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लॉकडाउन और बेरोजगारी: कोरोना काल में हुए कई सपने खाक
काम की बात

लॉकडाउन और बेरोजगारी: कोरोना काल में हुए कई सपने खाक

क्या बेरोजगारी से जल्दी निजात मिल पाएगी?


साल 2020 लगभग हर व्यक्ति के लिए पहाड़ की तरह हो गया है. एक-एक दिन लोगों के ऊपर कहर की तरह टूट रहे हैं. कहीं कोरोना होने का खौफ है तो कहीं रोटी खाने की तंगी, कहीं जान बचाने की  जद्दोजहद तो कहीं नौकरी. हर कोई बस अपने को बचाने की केशिश में है. इसी बचाने की तलाश में तो कई लोग अपनी जान दे दे रहे हैं. महामारी के बाद अब  बेरोजगारी लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है. देश में बेरोजगारी का 45 साल का रिकॉर्ड तो पहले ही टूट गया था. स्थिति यह हो गई की बेरोजगारी दर 6.5 तक पहुंच गई . इस हिसाब से देश का एक बड़ा हिस्सा पहले ही जॉब से महरुम था और उसकी तलाश कर रहा था. हालात पहले ही बुरे थे और अब कोरोना ने इसको गर्त में पहुंचा दिया है. बेरोजगारी के मामले में अभी सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है. लेकिन खबरों में  सर्वे कंपनियों के द्वारा कुछ आंकड़े पेश किए जा रहे हैं. जिसके आधार पर कोविड 19 के दौरान बेरोजगारी का मोटा-मोटा आकलन किया जा सकता है. वैसे बेरोजगारी दर हमेशा काम ढूंढने वाले के आंकडे के अनुसार पेश की जाती है. लेकिन जो लोग रेहडी, खोमचा, रोड़ के किनारे सामान बेचकर अपना गुजारा करते थे क्या उनका अनुमान लगा पाना अभी संभव है. लॉकडाउन में कितने ही लोग अपने घर वापस चले गए कई लोगों की तो पूंजी भी खत्म हो गई होगी. क्या ये लोग दोबारा इतना पैसा जुटा पाएंगे कि अपना कामधंधा शुरु कर सके.

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कोरोना के दौरान बढ़ती बेरोजगारी 

कोरोना महामारी ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया है. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा हैं. जनवरी की पहली तिमाही में जीडीपी दर मात्र 3.1% थी. लॉकडाउन की शुरुआत 24 मार्च से  हुई इसके साथ ही नौकरियों के जाने का सिलसिला भी शुरु हो गया. नौकरी चले जाने के गम में कई लोगों ने जान भी दे दी. लेकिन बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती गई. कोरोना के दौरान ही सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी(सीएमईआई) के आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी की दर अप्रैल और मई में 20 से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. राज्यों में क्रमशः बेरोजगारी दर लॉकडाउन के दौरान ही बढ़ी है. सबसे ज्यादा झारखंड में. जहां मई महीने में बेरोजगारी दर 59.2 थी, जिसके अनुसार यहां 10 में से 6 लोग बेरोजगार है, बिहार में 44.9, पंजाब में 30. 7 फीसदी है. वहीं दसूरी ओर तमिलनाडू में गिरावट देखी गई है अप्रैल महीने में बेरोजगारी की गिरावट 16.8 फीसदी थी. जबकि जून में बेरोजगारी सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई. सीएमईआई के अनुसार जून के पहले सप्ताह में नौकरी खोने वालों की तादात 8 प्रतिशत तक चली गई है. वहीं दैनिक जागरण की एक खबर के अनुसार लॉक डाउन के बाद से लोगों को पलायन शुरु हो गया. जिसके कारण लोगों ने नौकरी की तलाश करना भी बंद किया है. लेकिन वहीं दूसरी ओर देखा गया है कि बीए, एमए किए लोग मनेरगा में मजदूरी करने को मजबूर है. शहरों में जहां नौकरी करते थे वहां से निकाल दिया और अब उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है.

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नौकरियों में कटौती

बेरोजगारी तो पहले ही थी  लेकिन महामारी ने लोगों को पूरी तरह से तोड़ दिया है. कोरोना के दौरान लाखों की संख्या में लोगों को अपनी नौकरियां से महरुम होना पड़ा. खबरों की माने तो मीडिया कंपनी हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपने 27 प्रतिशत स्टॉफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. भडास वेबसाइट की खबर के अनुसार देश के नंबर वन हिंदी दैनिक अखबार दैनिक जागरण ने अपने गया संस्करण में लगभग डेढ दर्जन स्टॉफ से इस्तीफा ले लिया . इस्तीफा लेने वाला मामला सिर्फ यहीं नहीं हुआ है कई मीडिया संस्थाओं में लोगों से जबर्दस्ती इस्तीफा लिखवाया जा रहा है. दैनिक जागरण से निकाले गए लोगों का कहना है कि सारी जवानी यहां दे दी अब जब बच्चों का भविष्य संवारने का मौका आया तो नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.

कैब कंपनी ओला ने कोरोना के दौरान अपने 1400 स्टॉफ की छटनी की बात कही. अगर छटनी की बात की तो निकाला भी जरुर होगा क्योंकि लॉकडाउन के बाद से ही कैब की आवाजाही पर रोक लगा दी गई थी. फूड इंडस्ट्री का भी लगभग यही हाल है. फूड डिलीविरी कंपनी स्विगी ने अपने 1,100 स्टॉफ को तीन महीने के सैलरी देकर काम से निकाल दिया. यह तो अधिकारिक तौर पर जानाकारी दी गई . अनाधिकारिक तौर पर कई लोगों को नौकरियों से निकाला गया है.जिनके बारे में हमें रोज कहीं न कहीं से जानकारी मिलती है. इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी है जो कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे थे.  लॉकडाउन के दौरान उनका कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो गया और दोबारा जॉब मिलनी मुश्किल हो गई. तो यह लोग भी अबे बेरोजगार हो गए. 

लॉकडाउन, तनाव, बेरोजगाजी और आत्महत्या

लॉकडाउन के बाद एक के बाद एक जाती नौकरियों ने लोगों को तनाव की तरफ ढकेल दिया.  इसी तनाव के कारण ही कई लोगों ने आत्महत्या कर ली. ज्यादातर आत्महत्या का एक ही कारण है  नौकरी जाना. सटीक आंकडे तो बता पाना मुश्किल है. लेकिन जानकारों की माने तो 2008 की बेरोजगारी के बाद आएं आत्महत्या के आंकडो से अब के आंकडे ज्यादा हो सकते है. 13 मई को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार चंडीगंड में 47 दिनों में 12 लोगों ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद इंडियन एक्सप्रेस में 20 मई को छपी एक खबर के अनुसार गुजरात के सूरत में 20 साल लड़के ने नौकरी जाने के कारण आत्महत्या कर ली. लड़का आसाम का रहने वाला था.  तनाव में आकर उसने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली. 

महामारी के दौरान लॉक डाउन और नौकरी का चला जाना एक-एक करके लोगों को तनाव की तरफ खींचता जा रहा है. यूनाईट न्यूज ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार बोकारो के एक युवक ने लॉक डाउन में फंस जाने और बाद में नौकरी चले जाने के कारण आत्महत्या कर ली. खबर के अनुसार संजय पाठक लॉकडाउन से पहले अपने भाई के घर बोकारो आया था. लेकिन अचानक हुए लॉकडाउन के कारण वह गिरिडीह प्लांट में काम करने वापस नहीं जा सका. इसके बाद उसकी नौकरी चली गई. नौकरी चले जाने के बाद वह अपने परिवार के लिए चितिंत होने लगा. धीरे-धीरे तनाव का शिकार होने लगा और एकदिन फांसी लगा ली. आत्महत्या और तनाव की कड़ी में सिर्फ मजदूर या रेहडी लगाने वाली ही नहीं है ब्लकि इसकी जद में तो बड़ी-बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले लोग भी आ चुके हैं. कुमुदी ऑनलाइन की खबर के अनुसार आईटी कंपनी में काम करने वाली वीना जोसेफ ने नौकरी चली जाने के कारण आत्महत्या कर ली. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब बेरोजगारी के कारण लोग तनाव में आकर आत्महत्या कर ले रहे हैं. साल 2000 से 2011 के बीच देखा गया कि विश्व के अन्य-अन्य हिस्सों में बेरोजगारी के कारण आत्महत्या का प्रतिशत 20% बढ़कर 30% हो गया था. इसलिए जरुरी है इस बुरे वक्त में मजबूती के साथ एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़े ताकि किसी को अपनी जान न देनी पड़ी.

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