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Tailang Swami: 300 साल के चमत्कारी संत तैलंग स्वामी, जानें इनके जीवन के बारे में

Tailang Swami: जानें स्वामी तैलंग की जयंती का इतिहास और महत्व 

Tailang Swami: श्री तैलंग स्वामी जी एक हिंदू योगी और रहस्यवादी व्यक्ति थे जो अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। ऐसा माना जाता है कि श्री तैलंग स्वामी जी भगवान शिव के अवतार थे और उन्हें “वाराणसी के चलते-फिरते भगवान शिव” के रूप में जाना जाता है।

तैलंग स्वामी का जन्म आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में कुंभिल पुरम (जिसे अब पुसतिरेगा तहसील की कुमिली के नाम से जाना जाता है) नामक स्थान में हुआ था। इनके माता-पिता दोनों बहुत बड़े शिव भक्त थेजिसके कारण इन के बचपन का नाम शिवराम था। इनकी जीवनी लिखने वालों तथा इनके शिष्यों के मध्यइनकी जन्मतिथि और इनकी लंबी उम्र की अवधि पर मतभेद है। एक शिष्य जीवनीकार के अनुसार शिवराम का जन्म 1529 में हुआ थाजबकि अन्य जीवनी लेखक के अनुसार इनका जन्म 1607 में हुआ था। इनकी जीवनीबिरुद राजू रामाराजू ने अपने छः खंड प्रोजेक्ट के अंतर्गत एक खंड में “आंद्रा योगुलू” शीर्षक के अंतर्गत लिखी है।

तैलंग स्वामी की शिक्षा

तैलंग स्वामी आन्ध्र प्रदेश के निवासी थे। वे योगशास्त्र में निष्णात थे और उन्होंने अपने समय के बड़े-बड़े योगियों से इस विद्या की शिक्षा ग्रहण की थी। उनका मानसिक झुकाव बाल्यावस्था से ही वैराग्य की तरफ था और वे अविवाहित रह कर धर्म साधना करने के इच्छुक थेपर माता के बहुत अधिक आग्रह करने पर उन्होंने विवाह कर लिया और जब तक माता जीवित रही वे गृहस्थाश्रम का निर्वाह करते रहे। पर जैसे ही माता की मृत्यु हुई और उन्होंने श्मशान में जाकर उसका अन्त्येष्टि संस्कार कियाउसी समय उन्होंने अपना संसार त्याग का निश्चय सब प्रकट कर दिया। उन्होंने श्मशान भूमि से घर लौटना भी स्वीकार नहीं किया और अपने हिस्से की समस्त जायदाद अपने सौतेले भाइयों को देकर वहीं कुटी बना कर रहने लगे। उस समय उनकी अवस्था 48 वर्ष की थी और नाम शिवराम था।

तैलंग स्वामी का स्वभाव

दशनामी के एक सदस्य के आदेश पर शिवरामबनारस में मठवासी का जीवन व्यतीत करते समय त्रिलंगा स्वामी के नाम से जाने जाने लगे। 1887 में अपनी मृत्यु तक वाराणसी मेंवे अस्सी घाटहनुमान घाट में ऋषि वेदव्यास के आश्रमदशाश्वमेध घाट सहित विभिन्न स्थानों पर रहे। वे अक्सर सड़कों या घाटों पर नग्न अवस्था में एक बच्चे की भांति निश्चिंत अवस्था में घूमा करते थे। उन्हें कथित तौर पर गंगा नदी के घाटों में तैरते देखा जाता था। वह बहुत कम और कई बार बिल्कुल ही नहींबोला करते थे।

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बहुत सारे लोग उनसे अपने कष्टों को दूर करने के लिएउनकी यौगिक शक्तियों के विषय में सुनकरउनकी तरफ आकर्षित हुए। वाराणसी में रहने के दौरान संतों के रूप में उन्होंने कई समकालीन बंगाली लोगों से मुलाकात की और उन्होंने उनका वर्णन भी किया। जिसमें लोकनाथ ब्रह्मचारीबेनीमाधव ब्रह्मचारीभगवान गांगुलीरामकृष्णविवेकानंदमहेंद्र नाथ गुप्तलाहिड़ी महाशयस्वामी अभेदानंदभास्करानंदविशुद्धानंद और विजय कृष्ण तथा साधक बामाखेपा प्रमुख रूप से रहे हैं।

तैलंग स्वामी की जयंती

तैलंग स्वामी की जयंती पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि या पौष माह में चंद्रमा के शुक्ल चरण के ग्यारहवें दिन मनाई जाती है।

त्रैलंग स्वामीजिन्हें तैलंग स्वामी या तैलंग स्वामी के नाम से भी जाना जाता हैअपनी यौगिक शक्तियों और बहुत लंबे जीवन के लिए प्रसिद्ध थे। तैलंग स्वामी जयंती 2023 में जनवरी को मनाई जाएगी। माना जाता है कि तैलंग स्वामी 300 वर्षों तक जीवित रहे। लोग कहते हैं की वह एक सिद्ध थे जिन्होंने कई चमत्कार किए। अधिकांश विद्वानोंशोधकर्ताओंगैर-विश्वासियों और संशय नदियों को उनकी वास्तविक उम्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लेकिन वे सभी इस बात से सहमत हैं कि वह दो शताब्दियों से अधिक समय तक जीवित रहे।

तैलंग स्वामी जयंती का इतिहास और महत्व

तैलंग स्वामी ने अपनी मां की सलाह के बाद माता काली की साधना की। उनकी माँ ने उन्हें काली मंत्र की दीक्षा दी और एक काली मंदिर में गहन ध्यान किया। 1669 में अपनी मां की मृत्यु के बादतैलंग स्वामी ने उनकी राख ध्यान के लिए रख ली। उन्होंने एक श्मशान घाट के पास साधना की। 20 साल की गंभीर और गहरी तपस्या के बाद उनकी मुलाकात भागीरथ नंद सरस्वती से हुई। तैलंग स्वामी फिर वाराणसी चले गए और एक भिक्षु के रूप में जीना शुरु किया तब उन्हें तैलंग स्वामी के रूप में जाना जाने लगाइससे पहले उनको शिवराम के नाम से जाना जाता था।

तैलंग स्वामी एक रहस्यवादी थे जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए निर्वाण की स्थिति तक पहुँचने में विश्वास करते थे। कहा जाता है कि वह बिना डूबे गंगा के पानी में लेटने में सक्षम थेऔर बिना सांस लिए लंबे समय तक पानी के नीचे चले गए थे। उनके दर्शन और शिक्षाओं को बाद में उनके शिष्य उमाचरण मुखोपाध्याय ने अपने लेखन में दर्ज किया।

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त्रैलंग स्वामी की आध्यात्मिक शक्तियां

एक बार परमहंस योगानन्द के मामा ने उन्हे बनारस के घाट पर भक्तों की भीड़ के बीच बैठे देखा। वे किसी प्रकार मार्ग बनाकर स्वामी जी के निकट पहुंच गए और भक्तिपूर्ण उनका चरण स्पर्श किया। उन्हे यह जानकर महान आश्चर्य हुआ कि स्वामी जी का चरण स्पर्श करने मात्र से वे अत्यंत कष्टदायक जीर्ण रोग से मुक्ति पा गये।

काशी में त्रैलंग स्वामी एक बार लाहिड़ी महाशय का सार्वजनिक अभिनन्दन करना चाहते थे जिसके लिये उन्हे अपना मौन तोड़ना पड़ा। जब त्रैलंग स्वामी के एक शिष्य ने कहा कि आप एक त्यागी संन्यासी है। अत: एक गृहस्थ के प्रति इतना आदर क्यों व्यक्त करना चाहते हैउनर रूप में त्रैलंग स्वामी ने कहा था मेरे बच्चे लाहिड़ी महाशय जगत जननी के दिव्य बालक है। मां उन्हे जहां रख देती हैवही वे रहते है। सांसारिक मनुष्य के रूप में कर्तव्य का पालन करते हुए भी उन्होंने मनुष्य के रूप में वह पूर्ण आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया है जिसे प्राप्त करने के लिये मुझे सब कुछ का परित्याग कर देना पड़ा। यहां तक कि लंगोटी का भी।

तैलंग स्वामी की मृत्यु

26 दिसंबर 1887 सोमवार की शाम को तैलंग की मृत्यु हो गई। दशनामी संप्रदाय के भिक्षुओं के अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों के अनुसार घाटों पर खड़े शोकग्रस्त भक्तों की उपस्थिति में उनके शरीर को गंगा में सलील समाधि दी गई।

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Roshni Mishra

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