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Utpanna ekadashi: त्रिस्पृशा एकादशी क्या है? जानें उत्पन्ना एकादशी की तिथि, व्रत और पारण समय

Utpanna ekadashi, हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना गया है। हर महीने दो एकादशी आती हैं एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। कार्तिक या मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

Utpanna ekadashi : एकादशी माता का प्राकट्य दिवस, उत्पन्ना एकादशी कब है और कैसे करें व्रत?

Utpanna ekadashi, हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व माना गया है। हर महीने दो एकादशी आती हैं एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। कार्तिक या मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि को एकादशी माता का प्राकट्य हुआ था, इसलिए यह व्रत अत्यंत पवित्र और फलदायी माना जाता है। इसे त्रिस्पृशा एकादशी भी कहा जाता है। आइए विस्तार से जानें इसकी तिथि, व्रत, पूजा-विधि, पारण और महत्व।

उत्पन्ना एकादशी 2025 कब है? (Utpanna Ekadashi 2025 Date)

पंचांग के अनुसार 2025 में उत्पन्ना एकादशी 30 नवंबर 2025 (रविवार) को मनाई जाएगी। इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु तथा एकादशी माता की पूजा करते हैं।

एकादशी व्रत पारण कब करें? (Utpanna Ekadashi Parana Time)

व्रत पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है। पारण तिथि: 1 दिसंबर 2025 पारण समय: सूर्योदय के बाद से प्रातः 9:15 बजे तक (स्थानीय पंचांग अनुसार समय में परिवर्तन संभव) ध्यान रखें कि हरि-वासर समाप्त होने के बाद ही पारण किया जाता है, यानी द्वादशी तिथि में दिन के समय।

त्रिस्पृशा एकादशी किसे कहते हैं? (What is Trisprusha Ekadashi?)

उत्पन्ना एकादशी को ही त्रिस्पृशा एकादशी कहा जाता है।
यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस तिथि का महत्व तीन तरह से माना गया है:

  1. तीन लोकों में पूजनीय – स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल
  2. तीन प्रकार के पापों का क्षय – शारीरिक, मानसिक और दैहिक
  3. तीन प्रकार के तापों से मुक्ति – आदिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक

शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी व्रत से साधक को तीनों तापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।

इस दिन प्रकट हुई थीं एकादशी माता (Birth of Ekadashi Devi)

पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर मुर दानव ने देवताओं और ऋषियों को परेशान करना शुरू किया, तब भगवान विष्णु ने उसे पराजित करने के लिए युद्ध किया। युद्ध के दौरान भगवान विष्णु ने गुफा में विश्राम किया, तभी मुर दानव वहां पहुंच गया। उसी समय भगवान के अंगों से एक दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई, जिसे एकादशी देवी कहा गया। यह देवी इतनी शक्तिशाली थीं कि उन्होंने मुर दानव का संहार कर दिया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया “हे देवी, तुम लोगों को पापों से मुक्त करोगी। तुम्हारे व्रत से भक्तों को मोक्ष और सुख मिलेगा।” इसी कारण इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है अर्थात् एकादशी माता का उत्पन्न होने का दिन।

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उत्पन्ना एकादशी व्रत कैसे करें? (Utpanna Ekadashi Vrat Vidhi)

1. व्रत संकल्प

एकादशी के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से ही सात्त्विक भोजन करें और व्रत का संकल्प लें।

2. प्रातः स्नान और पूजा

  • जल्दी उठकर स्नान करें
  • घर के पूजा स्थल में भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर रखें
  • पीला वस्त्र पहनाएं
  • फूल, धूप, दीप अर्पित करें

3. व्रत की पूजा सामग्री

  • तुलसी पत्ती
  • पंचामृत
  • पीले फूल
  • पीला वस्त्र
  • खीर, फल

4. भगवान विष्णु और एकादशी माता की पूजा

  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र जप
  • गीता का पाठ
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ

5. उपवास

भक्त इस दिन:

  • निर्जला व्रत
  • फलाहार
  • केवल जल
  • या सात्त्विक भोजन
    इनमें से कोई भी विधि चुन सकते हैं।

6. रात्रि जागरण

एकादशी की रात जागरण करना और भजन-कीर्तन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

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उत्पन्ना एकादशी व्रत के लाभ (Benefits of Utpanna Ekadashi)

  1. पापों का क्षय – त्रिस्पृशा एकादशी तीनों प्रकार के पाप दूर करती है।
  2. मानसिक शांति – मन और विचारों में स्थिरता आती है।
  3. सुख-समृद्धि – घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति – व्यक्ति का मन भगवान की ओर प्रवृत्त होता है।
  5. मनोकामना पूर्ति – भक्त की हर इच्छा पूर्ण होने की मान्यता है।
  6. मुर दानव वध के कारण – यह एकादशी विशेष रूप से रक्षा और कल्याण का प्रतीक है।

उत्पन्ना एकादशी का महत्व (Importance of Utpanna Ekadashi)

  • यह वर्ष की सबसे शक्तिशाली एकादशियों में से एक मानी गई है।
  • इसे करने से जीवन के तीनों कष्ट—आध्यात्मिक, भौतिक और मानसिक—दूर होते हैं।
  • यह व्रत मोक्ष देने वाला माना गया है।
  • जो व्यक्ति नियमित एकादशी नहीं कर पाता, उसे कम से कम उत्पन्ना एकादशी जरूर करनी चाहिए।

उत्पन्ना या त्रिस्पृशा एकादशी अत्यंत पावन और शुभ तिथि है, जिसने आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक तीनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इस दिन किया गया व्रत, पूजा और भक्ति पापों को नष्ट करने के साथ जीवन में शांति, समृद्धि और शक्ति प्रदान करता है। एकादशी माता के प्राकट्य दिवस पर किया गया व्रत भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद देता है और हर मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है।

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