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Japan bans Ponytail Row : कभी कपड़े, कभी फ़ोन तो कभी चोटी – क्या हर छोटी बात पर हो जाते हैं लड़के एक्साइट?

Japan bans Ponytail Row : जापान के स्कूलों में पोनीटेल बैन से भारत में कई संस्थानों में जींस बैन तक, कहाँ हैं महिलाओं के अधिकार ?


Highlights-

.जापान के स्कूलों में पोनीटेल हेयरस्टाइल बैन का मामला आया सामने।

. छात्राओं को स्कूल प्रांगण में पोनीटेल हेयरस्टाइल बनाने पर मनाही।

. लड़कियों के पोनीटेल देख कर पुरुष छात्र हो जाते हैं उत्तेजित, इस तरह के फुहर कारण बताकर किया गया पोनीटेल बैन।

. भारत में भी कई जगहों पर हैं लड़कियों के जींस, स्कर्ट हैं बैन।

Japan bans Ponytail Row : महिलाओं के लिये हमेशा ही यह समाज मुश्किल रहा है। खासकर जब महिलाओं की आकांक्षाओं की बात होती है तो उन्हें हमेशा दबाने की कोशिश की जाती है। जब बात महिलाओं के पहनावे – ओढ़ावे की हो तो इस मामले को हमारा पुरुष प्रधान समाज और गहराई से लेता है। कुछ दिन पहले जापान कि एक खबर खूब वायरल हुई। खबर ये थी कि जापान के स्कूलों में छात्राओं को पोनीटेल हेयरस्टाइल बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया हैं। कारण ऐसा बताया गया जिसका लॉजिक से तो दूर – दूर तक कोई नाता नहीं है।

कहा ये गया कि स्कूलों में पुरुष छात्र छात्राओं की पोनीटेल हेयरस्टाइल से उत्तेजित हो जाते हैं। काफी शोध करने के बाद ये बात सामने निकलकर आई कि ये नियम तो जापान में 11 सालों से पालन किया जा रहा है। जापान के कई मीडिया संस्थानों में इसे लेकर चर्चा भी की , वहाँ के कई शिक्षक इस पर विरोध भी जता चुके हैं लेकिन सबका यही कहना है कि चूकि इसे लेकर अधिक रोकथाम नहीं हो रहा है इसलिए इस नियम को छात्राओं को मानना ही पड़ता है।

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आपको हम बता दें कि महिलाओं के खिलाफ इस तरह के विचित्र नियम और हर बार पुरूषों के बचाव में दिये गये अजीबो – गरीब कारण दर्शाते हैं कि हमारी मानसिकता किस ओर जा रही है। ये सब जानने के लिये आपको अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, हमारे देश में ही ऐसे नियम बनाये गए हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा ।

चलिए आपको हमारे देश के कुछ हिस्सों में लेकर चलते हैं जहाँ सवाल खड़े हुये तो मात्र महिलाओं के पहनावे पर । जहाँ निशाना बनाया गया तो सिर्फ लड़कियों के पोशाक को।

कहने के लिये तो हम स्मार्ट कन्ट्री में रहते हैं। कहने के लिये तो हम आज़ाद हैं लेकिन भारत में कई ऐसी जगहें हैं जहाँ लड़कियों को दूसरों के फैसले से चलना पड़ता है। कई राज्यों के कॉलेजों में खास करके लड़कियों के लिये पहनावे – ओढ़ावे पर प्रतिबंध लगे हैं।

हरियाणा का आदर्श कन्या महाविद्यालय जो लड़कियों के साथ हो रहे अपराध को उनके कपड़ों को दोषी मानता है। महाविद्यालय के प्राधिकार (authority) का मानना है कि लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने से छेड़खानी के मामले सामने आते हैं और इसलिए उन्हें तन ढ़कना चाहिये। इसी सोच के साथ हरियाणा के इस कन्या महाविद्यालय में लड़कियों को कॉलेज जिन्स और स्कर्ट पहन के आना सख्त मना है और इतना ही नहीं महाविद्यालय के इस नियम को तोड़ने पर दंड के रूप में 100 रुपये का जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

चेन्नई के श्री साईराम कॉलेज में लड़कियों को बाल खोलकर कॉलेज कैम्पस में आने पर प्रतिबंध है। साथ ही, जीन्स, टॉप जैसे प्रधान पहन कर कॉलेज परिसर में आना सख्त मना है।

राजस्थान के बाड़मेर में सिर्फ जीन्स ही नहीं बल्कि लड़कियों को फोन पर बात करने पर भी पाबंदी है।

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ऐसा आप कतई न सोचें कि ये तो कॉलेजों के नियम हैं जिसे मानना हर छात्र का धर्म है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसे नियम कानून मात्र महिला छात्राओं के लिये लागू किये गये हैं। पुरुष छात्र जो चाहें वो पहन कर आ सकते हैं।

महिलाओं के परिधानों को लेकर इतने सख्त नियम – कानून बनाने वाले शायद इस बात से जानबूझ कर अंजान बनने की कोशिश करते हैं कि समाज में महिलाओं पर हुये अपराध का कारण कभी उनका पहनावा – ओढावा है ही नहीं। क्योंकि जब महिलाओं पर हुये अपराध पर बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ( NCRB ) के अनुसार देश में हर घंटे 4 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना होती है। जिसमें काफी संख्या में छोटी बच्चियाँ हैं। इन दो दिनों में भी देश भर में ऐसी भयानक बलात्कार की घटना सामने आई है जिनका महिलाओं के कपड़ों से कोई लेना देना नहीं है।

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क्योंकि ये इसी पढ़े – लिखें समाज की सोच है कि शहरों में महिलायें छोटे कपड़ें पहनती हैं, गाँवो में महिलाओं को छोटे लिवास में नहीं देखा जाता। अगर इन्हीं की बात को मान लें तब तो उन्नाव का केस होना ही नहीं चाहिये था, क्योंकि उन्नाव तो उप्र का एक ग्रामीण क्षेत्र है और कठुआ के केस को तो यहाँ बिल्कुल नज़रअंदाज़ नहीं किया सकता है जहाँ आठ साल की एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार किया जाता है।

2020 की NCRB की रिपोर्ट की मानें तो भारत में 2020 में प्रत्येक दिन 77 महिलाओं के साथ बलात्कार के रिपोर्ट दर्ज किये गये हैं और आपको बता दें कि ये मात्र कागज़ी आँकड़ा है असलियत तो और भी दर्द बयां करती हैं।

देश में लड़कियों के परिधान के चुनाव की स्वतंत्रता पर कई बार हम महिलाओं द्वारा ही चुने गये प्रजातंत्र के रक्षकों ने निशाना बनाया है। आपको उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का महिलाओं के रिप्पड जीन्स को लेकर वो विवादास्पद बयान तो याद ही होगा। मुख्यमंत्री जी बड़े चौड़ में एक जनसभा को सम्बोधित करते हुये अपने साथ प्लेन में यात्रा करने वाली महिला के चरित्र को बड़े मज़ाकिया अंदाज़ में पेश करते हैं। चलिए आपकी याद एक बार ताजा कर देते हैं।

चलिये लगे हाथ आपको हम द प्रिंट का 2019 का एक सर्वे दिखाते हैं जिसमें बलात्कार की शिकार महिलाओं को ही आरोपी ठहराया गया है। इससे साफ – साफ पता चलता है कि किस तरह हमारा समाज महिलाओं पर सारे दोष मढ़ने के लिए उनके कपड़ों को ज़रिया बनाता है और अपराध और अपराधी दिमाग को उचित ठहराया है।

हरियाणा के सोनीपत में साल 2018 में पंचायत ने यह कहकर लड़कियों के जीन्स और फोन पर पाबंदी लगाई कि “जीन्स पहनने और फोन रखनी वाली लड़कियाँ घर से भाग जाती हैं’’।

पूरी खबर आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

चाहे जापान के स्कूलों में बैन पोनीटेल हेयरस्टाइल हो या भारत के कई जगहों पर बैन जीन्स,स्कर्ट्स हों। हर बार पुरुषों के बचाव में महिलाओं को प्रतिबंधित कर देना मात्र अन्याय ही नहीं एक खोखले समाज का प्रतिबिंब भी है।

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