भगवान शिव को सावन में क्यों चढ़ाते है जल?
सावन महीने का नाम सुनते है आंखों के चारों ओर हरियाली सी घूमने लगती है। देश में लगभग हर जगह हर-हर महादेव का जयकारा गूंजने लगता है। गैरुवे रंग के कपड़े और हाथ कांवड लिए लोग भगवान शिव को जल चढ़ाकर प्रसन्न करते है।
देश के कई हिस्सों में शिव मंदिरों में सोमवार के दिन जल चढ़ाया जाता है। कहते है कि भगवान शिव को सोमवार का दिन बहुत पसंद था। माना यह भी जाता है कि सोमवार के दिन जलाभिषेक करने से भगवान भक्तों से जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं।
इसके साथ ही कहा यह भी जाता है कि जब समुद्र मंथन के बाद जब चंद्रमा राहू से बचकर भाग रहे थे तो शिव की उनकी रक्षा की थी और तभी से शिव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया था।
भगवान शिव
चलिए आज आपको बताते है सावन में शिव भगवान को जल क्यों चढाया जाता है।
देश कई हिस्सों में सोमवार को भगवान शिव को पवित्र जल चढ़ाया जाता है। लेकिन भगवान शिव को सावन में ही जल चढ़ाया जाता है इसके पीछे एक भी एक कारण है। माना जाता है कि धरती के विस्तार और उसकी सुदंरता को बढाने के लिए देवताओं में लीला रची थी। इसी दौरान दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इंद्र को लक्ष्मी से हीन होने का श्राप दे दिया।
भगवान विष्णु ने इंद्र को श्राप मुक्त करने के लिए असुरो के साथ मिलकर एक समुद्र मंथन करवाया जिसमें उसने दैत्यो को अमृत का लालच दिया। यह समुद्र मंथन क्षीर सागर यानि की हिंद महासागर में हुआ था। मंथन के दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला था। जिससे सारे देवी देवता जलने लगे। देवी देवताओं की इस जलन को कम करने के लिए भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। जिसकी वजह से उनके कंठ में जलन होने लगी।
देवी देवताओं ने भगवान शिव जलन को कम करने के लिए उनके ऊपर जल डालना शुरु कर दिया। विष पी लेने की वजह से उनका कंठ नील पड़ गया था। जिसकी वजह से उनका नाम नीलकंठ पड़ा। लगातार जल डालने की वजह से उनकी जलन कम होने लगी। इसलिए सावन के महीने में भगवान शिव को जल चढ़ाया जाता है।