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Thaipusam 2026: थाईपूसम पर्व 2026, आस्था, तप और भक्ति का अनोखा उत्सव

Thaipusam 2026, थाईपूसम 2026 हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो मुख्य रूप से भगवान मुरुगन (कार्तिकेय / स्कंद) को समर्पित होता है।

Thaipusam 2026 : थाईपूसम पर्व 2026, इतिहास, कथा और धार्मिक मान्यताएं

Thaipusam 2026, थाईपूसम 2026 हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो मुख्य रूप से भगवान मुरुगन (कार्तिकेय / स्कंद) को समर्पित होता है। यह पर्व तमिल समुदाय में विशेष श्रद्धा के साथ मनाया जाता है और भारत के अलावा श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और अन्य देशों में भी बड़े स्तर पर आयोजित होता है। थाईपूसम का पर्व तमिल माह ‘थाई’ की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जनवरी या फरवरी में पड़ती है। वर्ष 2026 में भी थाईपूसम गहरी भक्ति, तपस्या और आध्यात्मिक अनुशासन के साथ मनाया जाएगा।

थाईपूसम का धार्मिक और पौराणिक महत्व

हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, थाईपूसम वह पावन दिन है जब माता पार्वती ने भगवान मुरुगन को दिव्य अस्त्र ‘वेल’ (भाला) प्रदान किया था। इसी वेल की सहायता से भगवान मुरुगन ने सूरपद्मन नामक असुर का वध किया था। यह असुर अहंकार, अज्ञान और अधर्म का प्रतीक था। इसलिए थाईपूसम को बुराई पर अच्छाई की जीत और आत्मिक शुद्धि का पर्व माना जाता है।

‘थाईपूसम’ शब्द दो तमिल शब्दों से मिलकर बना है—

  • थाई: तमिल कैलेंडर का एक महीना
  • पूसम: एक विशेष नक्षत्र, जो इस दिन पूर्ण चंद्रमा के साथ होता है

इस खगोलीय संयोग को अत्यंत शुभ माना जाता है।

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भगवान मुरुगन का महत्व

भगवान मुरुगन को युवा शक्ति, साहस, ज्ञान और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। वे युद्ध के देवता होने के साथ-साथ आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी हैं। मान्यता है कि थाईपूसम के दिन सच्चे मन से भगवान मुरुगन की पूजा करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और मानसिक व आत्मिक बल प्राप्त होता है।

व्रत और तपस्या की परंपरा

थाईपूसम से पहले कई भक्त 10 दिन, 21 दिन या 41 दिन का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे सात्विक जीवन अपनाते हैं, शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं और नशे व नकारात्मक व्यवहार से दूर रहते हैं। यह व्रत शरीर के साथ-साथ मन और आत्मा को शुद्ध करने का माध्यम माना जाता है।

कवड़ी अट्टम का महत्व

थाईपूसम की सबसे प्रसिद्ध और विशिष्ट परंपरा है कवड़ी अट्टम। ‘कवड़ी’ का अर्थ होता है बोझ या भार। भक्त इसे अपने कंधों पर उठाकर मंदिर तक यात्रा करते हैं। यह कवड़ी लकड़ी, फूलों, पंखों या धातु से बनी हो सकती है। कवड़ी उठाना भगवान मुरुगन के प्रति कृतज्ञता, प्रायश्चित और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

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शरीर छेदन की परंपरा

कुछ भक्त थाईपूसम के दिन शरीर छेदन (पियर्सिंग) भी करते हैं, जैसे जीभ, गाल या त्वचा में छोटे भाले या हुक लगाना। यह प्रक्रिया देखने में कठिन लग सकती है, लेकिन इसे गहरी आस्था और ध्यान की अवस्था में किया जाता है। भक्तों का विश्वास है कि भगवान मुरुगन की कृपा से उन्हें इस दौरान पीड़ा नहीं होती। यह आत्मसंयम और इंद्रिय-नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है।

थाईपूसम कैसे मनाया जाता है

थाईपूसम के दिन भक्त सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और भगवान मुरुगन के मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिरों में विशेष अभिषेक, आरती और भजन-कीर्तन होते हैं। भक्त दूध, फल, फूल और नारियल अर्पित करते हैं। कई लोग दूध के कलश (पालकुडम) लेकर मंदिर तक पदयात्रा करते हैं।

प्रमुख थाईपूसम उत्सव स्थल

भारत में थाईपूसम विशेष रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है। पालनी, तिरुचेंदूर, तिरुत्तणी, स्वामिमलै और पझमुदिरचोलै जैसे मुरुगन मंदिरों में इस दिन विशाल भीड़ उमड़ती है।
भारत के बाहर मलेशिया के बाटू केव्स में थाईपूसम का उत्सव विश्व प्रसिद्ध है, जहां लाखों श्रद्धालु एक साथ इस पर्व में भाग लेते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

थाईपूसम केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सेवा का भी प्रतीक है। इस दिन कई स्थानों पर निःशुल्क भोजन, चिकित्सा शिविर और सेवा कार्य किए जाते हैं। यह पर्व लोगों को अनुशासन, धैर्य और सामूहिक सहयोग का संदेश देता है।

आधुनिक जीवन में थाईपूसम का संदेश

आज के तनावपूर्ण और भागदौड़ भरे जीवन में थाईपूसम हमें आत्मसंयम, धैर्य और आंतरिक शक्ति का महत्व सिखाता है। यह पर्व बताता है कि सच्ची विजय बाहरी शत्रुओं पर नहीं, बल्कि अपने भीतर की नकारात्मकताओं पर होती है। थाईपूसम 2026 आस्था, तपस्या और आध्यात्मिक चेतना का महापर्व है। यह भगवान मुरुगन के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण को दर्शाता है। थाईपूसम का मूल संदेश है—जब मन शुद्ध हो, संकल्प दृढ़ हो और भक्ति सच्ची हो, तो जीवन की हर बाधा को पार किया जा सकता है। यही इस पावन पर्व की सबसे बड़ी सीख है।

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