सेहत

हमारे देश में हर तीसरी महिला होती है पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम की शिकार

जाने क्या है पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम


आज भले ही हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में थोड़ा सुधार आ गया हो. लेकिन अगर हम बात महिलाओं की स्वास्थ्य की करें तो उसमें आज भी कुछ खास नहीं सुधार नहीं दिखाई देता है.  शहरी हो या ग्रामीण हर जगह की महिलाओं को कुछ ऐसी बीमारियां होती है जिनको वो नज़रअंदाज़ कर देती है. जिसका परिणाम यह होता है कि उनको भविष्य में बहुत सारी तकलीफों से गुजरना पड़ता है. हमारे देश में बहुत सारी महिलाएं अपने जीवन के किसी न किसी उम्र में अपने पेट के निचले हिस्से के दर्द से परेशान होती है. जिसे वो पीरियड्स का दर्द समझ कर नज़रअंदाज़ कर देती है. कुछ महिलाओं में पीरियड्स के दौरान या ज्यादा देर तक बैठे रहने से यह समस्या बढ़ जाती है. अगर किसी भी महिला में ये दर्द छह महीने से अधिक समय तक रहता है तो उससे पेल्विक कन्जेशन सिंड्रोम की समस्या हो सकती है. जिसे उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए हमारे देश में हर 3 में से 1 महिला इस बीमारी की शिकार होती है.

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बीमारी के कारण

वैसे अगर देखे तो पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम की बीमारी का ठोस कारण अब तक मेडिकल साइंस में सामने नहीं आया है परन्तु डॉक्टर के अनुसार गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं में होने वाले हार्मोंस में बदलाव और वजन बढ़ने के कारण उनके कूल्हे के आस पास के हिस्सों में बदलाव आता है. गर्भाशय की नसों पर दबाव बढ़ने के कारण ये कमजोर होकर फैल जाती हैं. जिसकी कारण से वॉल्व बंद नही होते और रक्त वापस शिराओं में आ जाता है. इसी कारण से पेल्विक एरिया में खून के दबाव के कारण दर्द बढ़ जाता है.  साथ ही आपको ये भी बात दे कि इसके इलाज के लिए किसी भी तरह के ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती. बस डॉक्टर के द्वारा खराब नसों को बंद कर दिया जाता है.

पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम के लक्षण उपचार

डॉक्टरों के अनुसार, पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम का सबसे प्रमुख लक्षण पेट के निचले हिस्से में दर्द होना है. यह दर्द महिलाओं को अधिक देर तक बैठने या खड़े रहने के कारण होता है. इसके अलावा पेल्विक एरिया में लगातार दर्द होता रहता है। और महिलाओं को पेट के निचले हिस्से में मरोड़ अनुभव होता है। पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि ये नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया है। इसके बाद थोड़ा दर्द होता है, जो कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। साथ ही डॉक्टर के द्वारा खराब नसों को बंद कर दिया जाता है. जिससे कि उनमें रक्त जमा न हो पाए.

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