Mahavir Jayanti Special: महावीर की शिक्षा जिसका पालन करके सुखी जीवन जीना चाहिए
Mahavir Jayanti Special, महावीर जयंती जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरी दुनिया में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 29 मार्च को मनाया जाएगा।
Mahavir Jayanti Special : महावीर जयंती का महत्व!
Mahavir Jayanti Special, महावीर जयंती जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे पूरी दुनिया में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 29 मार्च को मनाया जाएगा। यह त्योहार जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है और यह भगवान महावीर की जयंती को चिह्नित करता है। भगवान महावीर जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर थे, जिसका अर्थ है रक्षक और आध्यात्मिक गुरु। उन्हें 24वां और अंतिम तीर्थंकर माना जाता है, जिन्होंने लोगों को सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
1. आत्मा और कर्म पर विश्वास
भगवान महावीर के अनुसार, हर तत्व दो कारकों—भौतिक और आध्यात्मिक—का मिश्रण होता है। भौतिक कारक नश्वर है, जबकि आध्यात्मिक कारक शाश्वत होता है और निरंतर विकसित होता रहता है। उन्होंने कहा कि कर्म के कारण आत्मा बंधन में रहती है, और जब कर्म समाप्त हो जाते हैं, तो आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है। जब आत्मा असीम महानता प्राप्त कर लेती है, तो वह परमात्मा बन जाती है—एक शुद्ध आत्मा, जिसमें अनंत ज्ञान, शक्ति और आनंद होता है।
2. मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त करना
भगवान महावीर के अनुसार, जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि इसके लिए बुरे कर्मों से बचना, नए कर्मों को रोकना और पहले से किए गए कर्मों को नष्ट करना आवश्यक है।
उन्होंने मोक्ष प्राप्त करने के लिए पाँच व्रतों का पालन करने की सलाह दी
1. अहिंसा (Non-injury): किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना।
2. सत्य (Truth): सदा सत्य बोलना।
3. अस्तेय (Non-stealing): चोरी न करना।
4. ब्रह्मचर्य (Celibacy): शुद्ध आचरण रखना।
5. अपरिग्रह (Non-possession): भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह न रखना।
इनके अलावा, उन्होंने सम्यक आचरण, सम्यक श्रद्धा और सम्यक ज्ञान को अपनाने पर भी जोर दिया।
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3. भगवान में विश्वास न करना
भगवान महावीर ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे और न ही उन्होंने यह माना कि ईश्वर ने इस सृष्टि को बनाया है। उन्होंने कभी स्वयं को ईश्वर के रूप में प्रस्तुत नहीं किया। उनके अनुसार, यह ब्रह्मांड नष्ट नहीं होता, बल्कि केवल अपना रूप बदलता रहता है। यह विचार सांख्य दर्शन के सिद्धांतों से प्रभावित था।
4. अहिंसा (Non-violence)
भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वोपरि स्थान दिया। उनके अनुसार, प्रत्येक जीव—चाहे वह पशु हो, पौधा हो, पत्थर या चट्टान हो—जीवन से युक्त है, और हमें किसी भी जीव को शब्दों, कर्मों या विचारों से हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। हालाँकि, अहिंसा का सिद्धांत पहले से मौजूद था, लेकिन जैन धर्म ने इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया, जिससे अनेक प्रकार के पशु बलिदान जैसी प्रथाओं का अंत हुआ।
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5. महिलाओं की स्वतंत्रता
भगवान महावीर ने महिलाओं की स्वतंत्रता का समर्थन किया। उन्होंने माना कि महिलाओं को भी मोक्ष प्राप्त करने का समान अधिकार है। इस दृष्टिकोण में उन्होंने अपने पूर्ववर्ती पार्श्वनाथ का अनुसरण किया। महिलाओं को जैन संघ (Jain Sangha) में शामिल होने की अनुमति दी गई, और कई महिलाओं ने संन्यासिनी (साध्वी) और श्राविका के रूप में जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
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