Sawan Somwar Vrat Katha: सावन का दूसरा सोमवार आज, व्रत रखने वाले जरूर पढ़ें ये कथा, शीघ्र विवाह के बनेंगे योग
Sawan Somwar Vrat Katha: सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने हर सोमवार का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखने और व्रत कथा सुनने का बहुत महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह के सोमवार के दिन व्रत रखने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। आज सावन का दूसरा सोमवार है। इस बार सावन के पांच सोमवार पड़ रहे हैं।
Sawan Somwar Vrat Katha: सावन सोमवार के दिन ऐसे करें देवों के देव महादेव की पूजा, हर इच्छा होगी पूरी
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने हर सोमवार का विशेष महत्व होता है। इस दिन व्रत रखने और व्रत कथा सुनने का बहुत महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह के सोमवार के दिन व्रत रखने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। आज सावन का दूसरा सोमवार है। इस बार सावन के पांच सोमवार पड़ रहे हैं। सावन सोमवार व्रत में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए सावन सोमवार व्रत करती हैं। जबकि अविवाहित युवतियां भोलेनाथ की विशेष पूजा करती हैं जिससे वे एक अच्छा वर पा सकें। पुराणों के अनुसार, हर देवता को समर्पित एक कथा है, जिसे पढ़े बिना उपवास का महत्व समाप्त हो जाता है।
सोमवार भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए सावन के दौरान उपवास करना महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि सावन सोमवार व्रत में भगवान शिव की कथा पढ़ना और सुनना बहुत महत्वपूर्ण है, अन्यथा व्रत अधूरा रह सकता है। आज सावन सोमवार का दूसरा व्रत है और इस व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अपार सुख की प्राप्ति होती है। सावन सोमवार के व्रत को करने वाले भक्तों के लिए इस कथा का पाठ करना अनिवार्य है। अगर आप भी सावन के दूसरे सोमवार के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन व्रत कथा को जरूर पढ़ें।
कुछ इस प्रकार है सावन सोमवार व्रत की कथा Sawan Somwar Vrat Katha
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था। Sawan Somwar Vrat Katha उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया।
पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई। Sawan Somwar Vrat Katha माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी।
माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक 11 वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना।
जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। Sawan Somwar Vrat Katha रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।
साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ीं तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रही। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया।
अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। Sawan Somwar Vrat Katha माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया।
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दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया। इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रह कर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए।
उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। Sawan Somwar Vrat Katha इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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