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Mahalaya 2025: सितंबर 2025 में कब है महालया? जानें सही तिथि और महत्व

Mahalaya 2025, भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व होता है और यही हमारी संस्कृति को सबसे समृद्ध बनाता है।

Mahalaya 2025 : महालया का धार्मिक महत्व, क्यों है यह दिन इतना खास?

Mahalaya 2025, भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व होता है और यही हमारी संस्कृति को सबसे समृद्ध बनाता है। इन्हीं खास दिनों में से एक है महालया, जिसे शारदीय नवरात्रि से ठीक पहले मनाया जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि भावनात्मक रूप से भी बेहद खास होता है। महालया अमावस्या को पितृ पक्ष का समापन होता है और देवी पक्ष यानी नवरात्रि की शुरुआत का संकेत मिलता है। इस दिन देवी दुर्गा को धरती पर आमंत्रित किया जाता है और पितरों को श्रद्धा से याद किया जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि महालया 2025 में कब है, इसका महत्व और इससे जुड़ी परंपराएं क्या हैं।

महालया 2025 कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, महालया अमावस्या हमेशा आश्विन मास की अमावस्या तिथि को पड़ती है। साल 2025 में महालया 21 सितंबर, रविवार के दिन मनाया जाएगा। यह दिन पितृ पक्ष का अंतिम दिन होगा और इसी के साथ देवी पक्ष की शुरुआत होगी। महालया के दिन सूर्योदय से पहले विशेष पूजन, तर्पण और देवी की आराधना का विधान है।

महालया का धार्मिक महत्व

-पितरों का तर्पण – महालया को पितरों को जल अर्पित करने और तर्पण करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितरों को प्रसन्न करने से उनका आशीर्वाद संतान को मिलता है और जीवन में समृद्धि आती है।

-देवी दुर्गा का आगमन – बंगाल और पूर्वी भारत में महालया का खास महत्व है क्योंकि इसी दिन से देवी दुर्गा का धरती पर आगमन माना जाता है। यह दिन दुर्गा पूजा का आधिकारिक प्रारंभ भी कहा जाता है।

-नवरात्रि की शुरुआत – महालया नवरात्रि की पूर्व संध्या होती है। इसे देवी शक्ति की उपासना के आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महालया के दिन देवताओं ने देवी दुर्गा से राक्षस महिषासुर का संहार करने की प्रार्थना की थी। तब देवी ने नौ रूप धारण कर महिषासुर का वध किया और देवताओं को विजय दिलाई। इसी कारण महालया का दिन शक्ति की पूजा और महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के पाठ के लिए खास होता है।

महालया और पितृ पक्ष का संबंध

महालया, पितृ पक्ष की अंतिम तिथि होती है। हिंदू मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और तर्पण व पिंडदान से संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। महालया के दिन अंतिम बार पितरों को विदाई दी जाती है और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

बंगाल में महालया का महत्व

बंगाल में महालया का बहुत बड़ा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। इस दिन तड़के सुबह “महिषासुर मर्दिनी” का रेडियो प्रसारण होता है, जिसमें चंडीपाठ और देवी स्तुति का पाठ किया जाता है। लाखों लोग इस दिन सुबह-सुबह रेडियो सुनते हुए देवी दुर्गा का स्वागत करते हैं। इसे “देवी पाख” यानी देवी पक्ष की शुरुआत माना जाता है।

महालया पर किए जाने वाले प्रमुख कार्य

-तर्पण और श्राद्ध – गंगा या पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों का तर्पण करना।

-दान – गरीबों, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अनाज दान करना।

-चंडीपाठ – इस दिन देवी दुर्गा की स्तुति में चंडीपाठ करना बेहद शुभ माना जाता है।

-दीपदान – नदियों और तालाबों में दीपदान करने की भी परंपरा है, जिसे पितरों की आत्मा की शांति के लिए उत्तम कहा गया है।

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महालया क्यों है खास?

-यह दिन पितरों को विदाई और देवी का स्वागत करने का संगम है।

-यह हमें यह संदेश देता है कि हमारी जड़ें और पूर्वज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और हमें उन्हें हमेशा याद रखना चाहिए।

-यह दिन शक्ति और भक्ति दोनों का प्रतीक है।

-बंगाल ही नहीं, पूरे भारत में नवरात्रि की शुरुआत के उत्साह का यह संकेतक है।

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आध्यात्मिक दृष्टि से महालया

महालया हमें यह भी सिखाता है कि जीवन अस्थायी है, लेकिन कर्म और संस्कार अमर हैं। पूर्वजों की स्मृति में किया गया तर्पण न केवल आत्मिक शांति का मार्ग है बल्कि यह आत्मीय संबंधों की गहराई को भी दर्शाता है। देवी दुर्गा की आराधना से जीवन में शक्ति, साहस और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। महालया 2025, 21 सितंबर को मनाया जाएगा। यह दिन खास है क्योंकि इस दिन हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और देवी दुर्गा का स्वागत करते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। महालया हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए, अपने पितरों का सम्मान करना चाहिए और शक्ति की साधना करनी चाहिए। यही वजह है कि महालया केवल एक तिथि नहीं, बल्कि आस्था, श्रद्धा और उत्सव का संगम है।

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