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Durga Puja : दुर्गा पूजा 2024, जानें तिथि, इतिहास और पूजा की पूरी विधि

Durga Puja, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड और ओडिशा में मनाया जाता है। यह पर्व मां दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो शक्ति, साहस और विजय की देवी मानी जाती हैं।

Durga Puja : दुर्गा पूजा का धार्मिक महत्व और प्रमुख अनुष्ठान, जानें पूरी जानकारी

Durga Puja, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड और ओडिशा में मनाया जाता है। यह पर्व मां दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो शक्ति, साहस और विजय की देवी मानी जाती हैं। दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से भी खास स्थान रखती है। आइए, इस महापर्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Durga Puja
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दुर्गा पूजा 2024 की तारीख

2024 में, इस साल 9 अक्टूबर 2024 से शुरू होगी और इसकी समाप्ति 12 अक्टूबर को विजयादशमी पर होगी। इस दौरान, देवी दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और पांच दिनों तक विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि दशमी के दिन प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।

दुर्गा पूजा का इतिहास

दुर्गा पूजा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह पर्व पौराणिक कथा से संबंधित है, जिसमें असुरों के राजा महिषासुर ने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई देवता नहीं मार सकता। इस वरदान के कारण महिषासुर ने धरती पर आतंक फैलाना शुरू कर दिया। तब देवी दुर्गा ने महिषासुर के साथ युद्ध किया और उसे पराजित कर धरती पर शांति स्थापित की।

माना जाता है कि मां दुर्गा को इस युद्ध में नौ दिनों तक लगातार लड़ना पड़ा था, और दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध किया था। इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसी कारण दुर्गा पूजा को महिषासुर मर्दिनी पूजा भी कहा जाता है।

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दुर्गा पूजा के प्रमुख रिचुअल्स (रीति-रिवाज)

दुर्गा पूजा के दौरान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं, जो इसे बेहद खास बनाती हैं। इन रिचुअल्स को जानना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये पूजा की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करते हैं।

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1. प्रतिमा स्थापना (प्रतिष्ठा)

पूजा की शुरुआत षष्ठी के दिन होती है, जब देवी दुर्गा की प्रतिमा का प्रतिष्ठापन किया जाता है। इस दिन पूजा पंडालों और घरों में देवी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। देवी के साथ भगवान गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती की भी मूर्तियाँ होती हैं।

2. सप्तमी पूजा

सप्तमी के दिन देवी दुर्गा को नवरूपों में पूजा जाता है। इस दिन नवपत्रिका (जो देवी के नौ रूपों का प्रतीक है) का स्नान कराया जाता है और पूजा की जाती है। नवपत्रिका में केले का पेड़, हल्दी का पौधा और अन्य पवित्र पौधे होते हैं, जिन्हें एक साथ बांधकर स्नान कराया जाता है।

3. अष्टमी पूजा

अष्टमी का दिन दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन भी किया जाता है, जिसमें कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा, इस दिन संधि पूजा होती है, जो अष्टमी और नवमी के बीच की विशेष पूजा मानी जाती है। यह वह समय होता है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।

4. नवमी पूजा

नवमी के दिन देवी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं और मां दुर्गा की पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। नवमी के दिन विशेष रूप से देवी दुर्गा के महाशक्ति रूप की पूजा की जाती है।

5. विजयादशमी

दसवें दिन, जिसे विजयादशमी कहते हैं, देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। भक्तजन देवी को विदा करते समय उनके घर वापसी की कामना करते हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर आशीर्वाद लेते हैं, जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। यह विशेष रूप से बंगाल में महिलाओं द्वारा किया जाता है।

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दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महत्व

दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दौरान पंडालों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। नृत्य, संगीत, नाटकों और रंगोली प्रतियोगिताओं के साथ यह पर्व कला और संस्कृति का अनूठा संगम होता है।

-कला और मूर्तिकला: हर साल विभिन्न पंडालों में अलग-अलग थीम पर देवी दुर्गा की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जो एक अद्वितीय कला का प्रदर्शन करती हैं। कारीगर महीनों पहले से ही मूर्तियों को बनाने में जुट जाते हैं, और पंडालों को भव्य रूप से सजाया जाता है।

-भोग और प्रसाद: दुर्गा पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के भोग और प्रसाद बनाए जाते हैं। खासकर बंगाल में खिचड़ी, लाबड़ा (मिश्रित सब्जियों का व्यंजन), और पेड़ा प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। भक्तगण इन्हें प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे एक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा मानते हैं।

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