क्यों ज़रूरत है आज लोगो को अपनी मानसिकता बदलने की
सोच बदलो, परिस्तिथि अपने आप बदलेगी
21वीं सदी में रह कर ये तो पता चल गया कि कैसे कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। लोगो के विचारों और कर्मो में इतना अंतर है कि कोई चाह के भी इसे खत्म नहीं कर सकता। अब देखा जाए तो सोच तो बस लोगो के सामने अपनी अच्छी छाप छोड़ने के लिए होते है। पर लोग ये भूल जाते है कि बातो से ज़्यादा समाज काम पर ध्यान देता है।
हवा में बाते तो कोई भी कर देता है, मुश्किल तो खुद को साबित करना होता है। अब जैसे की लोग कूड़ा, कूड़ेदान में डालने की जगह सड़क पर दाल देते है और फिर शिकायत करते है कि देश कितना गंदा। बात करते है लड़कियो को बराबरी का हक़ देने की, पर अंत में उसके कपडे देख उसके चरित्र के बारे में बता देते है। परेशान होते है प्रदुषण के कारण, पर दिवाली पर पटाखे फोड़ना और गाड़ियो का अनावश्यक व अत्याधिक प्रयोग करना कम नही करते।
हम कितनी ही बार जाने अनजाने में लोगो को उनकी जीवन शैली के आधार पर उनकी हरकतों और उनके चरित्र के बारे में सब कुछ तय कर लेते है। ये सोचते ही नही की शायद दूसरा व्यक्ति भी हमे गौर से देख रहा हो। अगर आज हम मांग करते है एक लौकिक, समान और शांत देश की, तो क्यों हम खुद ही धर्म और लिंग के आधार पर एक दूसरे को खाने को दौड़ते है? क्यों हम खुद ही नाम, जाती, रंग, और रूप के आधार पर भेद भाव कर देते है और इंसानियत के बारे में भूल ही जाते है?
आज के समय की मांग है कि हम कुछ करे। सिर्फ बात करने से बात नही बनेंगी। अगर हमारी सोच बदल रही है, तो उसके साथ ज़रूरी है कि हमारे कर्म भी हमारी सोच अनुसार चले। हर एक व्यक्ति अगर एक छोटा कदम भी उठाये तो उसका नतीजा बहुत ही बड़ा होगा। और जिन लोगो की सोच अभी भी वही पुरानी घिसी पिटी है तो उन्हें ज़रूरत है अपना नज़रिया बदलने की, और वक़्त के साथ उस सांचे में ढलने की।
लोगो को और उनकी सोच को अपनाना सीखे। कोई एक दूजे से अलग नहीं है। अगर और कुछ समानता ना भी हो तो एक बात तो साफ़ तौर से समान है कि हम सब इंसान है। और अगर खुद के लिए या दूसरे लोगो के लिये कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम अपने आगे आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचे। ऐसे वातावरण में, जहाँ लोगो की सोच ही दम घोंट दे, वहाँ वो कैसे जी पाएंगे?
सोचिएगा!