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Chhath 2022 in Bihar: महाभारत - रामायण से जुड़ी है छठ पूजा की कहानी । जानें इस महापर्व की विशेषता।
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Chhath 2022 in Bihar: महाभारत – रामायण से जुड़ी है छठ पूजा की कहानी । जानें इस महापर्व की विशेषता।

Chhath 2022 in bihar : छठी मैया और सूर्यदेव की की जाती है छठ में उपासना, बिहारियों का है महापर्व


Highlights – 

. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार छठ पूजा का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी की दिवाली के छः दिन बाद मनाया जाता है।

.  इस साल छठ पूजा 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक मनाई जाएगी।

Chhath 2022 in bihar : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार छठ पूजा का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी की दिवाली के छः दिन बाद मनाया जाता है। इस साल छठ पूजा 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक मनाई जाएगी।

 आपको बता दें कि छठी मैया और सूर्य देव की उपासना का ये त्योहार लोकपर्व मुख्यतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और नेपाल के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। लेकिन छठ को शुद्ध रूप से बिहारी पर्व कहा जाता है।

मान्यताओं के अनुसार हमारे देश में रखे जाने वाले व्रतों में से एक कठिन व्रत छठ पूजा का होता है। बिहार के लोगों के अनुसार भी यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। ये बात तो हम सभी लोग जानते हैं कि छठ पूजा का त्योहार पवित्रता, सादगी और आस्था के साथ मनाया जाता है। इसलिए आप भी इस त्योहार से जुड़ी बातों को जरूर जाना चाहते होंगे। तो चलिए आज हम आपको छठ पूजा के अवसर पर छठ के उन सवालों के बारे  में बताएंगे, जिनका जवाब अक्सर लोग जाना चाहते है।

की जाती है सूर्य देव की उपासना

छठ के दिन भगवान सूर्य देवता की पूजा की जाती है जो की सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं। इतना ही नहीं इसके साथ छठ के दिन छठी मैया की पूजा भी की जाती है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी माता अपनी संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ और दीघार्यु भी बनाती हैं। बता दें कि छठ के दिन भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है जो कि अपने आप में बेहद ख़ास है।

भगवान सूर्य देवता

की जाती है कात्यायनी मां की पूजा

ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है और प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी को षष्‍ठी नाम दिया गया है। बता दें कि षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है इतना ही नहीं पुराणों के अनुसार इन्हे ही कात्यायनी माता भी कहा जाता है जिनकी पूजा हम नवरात्र के दौरान भी करते हैं।

छठ पूजा

महिलाओं का है विशेष योगदान

ये बता तो हम सभी लोग जानते हैं कि हमारे देश में महिलाएं अपने कष्ट सहकर भी अपने परिवार के कल्‍याण की न सिर्फ कामना करती हैं, बल्कि इसके लिए तरह तरह के यत्न करने में भी पुरुषों से आगे रहती हैं। आपको बता दें कि वैसे तो छठ पूजा कोई भी कर सकता है फिर चाहे वो महिला या पुरुष। लेकिन अधिकतर हमारे देश में महिलाएं अपने बच्चों की कामना, संतान के स्‍वास्‍थ्‍य और उनके दीघार्यु होने के लिए पुरुषों की तुलना में ज्यादा पूजा पाठ करने में बढ़ चढ़कर भाग लेती हैं।

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सूर्य देव करते हैं मनोकामनाएं पूरी

ये बात तो हम सभी लोग जानते हैं कि बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य की पूजा के साथ छठी मईया की भी पूजा की जाती है। जो की इस पूजा के मामले में बिहार को खास बना देता है। हमारे देश में जहां भी प्राचीन और भव्य सूर्य मंदिर है उनमें से बिहार भी प्रमुख है। बता दें कि बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। यहां लोग दूर दूर से अपनी मनोकामना लेकर और दर्शन करने आते हैं। यहां खास कर कार्तिक और चैत्र महीने में छठ पूजा के दौरान व्रत करने वालों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।

छठ से जुड़े किस्से

पुत्र प्राप्ति के लिए

छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।

उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलाते हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।

रामायण से जुड़ा किस्सा

 एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।

महाभारत से जुड़े किस्से

एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।

बिहार में क्यों है छठ पूजा के विशेष महत्व

बिहार में छठ पूजा की प्रथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण का संबंध बिहार के भागलपुर से माना गया है। सूर्य यहां सच्ची श्रद्धा से सूर्य देव की उपासना करते थे और पानी में घंटों तक रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे। माना जाता है कि षष्ठी और सप्तमी तिथि को सूर्य विशेष आराधना करते थे। मान्यता है कि तब से ही यहां छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई थी।इसके अलावा सूर्य पुराण में भी यहां के देव मंदिरों का उल्लेख मिलता है, इसलिए बिहार में छठ पूजा का विशेष महत्व होता है।

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