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Bonalu Festival: जब हर गली गूंजे ‘जय महाकाली’ से, जानिए क्या है बोनालू का पर्व?

Bonalu Festival, भारत डाइवर्सिटी से भरा देश है और हर राज्य की अपनी अलग परंपराएं और त्योहार होते हैं।

Bonalu Festival : बोनालू 2025, आस्था, परंपरा और संस्कृति का संगम

Bonalu Festival: भारत डाइवर्सिटी से भरा देश है और हर राज्य की अपनी अलग परंपराएं और त्योहार होते हैं। इन्हीं में से एक है तेलंगाना राज्य का प्रसिद्ध त्योहार ‘Bonalu’। यह त्योहार विशेष रूप से हैदराबाद, सिकंदराबाद और तेलंगाना के अन्य हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। यह शक्ति की देवी महाकाली को समर्पित त्योहार है, जिसे हर साल जुलाई-अगस्त में मनाया जाता है।

Bonalu Festival
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बोनालू का अर्थ और महत्व

‘Bonalu’ शब्द ‘बोना’ से आया है, जिसका अर्थ होता है ‘भोजन’। इस त्योहार में महिलाएं देवी को प्रसाद के रूप में घर का बना विशेष भोजन चढ़ाती हैं। इसमें चावल, दूध और गुड़ से बनी खीर या पकवानों को पीतल या मिट्टी के बर्तन में सजाया जाता है, जिसे सिर पर रखकर देवी के मंदिर तक ले जाया जाता है। इस प्रसाद को ‘बोनम’ कहा जाता है। Bonalu Festival की परंपरा के पीछे एक ऐतिहासिक कथा जुड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि 19वीं सदी में प्लेग की महामारी फैलने के दौरान उज्जैन के महाकाली मंदिर में प्रार्थना की गई थी कि अगर महामारी समाप्त हो जाती है तो हैदराबाद में देवी का विशेष पूजन किया जाएगा। महामारी के शांत होने के बाद लोगों ने अपनी श्रद्धा से Bonalu Festival का आयोजन शुरू किया।

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त्योहार की भव्यता और परंपराएं

बोनालू केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दौरान महिलाएं पारंपरिक साड़ी, गहने और चूड़ियों से सजती हैं। वे सिर पर बोनम लेकर देवी के मंदिर जाती हैं और विशेष गीत गाकर मां का आशीर्वाद मांगती हैं। पुरुष भी इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। वे ‘पोटरलू’ नामक पात्र में देवी के प्रतीक को लेकर नृत्य करते हैं।

Bonalu Festival
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Bonalu Festival का आयोजन

Bonalu Festival के मुख्य आयोजन गोलकोंडा किला, लाल दरवाजा महाकाली मंदिर और उज़ैन महाकाली मंदिर (सिकंदराबाद) में होते हैं। हर सप्ताह अलग-अलग मंदिरों में आयोजन होते हैं और अंतिम दिन ‘रंगम’ नामक नृत्य अनुष्ठान होता है जिसमें एक महिला देवी की अवतार बनकर भविष्यवाणी करती है। Bonalu Festival तेलंगाना की संस्कृति, आस्था और शक्ति उपासना की परंपरा को जीवंत करता है।

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