क्यों हर साल मनाई जाती है वाल्मीकि जयंती,क्या है इस दिन की अहमियत?
वाल्मीकि जी का 1300 साल पुराना मंदिर जहाँ हुई थी रामायण की रचना
महर्षि वाल्मीकि जी को भारत के महान ऋषियों में से एक माना जाता है. महर्षि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञान था और वह एक कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। विश्व का पहला महाकाव्य रामायण लिखकर उन्होंने आदि कवि होने का गौरव पाया। प्रत्येक वर्ष से अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है और इस दिन महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म हुआ था । इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को मनाई जाने वाली है। भारत में महर्षि वाल्मीकि की जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है और इस दिन देश के कई हिस्सों में छुट्टी भी रहती है।
जाने क्या है इस दिन की अहमियत ?
महर्षि वाल्मीकि जी का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवे पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था। ऐसा माना जाता है कि वाल्मीकि के भाई भृगु थे । महर्षि वाल्मीकि का नाम उनके कठोर तप के कारण पड़ा था। एक समय था जब महर्षि वाल्मीकि ध्यान में मग्न थे और उनके शरीर को दीमकों ने घेर लिया था । जब उनकी साधना पूरी हुई तो वह दीमकों के घर से बाहर निकले. दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है, इसलिए इनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ा।
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वाल्मीकि जी का 1300 साल पुराना मंदिर जहाँ हुई थी रामायण की रचना
महर्षि वाल्मीकि को समर्पित एक छोटा सा मंदिर तिरुवन्मियूर, चेन्नई में स्थित है। इसे 1300 साल पुराना बताया जाता है। माना जाता है कि थिरुवन्मियूर का नाम थिरु-वाल्मीकि-ऊर से पड़ा यानी वाल्मीकि के नाम पर। इस मंदिर को भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है। बताया जाता है कि यही वो जगह है जहां वाल्मीकि ने रामायण की रचना के बाद भगवान शिव की उपासना की थी।
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