हर एक महिला को पता होने चाहिए उसके कानूनी अधिकार
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क्या आप जानती है अपने अधिकार?
महिलाएं अपनी कानूनी अधिकारों को लेकर इतनी सजग नहीं रहती और हमारे संविधान में कुछ ऐसे कानून भी हैं, जिसकी उन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती। शायद ही उन्हें अपने अधिकारों और अपने संविधान में बनाये गए नियम के बारे में पता होता है क्यूंकि कभी-कभी उनके साथ ऐसा कुछ हो रहा होता है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
लेकिन कई बार ऐसी स्थिति में भी वो उनकी रिपोर्ट और उन लोगों को सामने लाने की बजाए खुद में ही सब-कुछ सहती और झेलती रहती हैं।
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यहाँ बात हम सिर्फ अनपढ़ महिलाओं की नहीं कर रहे बल्कि कई पढ़ी-लिखी महिलाएं भी हैं, जिनका भी यही हाल है और अपने अधिकारों से बेखबर हैं। यहीं कारण हैं कि बात जब इन्साफ की होती है तो ऐसी महिलाएं भी पुलिस के पास जाने से भी कतराती हैं और इन्साफ की दौड़ में पीछे रह जाती हैं।
आज हम इन्हीं कानूनी अधिकारों की बात करेंगे:-
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- कानूनी मदद के लिए ’वकील’ मुफ्त में मिल जाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के मुताबिक आपराधिक घटना की शिकार महिलाओं की शिकायत दर्ज करवाने पर थाना इंचार्ज की जिम्मेदारी है कि वो इस केस को अथॉरिटी के पास भेजें और पीड़ित महिला को मुफ्त में ‘वकील’ करवाएं।
- रिपोर्ट दर्ज कराने की कोई ‘समय-सीमा’ नहीं होती। महिलाओं के लिए ये जानना बहुत जरुरी है कि पुलिस-थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाने की कोई समय-सीमा नहीं होती है, वो जब चाहें प्राथमिकी दर्ज करवा सकती हैं।
- ई-मेल के द्वारा भी दर्ज हो सकती है ‘एफआईआर’। दिल्ली पुलिस द्वारा जरी की गई गाईड-लाइन के मुताबिक महिलाएं ई-मेल से भी अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकती हैं।
- महिलाओं के पास एक ये भी सुविधा है कि वो अपना रिपोर्ट किसी भी पुलिस-थाने में करवा सकती हैं। अगर कोई महिला रेप-पीड़ित है तो उसे अपना रिपोर्ट लिखवाने के लिए उस क्षेत्र का निवासी होने की कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि वो किसी भी पुलिस-थाने जाकर अपना ‘एफआईआर’ दर्ज करवा सकती हैं।
- शाम को सूर्यास्त के बाद किसी भी महिला की गिरफ़्तारी नहीं कर सकते। सुप्रीम-कोर्ट के आदेश के मुताबिक रात को, अगर पुलिस के पास कोई महिला-कांस्टेबल भी मौजूद है तो उस परिस्थिति में भी किसी भी महिला के साथ ऐसा करना संभव नहीं हैं। और तो और अगर कोई महिला गंभीर अपराधी हो तब भी उस महिला को भी मजिसट्रेट की लिखित मंजूरी से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
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