Shivling Parikrama: आखिर क्यों की जाती है शिवलिंग की आधी परिक्रमा? जानें जल स्थान को लांघना क्यों है वर्जित
Shivling Parikrama: भगवान शिव आदि देव हैं। शिव की पूजा शिव मूर्ति और शिवलिंग दोनों रूपों में की जाती है। लेकिन शिवलिंग पूजा के नियम अलग हैं। जिसमें कुछ मर्यादाएं भी निहित हैं। शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है। इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है।
Shivling Parikrama: हमेशा बाईं तरफ से की जाती है शिवलिंग की परिक्रमा, जलाधारी का महत्व भी समझें
परिक्रमा करने का चलन कई धर्मों में है। ऐसी मान्यता है कि परिक्रमा करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है ‘यानि कानी च पापानी ज्ञाता ज्ञात क्रतानि च, तानी सर्वाणी नश्यंति प्रदक्षिणे पदे पदे।’ यानी परिक्रमा के एक-एक पद चलने से ज्ञात-अज्ञात अनेकों पापों का नाश होता है। Shivling Parikrama लेकिन आपने गौर किया होगा कि अक्सर सभी देवी-देवताओं और मंदिरों की पूरी परिक्रमा की जाती है, वहीं शिवलिंग की आधी परिक्रमा होती है।
आपको बता दें कि भगवान शिव आदि देव हैं। शिव की पूजा शिव मूर्ति और शिवलिंग दोनों रूपों में की जाती है। लेकिन शिवलिंग पूजा के नियम अलग हैं। जिसमें कुछ मर्यादाएं भी निहित हैं। शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है। इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है। परिक्रमा के दौरान जलाधारी को लांघना मना होता है। इसके पीछे क्या धार्मिक और वैज्ञानिक वजह है। आइए जानते हैं विस्तार से-
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क्यों नहीं करनी चाहिए शिवलिंग की पूरी परिक्रमा Shivling Parikrama
शिव पुराण समेत कई शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसका धार्मिक कारण यह है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है। क्योंकि शिवलिंग की तासीर को गर्म माना जाता है। इसे ठंडक प्रदान करने के लिए जलधारा से शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। आपको बता दें कि शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। ये जल जिस मार्ग से निकलता है, उसे निर्मली या जलाधारी कहा जाता है।
हमेशा बाईं तरफ से की जाती है शिवलिंग की परिक्रमा Shivling Parikrama
शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं तरफ से की जाती है। ऐसा करने से ही शिव पूजन का विशेष फल प्राप्त होता है। बाईं ओर से शुरू करके जलहरी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करें। इसके साथ विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है। इस बात का ख्याल रखें कि परिक्रमा दाईं तरफ से कभी भी शुरू नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के साथ ही दिशा का भी ध्यान करना चाहिए। साथ ही, जलाधारी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करनी चाहिए।
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जलाधारी का महत्व Shivling Parikrama
ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग इतना शक्तिशाली है कि उस पर चढ़ाए गए जल में भी शिव और शक्ति की ऊर्जा के कुछ अंश सम्मिलित हो जाते हैं। ऐसे में जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा बढ़ जाती है कि यदि व्यक्ति इसे लांघें तो ये ऊर्जा लांघते समय उसके पैरों के बीच से उसके शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसकी वजह से व्यक्ति को वीर्य या रज संबन्धित शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। इसलिए शास्त्रों में जलाधारी को लांघना घोर पाप के समान माना गया है।
वैज्ञानिक वजह भी समझें Shivling Parikrama
वैज्ञानिक कारणों को समझने का प्रयास करें तो शिवलिंग ऊर्जा शक्ति का भंडार होते हैं और इनके आसपास के क्षेत्रों में रेडियो एक्टिव तत्वों के अंश भी पाए जाते हैं। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी मिले हैं। यदि हम भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप देखें तो पता चलेगा कि इन शिवलिंगों के आसपास के क्षेत्रों में रेडिएशन पाया जाता है। यदि आपने एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार पर गौर किया हो, तो शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में आपको समानता नजर आएगी। ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा होती है कि इसे लांघने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है। इसीलिए शिवलिंग की जलाधारी को लांघने की मनाही की गई है।
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