सामाजिक

मृत्यु के बाद क्या होता है लोगों के आत्माओं के साथ?

मरने के बाद कहाँ जाती है आपकी आत्माएं


काफी हद तक यह संभव है कि लोगों के दिमाग में ऐसे प्रश्न जरुर आते होंगे कि जो जिन्दगी हम जी रहे हैं, क्या बस यही जिन्दगी हमारी अपनी है, फिर जन्म लेने से पहले हम क्या थे, क्या कर रहे होंगे, हम किन हालातों में रहे होंगे? मृत्यु के पश्चात हमारे शरीर का तो अंतिम संस्कार कर दिया जाता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके बाद हमारी आत्मा का क्या होता होगा? ऐसे कुछ सवाल अक्सर हमारें मस्तिष्क को सोचने पे मजबूर कर देते हैं। संभव है कि ये सवाल एक कॉमन और साधारण सोच भी हो सकती है जो सामान्य मस्तिष्क में भी उथल-पुथल मचा सकते है।

आत्मा और इंसान
आत्मा और इंसान

इन्हीं सवालों को हल करने के लिए कभी-कभी इन्सान ऐसे जवाब तक जा पहुँच जाता है जो कि वाकई किसी को भी हैरान कर सकती है। इन्सान इन चीजों की खोज में आध्यात्मिक गुरुओं के पास भी जाते हैं क्योंकि कुछ लोग अपने जीवन का उद्देश्य और मृत्यु के बाद के हालातों को समझना चाहते हैं। आइए जानते हैं कि मृत्यु के पश्चात और पुनर्जन्म से पहले आत्मा को आखिर किन हालातों का सामना करना पड़ता है?

जीवित अवस्था में इंसान के द्वारा जो भी पुण्य या पाप कृत्य करते है, अच्छे-बुरे जो भी कर्म करते हैं, मृत्यु के पश्चात हमारी आत्मा को उसी के आधार पर ठीक वैसे ही ट्रीट किया जाता है। हमें हमारे कर्मों के आधार पर ही अच्छे-बुरे हालत का सामना करते हुए, अलग-अलग लोकों में तब तक रहना पड़ता है, जब तक कि हम पुनर्जन्म लेकर दोबारा धरती पर ना आ जाएं।

सबसे ऊपर वाले लोक को ‘स्वर्गलोक’ कहते हैं। वैसे आज के माहौल को देखते हुए जानकारों का कहना है कि 100 में से मात्र 2 लोग ही ऐसे होते हैं जिनकी आत्मा मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक के दर्शन कर पाती है और वहां के सुख और ऐशोआराम भोग पाती है। अन्य आत्माएं तो सिर्फ पाताल में जाकर ही फंस जाती हैं।

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पाताल लोक

ऋषियों का कहना है कि पाताल लोक के भी सात स्तर होते हैं जहाँ अपने-अपने कर्मों के हिसाब से आत्माओं को पाताल के विभिन्न स्तरों पर भेजा जाता हैं। सबसे निचले वाले स्तर पर उन्हें भूत-पिशाच के साथ रहना पड़ता है जहां भीषण गर्मी और बहुत ही बुरे हालात होते हैं।

भुवरलोक में आत्माएं स्वेच्छा के साथ नहीं रह सकती। जिस तरह इंसान धरती पर अपनी मनमानी करता है, यह भुवरलोक में संभव नहीं है। यहां उन्हें स्वर्गलोक में रहने वाली पुण्य और पवित्र आत्माओं की निगरानी में रहना पड़ता है लेकिन अगर ये आत्माएं अपनी आध्यात्मिक मजबूती खो दें तो वे बहुत जल्दी पिशाचों और बुरी आत्माओं के नियंत्रण में आ जाती हैं। ये आत्माएं अपने ऊपर किसी बाहरी नियंत्रण को महसूस भी कर सकती हैं। स्वर्ग लोक सिर्फ वहीँ आत्माएं पहुँच सकती हैं, जो अपने जीवनकाल में योग और अध्यात्म के चरम तक जा पहुंचा हो।

इंसान धरती पर चाहे कितने ही कष्ट या बुरी परिस्थितियों में हो, लेकिन वह हालात, पाताल के हालातों से काफी हद तक बेहतर हैं। पाताल लोक में आत्माएं नकारात्मक शक्तियों के नियंत्रण में रहती हैं, जो उनसे कहीं ज्यादा ताकतवर होते हैं। पाताल लोक के जितने ज्यादा निचले स्तर पर जाएंगे, दुखों, तकलीफों और नकारात्मक हालातों की समस्या और भी ज्यादा बढ़ती जाएगी। हमें निचले स्तर पर दोबारा जन्म लेने से पहले करीब 400-500 वर्ष पहले तक रहना पड़ सकता है।

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स्वर्ग का रास्ता

पाताल लोक की प्रताड़ना से इन्सान को सिर्फ एक ही चीज बचा सकती है और वो है उसका ‘आध्यात्मिक विकास’। यहां तक कि अगर किसी इन्सान की आत्मा स्वर्गलोक में है तो स्वर्ग में बिताए जाने वाले समय को भी आध्यात्म के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। यहां तक कि मृत्यु के पश्चात भी हमारी आत्मा कितना ज्यादा आध्यात्मिक झुकाव रखती है, ये भी हमारे पुण्य कर्मों को बढ़ाकर हमें जल्द से जल्द धरती पर वापस आने का अवसर देता है।

वास्तव में, यह इतना भी आसान नहीं होता क्योंकि बुरी आत्माएं हमें किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक कार्य करने से रोकती हैं। वे इतने ताकतवर होते हैं कि उनके सामने हम पूरी तरह निष्क्रिय साबित हो जाते हैं। वहीं स्वर्गलोक की आत्माएं भी वहां की सुख-सुविधाओं में खोकर अपना पहला कर्म, जो कि ईश्वर को याद करना है, भूल जातें है। दोनों ही हालातों में नुकसान आत्माओं को ही भुगतना पड़ता है।

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आध्यात्मिक

इंसान सिर्फ अपने पिछले जन्म के बारे में ही जान सकता है। यूं तो आत्मा धरती पर ना जाने कितनी बार ही जन्म लेती है परंतु जब तक कि उसके अन्य जन्मों में उसके साथ कुछ खास ना घटित हुआ हो, वह केवल अपने पिछले जन्म के बारे में ही जान सकता है। जब बच्चे के रूप में इन्सान का जन्म होता है, उस वक़्त उसे अपने पूर्वजन्म की हर एक बात याद रहती है, लेकिन जैसे-जैसे वो दुनिया की चीजों में खोता जाता है, धीरे-धीरे सारी बातें अपने दिमाग से निकालने लगता है।

इंसान का धरती पर जन्म लेने का एकमात्र उद्देश्य होता है, उसका ‘कर्म’ और दूसरा ‘आध्यात्म’ जो कि एक जरूरी प्रक्रिया है जिसे धरती पर जन्म लेने वाली हर एक आत्मा को करनी ही चाहिए। जो ये नहीं करते, उनकी आत्माएं बाद में कष्ट भोगती है। इंसान का उसके ईश्वर के प्रति आस्था और आध्यात्म की ओर झुकाव, उन्हें बड़ी से बड़ी मुश्किलों से भी बचा सकती है, चाहे वो मुसीबत इंसान के जीवित अवस्था में आएं या फिर उनके मरने के पश्चात।

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