St Thomas: भारत में ईसाई धर्म के प्रचारक, संत थॉमस की अद्भुत कहानी
St Thomas, संत थॉमस, जिन्हें डिडिमस थॉमस भी कहा जाता है, यीशु मसीह के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक थे।
St Thomas : संत थॉमस, प्रभु यीशु के शिष्य की जीवन यात्रा
St Thomas, संत थॉमस, जिन्हें डिडिमस थॉमस भी कहा जाता है, यीशु मसीह के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक थे। ईसाई धर्म में उनका विशेष स्थान है, क्योंकि उन्होंने न केवल प्रभु यीशु के साथ जीवन बिताया, बल्कि उनके पुनरुत्थान को लेकर अपनी शंका के कारण “संदेही थॉमस” (Doubting Thomas) के रूप में प्रसिद्ध हुए।
संत थॉमस का जन्म
St Thomas का जन्म पहली शताब्दी में हुआ था। वे एक यहूदी परिवार से ताल्लुक रखते थे और गैलीली क्षेत्र के निवासी माने जाते हैं। उन्हें प्रारंभ में “डिडिमस” कहा गया, जिसका अर्थ है “जुड़वां”। थॉमस का नाम अरामाईक भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब भी “जुड़वां” होता है।

यीशु मसीह के साथ संबंध
St Thomas उन 12 प्रेरितों में से थे जिन्हें यीशु ने अपने शिष्य के रूप में चुना था। वे साहसी और जिज्ञासु स्वभाव के थे। जब यीशु मसीह ने यहूदा में फिर से जाने का निर्णय लिया, जहां उन्हें जान का खतरा था, तो थॉमस ने अपने साथी शिष्यों से कहा – “आओ, हम भी उनके साथ मरने चलें।”
यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद जब बाकी शिष्यों ने उन्हें जीवित देखा और थॉमस को बताया, तो उन्होंने विश्वास करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक वह अपने हाथों से यीशु के घावों को नहीं छूते, तब तक वह विश्वास नहीं करेंगे। आठ दिन बाद, यीशु पुनः प्रकट हुए और थॉमस को अपने घाव दिखाए। तब थॉमस ने कहा, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” इस घटना ने उन्हें एक दृढ़ विश्वासी बना दिया।

भारत में कदम
ऐसी मान्यता है कि संत थॉमस 52 ईस्वी में भारत आए थे और उन्होंने केरल (मालाबार तट) में ईसाई धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई चर्चों की स्थापना की, जिनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं। संत थॉमस की भारत यात्रा को ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है।
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शहादत
68 ईस्वी में, जब वे भारत के चेन्नई (तत्कालीन मेलापुर) में थे, तो उन्हें वहां के स्थानीय विरोधियों द्वारा शहीद कर दिया गया। ऐसा माना जाता है कि उन्हें भाले से मारा गया था। उनकी कब्र अब “संत थॉमस माउंट” पर स्थित है, जो तमिलनाडु का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
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संत थॉमस की शिक्षाओं और योगदान
St Thomas की शिक्षाओं और योगदान से दक्षिण भारत में ईसाई धर्म की नींव पड़ी। आज भी “सेंट थॉमस क्रिस्चियन्स” या “मार थोमा क्रिस्चियन्स” समुदाय उनकी शिक्षाओं को मानते हैं। संत थॉमस का जीवन संदेह से विश्वास की यात्रा का प्रतीक है। उनका साहस, सत्य की खोज और अटल विश्वास उन्हें इतिहास का एक प्रेरणादायक पात्र बनाते हैं।
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