फ़ेमिनिस्ट नहीं ह्यूमनिस्ट बनो
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फ़ेमिनिस्ट नहीं ह्यूमनिस्ट बनो
फ़ेमिनिस्ट नहीं ह्यूमनिस्ट बनो:-माना कि आजकल औरतों के साथ हो रहे अत्याचार बढ़ रहे हैं। और औरतों को हमेशा से ही छोटा और पिछड़ा हुआ माना गया है। उन्हें ना ही बराबरी का हक़ मिलता है और ना ही ज़िन्दगी जीने की आज़ादी। आज 21वीं सदी में औरतें समाज से लड़ कर आगे आ रही है, अपनी एक पहचान बना रही है।
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पर अक्सर हर कोई ये भूल जाता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते है। जब मर्द लोग अपने बारे में बात करते है तो अपने ही बारे में बात करते चले जाते है। वहीँ जब औरतें अपने बारे में बताना शुरू करती है, तो रूकती ही नहीं है। महिलाओं का समर्थन कर रहे लोगो को अक्सर फ़ेमिनिस्ट कहा जाता है। ये लोग औरतों के हक़ के लिए लड़ते है और उनके लिए आवाज़ उठाते है।
हम क्यों ये भूल जाते है कि ये समाज सिर्फ मर्दो या सिर्फ औरतों का नहीं बना है। ये इन दोनों जातो से बना है। कहीं लिंग भेद होता है, तो कहीं जाती भेद। आज के इस दौर में भी एक इंसान को उसके नाम या उसके लिंग से परखा जाता है और उनके साथ वैसा ही व्यवहार होता है।
तो हम क्यों सिर्फ उन औरतों की आवाज़ उठाते है और हर उस वव्यक्ति की आवाज़ को अनसुना कर देते है जो मर्द हो या किसी और जात का हो? अत्याचार हर किसी के साथ होता है, तो क्यों हम उन्ही की सुनते है जिसको हम सुनना चाहते है? क्यों हम उन्ही की मदद करते है जो खुद की मदद कर सकते है?
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भारत में ना जाने ऐसे कितने ही लोग है जो अपनी परेशानी हम तक पहुँचा भी नहीं सकते। हमें ज़रूरत है इस सन्नाटे को सुनने की। हर वह चुप इंसान को आवाज़ देने की। सिर्फ औरतों या एक श्रेणी की मदद करने की नही पर सबकी मदद करने की। भेद-भाव ख़त्म करने की और अपनी छोटी सोच से ऊपर उठने की। सिर्फ फ़ेमिनिस्ट नहीं पर ह्यूमनिस्ट बनने की।