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Terror Funding Case: दिल्ली HC ने यासीन मलिक के खिलाफ जारी किया नोटिस, निचली अदालत ने ठुकराया था NIA का अनुरोध

गौरतलब है कि एक निचली अदालत ने 24 मई, 2022 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

Terror Funding Case: टेरर फंडिंग मामले में निचली अदालत ने सुनाई थी यासीन मलिक को आजीवन कारावास की सजा

Terror Funding Case: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आतंकी फंडिंग मामले में मौत की सजा की मांग करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका पर जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ने नेता यासीन मलिक को नोटिस जारी किया है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 9 अगस्त, 2023 को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए यासीन मलिक के लिए पेशी वारंट जारी किया है। इससे पहले, कोर्ट में याचिका दायर करते हुए एनआईए ने कहा कि यासीन मलिक टेरर फंडिंग का मास्टरमाइंड है। एनआईए ने UAPA केस में यासीन को फांसी की सजा देने की मांग की। जांच एजेंसी ने कहा कि उसके खिलाफ मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर श्रेणी में माना जाए।

2022 में सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा

पटियाला हाउस कोर्ट ने 2022 में अलगाववादी नेता यासीन मलिक को टेरर फंडिंग में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पिछले साल निचली अदालत में सुनवाई के दौरान यासीन मलिक ने कहा था, “मैं किसी चीज की भीख नहीं मांगूंगा। मामला इस अदालत के समक्ष है और मैं इसका फैसला अदालत पर छोड़ता हूं। मैं फांसी को स्वीकार करूंगा”

निचली अदालत ने सुनाई आजीवन कारावास की सजा

गौरतलब है कि एक निचली अदालत ने 24 मई, 2022 को जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

एनआईए ने अपनी याचिका में क्या दलीलें दी हैं

मलिक की सजा बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में एनआईए ने कहा कि अगर इस तरह के ‘खूंखार आतंकवादियों’ को दोषी होने पर मृत्युदंड नहीं दिया जाता है, तो आतंकवादियों को मृत्युदंड से बचने का एक रास्ता मिल जाएगा। एनआईए ने कहा कि उम्रकैद की सजा आतंकवादियों द्वारा किए गए अपराध के अनुरूप नहीं है।

निचली अदालत ने ठुकराया दिया था एनआईए का अनुरोध

मृत्युदंड के लिए एनआईए के अनुरोध को खारिज करते हुए निचली अदालत ने कहा था कि मलिक का उद्देश्य भारत से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था। निचली अदालत ने कहा था, ‘इन अपराधों का उद्देश्य भारत पर प्रहार करना और भारत संघ से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था। अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड़ में किया गया था। अदालत ने कहा था कि मामला ‘दुर्लभतम’ नहीं है, जिसमें मृत्युदंड की सजा दी जाए।

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