Mahabharat Katha: चीरहरण के समय भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के पुकारने का क्यों किया था इंतजार? जानें इसके पीछे की पूरी कहानी
Mahabharat Katha: जब दुशासन से भरी सभा में द्रौपदी की साड़ी उतारने के लिए कहा गया तब द्रौपदी को अहसास हुआ कि उनपर बड़ा संकट आया हुआ है। उन्होंने अपनी लाज बचाने के लिए श्री कृष्ण का नाम पुकारा।
Mahabharat Katha: श्री कृष्ण और द्रौपदी में है दोस्ती का रिश्ता, चीरहरण के समय किसी ने नहीं की थी द्रौपदी की सहायता
महाभारत को न्याय और अन्याय के बीच रक्तरंजित युद्ध माना जाता है। कौरवों ने पांडव बंधुओं पर अनगिनत अत्याचार किए लेकिन इन अत्याचारों की पराकाष्ठा थी, द्रौपदी का चीरहरण। जब भी द्रौपदी के चीरहरण का उल्लेख किया जाता है, तो इसे नारी के विरुद्ध सबसे क्रूर अपराधों में से एक माना जाता है। द्रौपदी के चीरहरण की निंदनीय घटना के बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों को न्याय प्राप्त करने के लिए युद्ध का मार्ग दिखाया।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव को युद्ध की अनिवार्यता समझाते हुए कहा था कि ‘अब युद्ध का प्रश्न केवल सम्पत्ति, राज्य या फिर अधिकारों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब प्रश्न नारी अस्मिता और मनुष्य के प्रति हिंसक व्यवहार का भी है। इस अपमान का प्रतिशोध युगों-युगों तक एक सबक की तरह स्मरण किया जाएगा, इसलिए युद्ध करो पार्थ!” श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन के बाद पांडव द्रौपदी के चीरहरण का प्रतिशोध लेने के लिए कुरुक्षेत्र की रणभूमि में पहुंचे थे लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तो श्रीकृष्ण शुरुआत में ही क्यों नहीं आए थे।
श्री कृष्ण और द्रौपदी में है दोस्ती का रिश्ता Mahabharat Katha
आपको बता दें कि संसार में मित्रता का रिश्ता सबसे अनोखा और पवित्र माना गया है। ऐसा ही रिश्ता था भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी का। भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी को अपनी सखी मानते थे। जब भी द्रौपदी किसी मुसीबत में होतीं थीं, तब वह सिर्फ भगवान श्री कृष्ण को ही पुकारती थीं। द्रौपदी भी भगवान श्री कृष्ण को अपना सखा मानती थीं। लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि श्रीकृष्ण ने दौपदी के चीरहरण के समय उनके बुलावे का इंतजार किया। आज हम आपको अपने इस लेख में इसके पीछे की कहानी बताएंगे। आइए जानते हैं विस्तार से-
युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी पर लगाया था दांव Mahabharat Katha
गौरतलब है कि कैसे कौरव-पांडव के द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीत लिया था। उस समय दुशासन कैसे द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आए। द्रौपदी को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके साथ क्या होने वाला है। जब दुशासन से भरी सभा में द्रौपदी की साड़ी उतारने के लिए कहा गया तब द्रौपदी को अहसास हुआ कि उनपर बड़ा संकट आया हुआ है।
किसी ने नहीं की थी द्रौपदी की सहायता Mahabharat Katha
उस वक्त द्रौपदी ने वहां बैठे भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोगों को पुकारा लेकिन वे मूकदर्शक बनकर बैठे थे और पांडवों का लज्जा से सिर झुक गया था। लेकिन किसी ने द्रौपदी की सहायता नहीं की थी। उद्धव गीता या उद्धव भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण के मित्र और चचेरे भाई उद्धव ने द्रौपदी चीरहरण के विषय में श्रीकृष्ण से कई ज्वलंत प्रश्न किए हैं। श्रीकृष्ण के मित्र उद्धव पूछते हैं “हे केशव! जब हस्तिनापुर में द्रौपदी चीरहरण की इतनी वीभत्स घटना घट रही थी, तो आपने तुंरत जाकर द्रौपदी को क्यों नहीं बचाया? आपने द्रौपदी के पुकारे जाने की प्रतीक्षा क्यों की? अपने मित्र उद्धव का यह सवाल सुनकर श्रीकृष्ण ने मुस्कुरा दिया।
श्रीकृष्ण ने उद्धव के सवालों के दिए जवाब Mahabharat Katha
श्रीकृष्ण उद्धव के सवालों पर मुस्कुराते हुए बोले- “इस सृष्टि का नियम है कि विवेकवान व्यक्ति ही जीतता है। जो जीतने के लिए बुद्धि का प्रयोग करता है। दुर्योधन के पास द्युतक्रीड़ा खेलने के लिए असीम धन था लेकिन उसे द्युतक्रीड़ा खेलने का विवेक नहीं था, इसलिए उसने अपने मामा शकुनि पर विश्वास करके उन्हें अपनी तरफ से द्युतक्रीड़ा खेलने के लिए कहा। यह उसका विवेक से लिया गया निर्णय था जबकि युधिष्ठिर सहित पांचों पांडवों को यह खेल खेलना नहीं आता था लेकिन उन्होंने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और मुझे अपनी तरफ से खेलने के लिए एक बार भी नहीं कहा।
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तो इस कारण सभा में नहीं गए थे श्री कृष्ण Mahabharat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर को यह बात पता थी कि द्युतक्रीड़ा सामाजिक बुराई को बढ़ावा देने वाला खेल है लेकिन फिर भी उन्होंने इस खेल को खेलना जारी रखा। युधिष्ठिर मुझसे इस खेल को छुपाकर रखना चाहते थे। उन्हें लगता था कि उस कमरे में उपस्थित न होने पर मुझे कभी पता नहीं चलेगा कि राज्य को वापस प्राप्त करने के लिए उन्होंने बुराई के मार्ग को चुना है, इसलिए उन्होंने मुझे सभा में न बुलाए जाने तक वहां आने के लिए मना किया। युधिष्ठिर ने मुझसे वचन लिया कि मैं पांडव परिवार के बुलाए जाने पर ही सभा में आऊंगा। इस कारण मैं सभा में नहीं गया। युधिष्ठिर ने अपने दुर्भाग्य को स्वयं ही बुलावा दिया।”
अदृश्य रूप में आकर की द्रौपदी की रक्षा Mahabharat Katha
द्रौपदी चीरहरण के दौरान जब दुशासन द्रौपदी को केश से घसीटकर सभा में ला रहा था, तो द्रौपदी दुशासन से ही जूझती रही। द्रौपदी ने खुद को छुड़ाने का बहुत प्रयास किया लेकिन असफल रही। इसके बाद जब दुशासन द्रौपदी की साड़ी खींचने लगा, तो द्रौपदी की बुद्धि-विवेक जागृत हुआ और द्रौपदी ने हरि, हरि, अभयम कृष्णा, अभयम’ का नाम जापकर श्रीकृष्ण को सभा में उपस्थित होने के लिए पुकारा। खुद को पुकारे जाने पर श्रीकृष्ण ने विलम्ब नहीं किया और अपनी सखी को बचाने सभा में उपस्थित हो गए। इस तरह श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दिया वचन भी निभा लिया और अदृश्य रूप में आकर अपनी सखी द्रौपदी की रक्षा भी की।
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को दिया था वचन Mahabharat Katha
आपको बता दें कि भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था। तब उस दौरान भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली कट गई थी और उसमें से निरंतर खून बह रहा था। तब द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान श्री कृष्ण की अंगुली पर पट्टी बांधा था। तब भगवान कृष्ण ने कहा था कि मैं इस बात को हमेशा याद रखूंगा और भविष्य में इस साड़ी के टुकड़े की कीमत जरूर चुकाऊंगा।
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