Ramayan Facts: लंका में प्रभु श्रीराम-रावण के युद्ध के बाद कहां गायब हो गई विशाल वानर सेना? एक क्लिक में जानें सब कुछ
Ramayan Facts: आज हम ये जानेंगे कि आखिर राम-रावण युद्ध के बाद वानर सेना का क्या हुआ और कहां लुप्त हो गई श्री राम की वानर सेना।
Ramayan Facts: एक लाख के आसपास थी वानरों की सेना, लंका युद्ध के बाद कभी नहीं लौटी
प्रभु श्री राम और रावण के बीच लंका में जो जबरदस्त युद्ध हुआ, उसमें एक ओर थी बलशालियों से भरी रावण की सेना, जिसे बहुत ताकतवर माना जाता था। तो वहीं दूसरी ओर राम के पास एक ऐसी सेना थी, जिसने इससे पहले शायद ऐसा कोई युद्ध लड़ा था। युद्ध में राम की सेना पारंगत भी नहीं थी। दरअसल राम की ये सेना आनन-फानन में ही बनी थी। ये वानर सैनिकों वाली सेना थी। रावण ने पहले इस सेना की हंसी उड़ाई। Ramayan Facts फिर राम की वानर सेना ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। प्रभु राम की सेना ने इस युद्ध में विजय हासिल की। लेकिन इस शानदार विजय के बाद वानर सेना का क्या हुआ, ये किसी को नहीं मालूम है। आज हम आपको अपने इस लेख में इन वानर सेनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं कि युद्ध के बाद ये वानर सेना कहां चली गई। आइए जानते हैं विस्तार से-
उत्तर रामायण में इस बात का वर्णन मिलता है कि वानर सेना का निर्माण पहली बार हुआ था और पहली बार ही वानर सेना किसी युद्ध में भाग ले रही थी। इसी कारण से स्वयं श्री राम ने वानर सेना को युद्ध के लिए उत्तीर्ण किया था। श्री राम ने स्वयं वानर सेना को अस्त्र-शास्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। वाल्मीकि रामायण में श्री राम की वानर सेना को बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह तो सभी जानते हैं कि युद्ध में रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के बाद श्री राम लक्ष्मण और माता सीता समेत अयोध्या वापस आ गए थे।
सुग्रीव के साथ वर्षों तक रही वानर सेना Ramayan Facts
वहीं, वानर सेना अपने राजा सुग्रीव के साथ पीछे छूट गई। इस वानर सेना का नेतृत्व करने वाले उस समय के महान योद्धा सुग्रीव और अंगद का क्या हुआ। रामायण के उत्तर कांड में उल्लेख है कि जब लंका से सुग्रीव लौटे तो उन्हें भगवान श्रीराम ने किष्किन्धा का राजा बनाया। जबकि बालि के पुत्र अंगद को युवराज बनाया गया। इन दोनों ने मिलकर वहां कई सालों तक राज किया। प्रभु श्री राम-रावण युद्ध में योगदान देने वाली वानर सेना सुग्रीव के साथ ही वर्षों तक रही। लेकिन इसके बाद उसने शायद ही कोई बड़ी लड़ाई लड़ी हो।
गभद्रा नदी के किनारे स्थित है किष्किंधा Ramayan Facts
हालांकि इस वानर सेना में अहम पदों पर रहे सभी लोग किष्किंधा में अहम जिम्मेदारियों में जरूर रहे। वानर सेना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नल-नील कई वर्षों तक सुग्रीव के राज्य में मंत्री पद पर सुशोभित रहे तो युवराज अंगद और सुग्रीव ने मिलकर किष्किन्धा के राज्य को ओर बढ़ाया। गौरतलब है कि किष्किंधा आज भी है। आपको बता दें कि किष्किंधा कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है।
किष्किंधा के आसपास आज भी कई गुफाएं मौजूद Ramayan Facts
ये बेल्लारी जिले में आता है जबकि विश्व प्रसिद्ध हम्पी के बिल्कुल बगल में है। इसके आसपास प्राकृतिक खूबसूरती बिखरी हुई है। किष्किंधा के आसपास आज भी ऐसे कई गुफाएं हैं और जगह हैं, जहां राम और लक्ष्मण रुके थे। वहीं किष्किंधा में वो गुफाएं भी हैं जहां वानर साम्राज्य था। इन गुफाओं में अंदर रहने की खूब जगह है। किष्किंधा के ही आसपास काफी बड़े इलाके में घना वन फैला हुआ है, जिसे दंडक वन या दंडकारण्य वन कहा जाता है।
श्रीराम ने हनुमान-सुग्रीव की मदद से किया सेना का गठन Ramayan Facts
आपको बता दें कि यहां रहने वाली ट्राइब्स को वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग। रामायण में किष्किंधा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गई है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। यहीं पर हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था। जब ये पक्का हो गया कि सीता को रावण ने कैद करके लंका में रखा हुआ है तो आनन फानन में श्रीराम ने हनुमान और सुग्रीव की मदद से वानर सेना का गठन किया।
…तो इसलिए रामेश्वरम की ओर किया कूच Ramayan Facts
इसके बाद प्रभु श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला। जबकि प्रभु श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में इकट्ठा करके सलाह मंत्रणा की। इसी वानर सेना ने फिर रामेश्वर की ओर कूच किया, क्योंकि पिछली जगह से समुद्र पार होना मुश्किल था।
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सेना में वानरों के थे अलग अलग झुंड Ramayan Facts
श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। इसके बाद विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील की मदद से वानरों ने पुल बनाना शुरू कर दिया। आपको ज्ञात हो कि वानर सेना में वानरों के अलग अलग झुंड थे। हर झुंड का एक सेनापति था। जिसे यूथपति कहा जाता था। यूथ अर्थात झुंड। लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ऋक्ष सेना का प्रबन्ध किया।
एक लाख के आसपास थी वानरों की सेना
बताया जाता है कि ये वानर सेना जुटाई गई थी। वानर सेना की संख्या करीब एक लाख के आसपास थी। ये सेना राम के कुशल प्रबंधन और संगठन का परिणाम था। विशाल वानर सेना छोटे -छोटे राज्यों की छोटी-छोटी सेनाओं व संगठनों जैसे किष्किंधा, कोल, भील, रीछ और वनों में रहने वाले वासियों आदि का संयुक्त रूप थी। माना जाता है कि लंका विजय के बाद ये विशाल वानर सेना फिर अपने अपने राज्यों के अधीन हो गई।
प्रभु श्री राम ने ठुकराया वानर राज सुग्रीव का प्रस्ताव Ramayan Facts
माना जाता है कि वानर राज सुग्रीव ने श्री राम से वानर सेना और उनके राज्य को अयोध्या के आधीन करने के लिए निवेदन किया था लेकिन प्रभु श्री राम ने उनकी स्वतंत्रता को चुना। अयोध्या की राजसभा में राम ने राज्याभिषेक के बाद लंका और किष्किंधा आदि राज्यों को अयोध्या के अधीन करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ये वानर सेना राम के राज्याभिषेक में अयोध्या भी आई। फिर वापस लौट गई।
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