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Gorilla Glass: कॉर्निंग इंक कंपनी ने बनाया था गोरिल्ला ग्लास, लेकिन न करें ये एक गलती, फोन हो जाएगा कबाड़ा

Gorilla Glass: गोरिल्ला ग्लास अकाली-एल्युमिनोसिलिकेट की एक पतली शीट है जिसे आयन-एक्सचेंज मेथड के जरिए मजबूत किया जाता है। लेकिन ये कोई नया आविष्कार नहीं है, इसे 1960 में कॉर्निंग इंक द्वारा विकसित किया गया था।

Gorilla Glass: फोन की खूबसूरती को बनाए रखता गोरिल्ला ग्लास, जानें कैसे पड़ा नाम

स्मार्टफोन हर यूजर की जरूरत है। हर यूजर चाहता है कि एक बार के खर्च में एक बढ़िया डिवाइस खरीद लिया जाए। एक बार मोटी रकम खर्च कर लेने के बाद हर यूजर के लिए उसका स्मार्टफोन जान से भी ज्यादा प्यारा होता है। फोन की सेफ्टी हर किसी के लिए जरूरी है। यही वजह है कि यूजर फोन को प्रोटेक्ट करने के लिए कवर से लेकर स्क्रीन के लिए स्क्रीन गार्ड तक का जुगाड़ कर रखता है।

किसी भी स्मार्टफोन के लिए उसका डिस्प्ले ही सबसे सेंसेटिव पार्ट होता है। एक बार फोन से हाथ गिरा नहीं कि यूजर को हजारों का खर्चा बढ़ जाता है। क्या आपने कभी सोचा है फोन के डिस्प्ले के लिए आने वाला गोरिला ग्लास आखिर काम कैसे करता है। क्यों उसका नाम गोरिल्ला पड़ा और उसकी 1960 में कॉर्निंग इंक ने बनाया था गोरिल्ला ग्लासखासियत क्या है? आइए हम आपको सब कुछ बताते हैं-

पहले दिया गया था कॉर्निंग का नाम

दरअसल, गोरिल्ला ग्लास अकाली-एल्युमिनोसिलिकेट की एक पतली शीट है जिसे आयन-एक्सचेंज मेथड के जरिए मजबूत किया जाता है। लेकिन ये कोई नया आविष्कार नहीं है, इसे 1960 में कॉर्निंग इंक द्वारा विकसित किया गया था। डेवलप किए जाने पर इसे कॉर्निंग नाम दिया गया था। हालांकि, तब के इसके प्रैक्टिकल एप्लिकेशन ऑटोमोटिव, एविएशन और फार्मास्युटिकल एरिया तक सीमित थे। जहां मजबूत और लाइटवेट ग्लास की जरूरत थी।

ट्रेडमार्क के लिए ‘गोरिल्ला ग्लास’ का किया इस्तेमाल

स्मार्टफोन्स में गोरिल्ला ग्लास आने की जहां तक बात है तो ये 2006 में आया था। जब दिवंगत CEO स्टीव जॉब्स ने ऐपल के iPhone के लिए कुछ मजबूत और स्क्रैच रेजिस्टेंस ग्लास के लिए कॉर्निंग इंक के सीईओ वेंडेल वीक्स से संपर्क किया था। कॉर्निंग ने पहले के ‘कॉर्निंग’ के बजाय अपने ग्लास के ट्रेडमार्क के लिए ‘गोरिल्ला ग्लास’ का इस्तेमाल किया। क्योंकि यह गोरिल्ला की तरह मजबूत और सख्त था।

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गोरिल्ला की मजबूती की याद दिलाता

‘गोरिल्ला ग्लास’ नाम मटेरियल की ड्यूरेबिलिटी और स्ट्रेंथ से इंस्पायर्ड है, जो गोरिल्ला की मजबूती की याद दिलाता है। ये नाम कांच की सख्त और डैमेज-रेजिस्टेंस पर जोर देता है और इसकी तुलना जंगली गोरिल्ला की शारीरिक ताकत और लचीलेपन से की जाती है। गोरिल्ला ग्लास नाम के साथ कॉर्निंग ने ग्लास के एक्सेप्शनल ड्यूरेबिलिटी और टफनेस को रिफ्लेक्ट करने के लिए ये नाम चुना है।

फोन के डिस्प्ले को बचाए रखने में सहायक

ये रोजाना की जिंदगी में टूट-फूट को झेलने की इसकी एबिलिटी को हाइलाइट करता है। ‘गोरिल्ला ग्लास’ नाम इफेक्टिव तरीके से प्रोडक्ट की ताकत और मजबूती को कम्युनिकेट करता है, जो मार्केट में इसकी ब्रांड आइडेंटिटी में कंट्रीब्यूट करता है। दरअसल, फोन के डिस्प्ले को बचाए रखने के लिए ही गोरिल्ला ग्लास को लाया गया है। गोरिल्ला ग्लास को आपके स्मार्टफोन के डिस्प्ले पर कंपनी ही लगा के देती है।

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स्क्रैच प्रूफ नहीं होता गोरिल्ला ग्लास

कंपनी का दावा है कि ये ग्लास यूजर की डिवाइस को स्क्रैच लगने से बचाए रखेगा। हालांकि, इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है कि गोरिल्ला ग्लास लगा लेने के बाद डिवाइस पर कभी स्क्रैच ही नहीं आएंगे, क्योंकि ग्लास स्क्रैच रेजिस्टेंट बनाया गया, यह स्क्रैच प्रूफ नहीं होता है।

रेत से नहीं कर पाएगा बचाव

आपको जानकार हैरानी होगी कि चाकू से तो डिवाइस के डिस्प्ले को बचाया जा सकता है, लेकिन वहीं मामूली सी रेत आपके डिवाइस के डिस्प्ले को नुकसान पहुंचा सकती है। सैंड यानी रेत को डिस्प्ले से जरा-सा भी हाथ से साफ किया जाए तो डिस्प्ले पर स्क्रैच देखे जा सकेंगे। दरअसल, इसके पीछे एक वजह काम करती है। रेत में पाया जाने वाल क्वार्ट्ज एक कंटेंट आपके डिवाइस को नुकसान पहुंचाता है। क्वार्ट्ज की हार्डनेस Mohs Scale Of Hardness पर 7वे नंबर पर है। ऐसे में गोरिल्ला ग्लास का प्रोटेक्शन भी फेल हो जाता है।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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