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प्राकृति से जुड़ा बांदना पर्व झारखंड और पश्चिम बंगाल मनाया जाने वाला साल का पहला पर्व है

बैल की भी कीजाती है पूजा, नहीं कराया जाता है इनसे काम…


आदिवासी समुदाय के ज्यादातर पर्व प्राकृति से जुड़े होते हैं. पूजा अर्चना में भी प्राकृति का समावेश होता है. साल की शुरुआत के साथ ही त्योहारों का सिलसिला भी शुरु हो गया है. भारखंड और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बांदना पर्व मनाया जाता है. पांच दिन तक चलने इस पर्व में पूरी तरह से प्राकृति को समर्पित होता है. पश्चिम बंगाल के आसनसोल शहर में यह त्यौहार बढ़ा ही धूमधाम से मनाया गया.

आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व

प्राकृति से जुड़े इस पर्व के बारे में दिलीप मुर्मू बताते हैं कि यह हमारा सबसे बड़ा पर्व है. इस पर्व की शुरुआत में गांव का पुजारी गांव के बाहर जहां पूजा स्थल में कुला(सूप) की पूजा करता है. जहां गांव के सभी लोग मौजूद होते हैं. पूजा समाप्त होने के बाद सभी लोग खुशी के साथ पुजारी को उसके घर में पहुंचा देते है और यही से शुरु होती है  पूजा की सारी विधि.

पौष माह के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है पर्व

पौष माह की अंतिम सप्ताह में मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी समुदाय के लोग अपने घरों की अच्छी तरह से सफाई कर इसे संस्कृति तौर पर सजाते हैं. पूजा की विधि शुरु होने के बाद लोग अपने-अपने घरों में दूसरा दिन मर्गमुरु की पूजा की जाती है. इसके साथ ही अपने पूर्वजों को याद करते हैं. यह त्यौहार मुख्य रुप से धान को काटने और सुरक्षित रखने के लिए मनाया जाता है.

ब्याही लड़कियां मायके आती हैं

दिलीप आगे बताते हैं कि यह त्योहार मुख्य रुप से ब्याही लड़कियों के लिए भी होता है. इस पर्व के दौरान लडकियां अपनी मायके आती हैं. जिसके कारण घरों में खुशी का माहौल रहता है. इसके साथ ही गांव के लोग ढोल, मांदर और नंगड़ा बजाते हुए नाच करते हुए पूरे गांव में घूमते हैं.

गाय की जाती है पूजा

प्राकृति से जुड़ें इस त्योहार में पशुओं का भी महत्व है. खेती करते वक्त हल जोतने के लिए बैल की जरुरत होती है. उसी बैल को इस समय सजाया जाता है. दिलीप बताते हैं कि इस वक्त बैलों को सजाकर घर के बाहर बांधा जाता है. इसके साथ ही उन्हें गुस्सा दिलाया जाता है. ताकि वह और नाचें. इसके साथ ही लोगों में यह मजाक चलता है कि किसके बैल को कितना गुस्सा आता है. गाय की भी पूजा की जाती है. गाय की सींगों और पांव में तेल लगाया जाता है. उसके बाद गाय की  पूजा की जाती है.

पीठा यह मुख्य पकवान

कोई भी पर्व पकवान के बिना अधूरा होता है. हर पर्व की तरह इस पर्व में भी खास पकवान बनाएं जाते हैं. दिलीप बताते हैं कि इस पर्व में चावल की गुन्डी से पीठा बनाया जाता है. पीठा वेज और नॉनवेज दोनों तरीके से बनाया जाता है. इसे साल के पत्ते पर रख कर पकाया जाता है. इसके साथ ही नाच गाना भी किया जाता है.

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तीर धनुष से निशाना लगाया जाता है

पर्व  के आखिरी दिन गांव के बाहर एक बांस के पर पीठा को बांधा जाता है. इस पीठा पर लोग तीर धनुष से निशाना लगाया जाता है. जो व्यक्ति सही निशाना लगाता है. वह विजेता होता है. उस विजेता  गांव की सेंटर में बने बैठक में कंधे पर बिठाकर नाच गाने के साथ  लेकर जाता जाता है. जहां उसे पुजारी आर्शीवाद देता है. इस तरह से चार से पांच दिन तक चलने वाला त्योहार खुशी-खुशी समाप्त हो जाता है.

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