क्या महागठबंधन का गठबंधन बना रह पाएगा?
कहीं टूट तो नहीं जाएगा महागठबंधन?
बिहार की राजनीति को लगता है किसी की नजर लग गई है। जब भी कोई छोटी से घटना होती है तो यह बिहार की राजनीति के लिए बहुत बड़ा शब्ब बन जाती है। बात छोटी हो या बड़ी मीडिया बहुत जल्द ही यह अनुमान लगने लग जाती है कि कही महागठबंधन टूटने की कगार पर तो नहीं आ गया है?
महागठबंधन की प्रक्रिया तो साल 2014 के बाद ही शुरु हो गया था
महागठबंधन के बनने की प्रक्रिया तो साल 2014 में देश में सत्ता बदलने के साथ ही शुरु हो गई थी। साल 2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। यह ऐसा दौर था जब बिहार की राजनीति डर के घेरे में घेरी हुई थी, कि कहीं सदियों से बिहार की राजनीति में राज कर रही क्षेत्रिय पार्टियां का अंत न हो जाएं। इसलिए बिहार की दो विपरीत पार्टियों ने भाजपा का सामना करने के लिए हाथ मिला लिया। ताकि भाजपा बिहार में अपने पंख न फैला सकें। हुआ भी कुछ ऐसा ही। इसे ही तो राजनीति में महागठबंधन कहते है जब दो विपरीत पार्टियां तीसरी पार्टी के डर से एक हो जाएं।
साल 2015 में बिहार की क्षेत्रिय पार्टी जनता दल युनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल ने हाथ मिला लिया, और तय हुआ कि अगर महागठबंधन की जीत हुई तो जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे और राजद को भी अहम पद दिया जाएगा।
बिहार की 243 सीटें के लिए चुनाव कराएं गए। सबसे ज्यादा सीटों के साथ लालू प्रसाद की पार्टी राजद सबसे आगे रही। राजद को 80 सीटें मिले। जदयू के 71 और महागठबंधन की कांग्रेस को 27 सीटें मिली। वहीं दूसरी ओर बीजेपी को 53 सीटें नसीब हुई।
सबसे पहले शराब बंद कराई
सत्ता में आने के बाद जदयू के नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और लालू के बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री का ताज मिला।
सत्ता में आने बाद ही नीतीश कुमार ने सबसे पहले बिहार में शराब बंद करवाई। इसके अलावा भी कई अहम फैसले लिए।
लेकिन अब तो लगता है बिहार की राजनीति किसी संकट से गुजर रही है। महागठबंधन की सरकार में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर घोटालों की आंधी से आ गई है। लालू, उनके बेटे और बेटी सबों पर घोटालों का आरोप लग रहा है। क्या इन घोटालों का बिहार की राजनीति पर असर पड़ेगा? क्या बिहार की राजनीति का महागठबंधन टूट जाएगा।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक राग में नहीं महागठबंधन
हाल में ऐसी कई घटनाएं हुई है जिससे यह लगने लगा है। बहुत जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने वाले है। राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार बिहार से ताल्लुक रखते है। सत्ता पक्ष के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे। वहीं दूसरी ओर विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार बिहार की बेटी है। अब राष्ट्रपति चुनाव के लिए महागठबंधन में परेशानी चल रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रामनाथ कोविंद के पक्ष में है। वही दूसरी ओर महागठबंधन की दूसरी पार्टियां मीरा कुमार के समर्थन में हैं।
वही दूसरी ओर बिहार में लगातार सीबीआई के छापे मारी से राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के परिवार घिरा हुआ है। इस लिस्ट में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का भी नाम आ रहा है।
तेजस्वी का नाम आने के बाद से ही उनके इस्तीफे के स्वर गूंजने लगने लगे हैं। लेकिन फिलहाल इस बारे में मुख्यमंत्री ने कुछ नहीं कहा है।
जीरो टॉयलेंरस की नीति अपनाएंगे
लेकिन अगर तेजस्वी और लालू प्रसाद पर लगे आरोप साबित हो जाते है तो क्या होगा? नीतीश कुमार ने पहले ही कहा था कि वह भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉयलेंरस की नीति अपनाएंगे।
अगर तेजस्वी को उनके पद से हटना पड़ता है। तो क्या बिहार का महागठबंधन टूट जाएगा। और अगर टूट जाएगा तो क्या होगा? क्या बिहार में राजनीति संकट पैदा हो जाएगा?
सीटों की गिनती के हिसाब से राजद के पास जदयू से ज्यादा सीटें है। कांग्रेस के विधायकों की संख्या भी अच्छी खासी है। तो क्या नीतीश एक बार फिर बीजेपी का हाथ थाम लेगें। क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प बचता ही नहीं है। इससे पहले भी नीतीश कुमार की जदयू पार्टी एनडीए में शामिल थी। लेकिन बाद में वह वहां से अलग हो गई। तो क्या एक बार फिर ऐसा हो सकता है?
अब देखना है कि आगे क्या होता है।
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