पैटर्न में बदलाव दुनियाभर में मौसम को बाधित करता रहा है।

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उत्तर-पश्चिम और बांग्लादेश में हो सकती है भारी बारिश

यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि इस साल की जनवरी 175 वर्षों में सबसे गर्म जनवरी थी। हालांकि अगले सीजन के दौरान अल नीनो के कमजोर होने और ‘तटस्थ’ होने की संभावना है। कुछ मॉडलों ने मानसून के दौरान ला नीना की स्थिति विकसित होने की भी संभावना जताई है, जिससे पूरे दक्षिण एशिया में, विशेषकर भारत के उत्तर-पश्चिम और बांग्लादेश में वर्षा तेज हो सकती है। असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि को हीट वेव कहा जाता है।

गंभीर गर्मी की लहर घोषित कर सकता है मौसम विभाग

यदि मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो आईएमडी लू यानि हीट वेब्स की घोषणा करता है, जिसमें सामान्य अधिकतम तापमान से लगभग 4.5-6.4 डिग्री सेल्सियस का अंतर होता है। अगर वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो आईएमडी लू की घोषणा भी कर सकता है। यदि तापमान 47 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो ‘गंभीर गर्मी की लहर’ भी घोषित कर सकता है।

हवा का तापमान मानव शरीर के लिए घातक

लू में हवा का तापमान मानव शरीर के लिए घातक हो जाता है। भारत में गर्मी की लहरें आमतौर पर मार्च और जून के बीच दर्ज की जाती हैं और मई में चरम पर होती हैं। अल नीनो मौसम की स्थिति भी सामान्य से अधिक तापमान में योगदान करती है, जिससे गर्मी की लहरों में वृद्धि होती है। अप्रैल 2023 में पीएलओएस क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में गर्मी की लहरें अधिक “आवर्ती, तीव्र और घातक” हो रही हैं।

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भारत के 90% से अधिक हिस्से पर गंभीर प्रभाव

अप्रैल 2022 के डेटा से ये भी पता चला कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला असामान्य तापमान भारत के 90% से अधिक हिस्से पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि गर्मी के दिनों की संख्या और उनकी तीव्रता में वृद्धि से भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के साथ-साथ कृषि उत्पादन पर भारी लागत आ सकती है, जिससे आजीविका, खाद्य उत्पादन, बीमारी का प्रसार और बहुत कुछ प्रभावित हो सकता है।

मानसूनी हवाओं को कमजोर कर देता है अलनीनो

अल नीनो का एक बुरा असर यह भी होता है कि ये अरब सागर से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं को कमजोर कर देता है। इससे दिन में आसमान बिलकुल साफ दिखता है। गर्माहट लिए सूर्य की किरणें सीधे धरती पर पहुंचती हैं और देश में प्रचंड गर्मी और लू का कारण बनती हैं। पर अल नीनो का प्रभाव केवल भारत पर ही नहीं पड़ता। इस भौगोलिक घटना के चलते पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पेरू के तट से निकलती गर्म जलधारा के चलते हवा में गर्मी फैल जाती है। जिससे दुनिया भर में मौसम गर्म हो जाता है।

लोगों की मौत का कारण भी बनता है लू

आपको बता दें कि लू की घटनाएं लोगों की मौत का कारण भी बनती रही हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में लू से होने वाली मौतों के बारे में बात करें तो साल 2016 में इससे 723 लोगों की मौत हुई थी। उस साल सर्वाधिक तापमान 48.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। साल 2017 में लू से 236 लोगों की मौत हुई और सर्वाधिक तापमान 47.8 डिग्री से. रहा। 2018 में 8 लोग लू से मरे और सर्वाधिक तापमान 45.6 डिग्री से. रहा। 2019 में 28 लोगों की लू से मौत हुई और सर्वोच्च तापमान 47.3 डिग्री से. रहा। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020, 2021 और 2022 में लू से किसी की मौत नहीं हुई। जबकि 2023 में तीन लोग लू से मरे और सर्वाधिक तापमान 46.8 डिग्री से. रिकॉर्ड किया गया।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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