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Navratri Day 2: मां ब्रह्मचारिणी को लगाएं पंचामृत का भोग, जानें मंत्र और पूजा विधि

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्णचारिणी की पूजा के दौरान उन्हें पंचामृत का भोग लगाएं। इसे घर पर बनाना बेहद की आसान है और इसके भोग से मां प्रसन्न हो जाएंगी।

Navratri Day 2: जानिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र का क्या है महत्व, और जाने उनकी कथा


Navratri Day 2: हिंदुओं का खास त्योहार यानी चैत्र नवरात्रि का पर्व आ गया है। हर साल चैत्र नवरात्रि पूरे देश में बहुत ही धूमधाम और भव्यता के साथ मनाई जाती है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है नौ रातें। चैत्र नवरात्रि दस दिवसीय त्योहार है जो मां दुर्गा के नौ अवतारों को समर्पित है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं – मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री। इस साल चैत्र नवरात्र 9 अप्रैल से शुरू हो गए हैं और ये 17 अप्रैल तक चलेंगे।

माता का भोग

नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए जाना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का दूसरा रूप कही जाती हैं जो ब्रह्मचारिणी और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। मां ब्रह्णचारिणी के भोग की बात करें तो मां को दूध औऱ दूध से बनी चीजें काफी प्रिय हैं। इसलिए मां की पूजा के बाद उनको शुद्ध पंचामृत का भोग लगाकर आप उनको प्रसन्न कर सकते हैं।

पीले रंग का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी पीला रंग बहुत प्रिय है इसलिए माता की पूजा में पीले रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। साथ ही पीले रंग के वस्त्र और फूल अवश्य अर्पित करने चाहिए। पीला रंग मां के पालन-पोषण करने वाले स्वभाव को दर्शाता है। साथ ही यह रंग सीखने और ज्ञान का संकेत है और उत्साह, खुशी और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी देवी का पूजा मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।

माता ब्रह्मचारिणी पूजा विधि

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा भी पहले दिन की तरह ही शास्त्रीय विधि से की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में पूरे परिवार के साथ मां दुर्गा की उपासना करें और माता की पूजा में पीले रंग के वस्त्र का प्रयोग करना चाहिए। माता का सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं, इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें। इसके बाद अग्यारी करें और अग्यारी पर लौंग, बताशे आदि चीजें अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में पीले रंग के फूल का ही प्रयोग करें। माता को दूध से बनी चीजें या चीनी का ही भोग लगाएं। इसके साथ ही मन में माता के मंत्र या जयकारे लगाते रहें। इसके बाद पान-सुपारी भेंट करने के बाद प्रदक्षिणा करें। फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें। घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती उतारें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पूजा पाठ करने के बाद पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। इससे माता की असीम अनुकंपा प्राप्त होगी।

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मां ब्रह्मचारिणी की कथा

शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने एक हजार साल तक तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। ठंड,गर्मी, बरसात हर ऋतु को सहन किया लेकिन किसी भी हाल में अपने तप को भंग नहीं होने दिया। इस बीच वो टूटे हुए बिल्व पत्र का सेवन करती थीं। जब उनकी कठिन तपस्या से भी भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए, तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और हजारों वर्ष तक निर्जल और निराहार तप किया। माता के नियम, संयम और कठोर तप से आखिरकार महादेव प्रसन्‍न हुए और मातारानी को पत्‍नी के रूप में स्‍वीकार किया। माता पार्वती के इस तपस्विनी स्‍वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया, जो मनुष्‍य को ये सीख देता है कि अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए व्‍यक्ति को अडिग रहना चाहिए और कठिन समय में भी उसका मन विचलित नहीं होना चाहिए, तभी उसे सफलता प्राप्‍त होती है।

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