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Groom against wedding rituals: जब प्यार के लिए इन दूल्हों ने तोड़े समाज के सारे रिवाज, कहानियाँ जो कर देंगी आपको Inspire

Groom against wedding rituals: कभी दहेज न लेकर तो कभी अपनी पत्नी के पैर छूकर ये दूल्हे पढ़ा रहे हैं समानता की सीख


Highlights:

  • हमारे देश में शादी मात्र दूल्हा – दुल्हन के बीच नहीं होती। विवाह को दो परिवारों का मेल कहा जाता है।
  • इसके अलावा शादियों में कई परंपराएं होती हैं जो समय के साथ अपने अंदर बहुत सारे बदलाव देखती हैं।
  • कुछ ऐसे बदलाव होते हैं जिन्हें समाज में एक्सेपटेंस मिलना ज़रा मुश्किल लगता है लेकिन कुछ हिम्मती लोग वो कर गुजरते हैं जो एक मिसाल कायम कर देते हैं।

Groom against wedding rituals: राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती हैं। आंकड़े ये बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8, 233 मामले सामने आये हैं।

इसके अलावा  देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जिनमें किसी – न – किसी वजह से शादी टूटने की बात आती है।

हमारे देश में शादी मात्र दूल्हा – दुल्हन के बीच नहीं होती। विवाह को दो परिवारों का मेल कहा जाता है। इसके अलावा शादियों में कई परंपराएं होती हैं जो समय के साथ अपने अंदर बहुत सारे बदलाव देखती हैं। इन परंपराओं में कुछ ऐसी परंपरा हैं जिनका मतलब और उनकी उपस्थिति समझ में आता है लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी भी हैं जिसे मानने का कोई सेंस नहीं समझ आता। खैर, ये अपनी – अपनी च्वाइस की बात है। हर किसी को अपनी पसंद को अपनाने की पूरी आजादी है।

लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे चेहरे होते हैं जो इन परंपराओं के खिलाफ जाकर एक ऐसी मिसाल कायम कर देते हैं जो समाज में एक आईना दिखाता है।

आपने कई ऐसी सेलिब्रिटीज़ को देखा होगा जो शादी की वर्षों पुरानी मान्यताओं से ज़रा आगे बढ़कर अपने होने वाले पार्टनर और प्यार को अधिक तवज्जो दे चुके हैं।

उदाहरण के तौर पर बॉलीवुड अभिनेता राजकुमार राव और अभिनेत्री पत्रलेखा 11 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी के बंधन में बांधते हैं। दोनों की शादी में एक बहुत ही खूबसूरत लम्हा देखने को मिलता है। राजकुमार राव पत्रलेखा से सिंदूर लगाने की मांग करते हैं। इस पर अभिनेत्री हँसती हैं और उनकी यह ख्वाहिश पूरी कर देती हैं।

इनके अलावा बॉलीवुड अभिनेत्री दिया मिर्जा अपनी शादी में किसी मेल पंडित को नहीं बल्कि फीमेल पंडित को बुलाती हैं। कैटरीना कैफ और विक्की कौशल की रॉयल वेडिंग में कटरीना की ब्राइडल एंट्री में फूलों की चादर उनकी बहनों ने पकड़ी थी, जबकि आम शादियों में यह भाई करते हैं।

हम में से कई लोग यह सोचते हैं कि ये तो फिल्म स्टार हैं यह कुछ भी करें अच्छा ही लगता है।

लेकिन हम अगर आप से कहें कि फिल्मी सीतारे ही नहीं हम में से ही कुछ हिम्मती लोग ऐसे हैं जो अपने प्यार और पार्टनर के सम्मान के आगे कुछ और नहीं देखते।

आज हम कुछ ऐसी कहानियां आपके सामने पेश कर रहे हैं जो समाज में हम सबके लिए एक मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसी कहानियां जो उदाहरण तो पेश कर ही रही हैं बल्कि उन सबके मुँह पर तमाचा भी मार रही है जो लड़का – लड़की, ऊँच – नीच में अंतर करते हैं।

पहली कहानी है मध्यप्रदेश के बैतूल की। जहाँ एक ओर देश के विभिन्न हिस्सों से अक्सर दहेज न मिलने पर लड़के वालों द्वारा बारात वापस ले जाने की खबरें आती रहती हैं। वहीं दूसरी ओर  मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में विवाह करने आये एक लड़के ने ऐसी मिसाल कायम की है जो काबिले तारीफ है।

दूल्हे ने न ही सिर्फ लड़की वालों से दहेज लेने से इंकार कर दिया बल्कि वधू पक्ष से कोई तोहफा तक नहीं लिया। यह विवाह बेहद सादगी से हुई। जिसके चर्चे देश भर में हुए।

सूत्र ये बताते हैं कि शादी में आये सारे मेहमान अपनी तरफ से कोई – न – कोई गिफ्ट लेकर आये और साथ ही लड़की वालों ने भी तोहफे के तौर पर कपड़े, गहने और बर्तन लड़के वालों के सामने रखा। लेकिन दूल्हे ने यह सब लेने से साफ मना कर दिया। दूल्हे ने कहा कि उसे दहेज में एक रुपया भी नहीं चाहिए। इसके बाद जो दूल्हे ने कहा वह सुनने और उससे सीख लेने लायक है। सारा सामान वापस लौटाते वक्त दूल्हा दुल्हन पक्ष से कहता है कि वो लोग उसे अपनी बेटी सौंप रहे हैं , उसके लिए यही दहेज है।

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इस तरह की घटना अगर समाज में होती है तो न ही सिर्फ इससे जागरूकता फैलती है बल्कि लड़की वालों के ऊपर अपनी बेटी को एक अच्छे, समृद्ध घर में देने से पहले दहेज के रूप में मोटे रकम जुटाने का प्रेशर भी खत्म हो जाता है।

हमें जरूरत है अपने समाज में ऐसे ही लड़कों की जो शादी दहेज के लिए नहीं लड़की के लिए करे।

चलिए अब आपको दूसरी कहानी के माध्यम से हमारे देश के पितृसत्तात्मक समाज के कुछ पहलुओं से रूबरू करवाते हैं। हमारे देश में एक रिवाज है कि महिलाओं को अपने पति के पैर छूने पड़ते हैं। क्योंकि भई पति तो परमेश्वर है न और परमेश्वर मतलब भगवान तो भला महिलाएं पति का पैर कैसे नहीं छुएंगी। जब बात इक्वालिटी की आती है तो इसमें पति के पैर छुने जैसी बात कहाँ से आ गई और वैसे भी हमने पत्नियों के पैर छूते हुए तो पति को किसी परम्परा में नहीं देखा।

देखो भाई हम हैं 21वीं सदी के लोग, विश्वास रखते हैं तो समानता में। यह आप अक्सर लोगों को बोलते या सोशल मीडिया पर धाक जमाने के लिए पोस्ट करते देखते होंगे, लेकिन समानता क्या होती है इसे दिखाया है हाल ही में शादी के बंधन में बंध रहे एक दूल्हे ने।

चलिए आपको पूरी कहानी बताते हैं।

पति के पैर छूने जैसी परंपरा हमारे देश में सालों से चली आ रही है। बहुत से लोगों को इस रिवाज से कोई एतराज नहीं है। चलिए हम यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझते हुए हर इंसान को अपनी च्वाइस के तहत जीवन जीने का अधिकार है यह मान लेते हैं। लेकिन कहीं – न – कहीं सच्चाई यह है कि यह रिवाज एक तरफा है।

इतिहास में जाएं तो बेसिकली पैर छूने का अर्थ है अपने से बड़ों को इज्जत देना। आज से सालों पहले हमारे समाज में ऐसा होता था कि लड़कियां लड़कों से उम्र में छोटी होती थी इसलिए आदर के भाव को प्रतीत करने के लिए दुल्हनें दूल्हे के पैर छूती थी, लेकिन अब वक्त बदल गया है। अब उम्र में अधिक फासला नहीं होता, कई कपल्स एक ही उम्र के होते हैं और यहाँ सबसे बड़ी बात है कि हम जेंडर के आधार पर आदर निर्धारित नहीं करते हैं। इसलिये यह जरूरी है कि इस तरह की परम्पराओं को बढ़ावा न दिया जाए।

चलिए अब मुद्दे पर आते हैं।

इस रिवाज को लेकर हाल ही में एक कपल ने एक शानदार मिसाल कायम की है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल होता है जिसमें एक दूल्हा शादी में अपनी दुल्हन के पैर छूता नज़र आता है। ऐसा करने पर तुरंत ही दुल्हन उसे गले लगा लेती है।

यहाँ पर अब लोग बोलेंगे कि दूल्हे ने यहाँ दुल्हन के पैर छुए अब समानता कहाँ हैं। आप कुछ भी सोचें उससे पहले हम बताना चाहते हैं कि यहाँ दूल्हा दुल्हन के पैर छूकर यह जता रहा है कि वह दोनों समान हैं। वह किसी परंपरा जिसमें लड़की को उससे कमतर बताया जाए उसका मोहताज नहीं है।

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बारात में तो बहुत नाचे होंगे आप, लेकिन क्या आप ऐसी बारात में नाचे हैं जिस बारात की शान दूल्हा नहीं बल्कि दुल्हन हो। जी हाँ, हमारी तीसरी कहानी कुछ ऐसी ही है।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक ऐसी बारात निकली जिसमें दुल्हन घोड़ी पर सवार होकर आई और दूल्हे ने दुल्हन का स्वागत आरती  की थाली से किया।

नॉर्मली ऐसा होता है कि दूल्हा बारात लेकर आता है और दुल्हन दूल्हे का स्वागत आरती  की थाली से करती है। लेकिन यह शादी ज़रा अलग थी।

इस शादी को मिसाल बनाने के लिए जितनी तारीफ के लायक दूल्हा – दुल्हन हैं उतने ही दुल्हन के पिता भी हैं।एक ओर घोड़े पर सवार दुल्हन को देख पूरा समाज जहाँ तरह – तरह की बाते कर रहा था, वहीं दूसरी ओर दूल्हा आरती की थाली लेकर अपनी दुल्हन की बारात का इंतज़ार कर रहा था।

इन सबमें दुल्हन के पिता ने उनका पूरा साथ दिया।

उन्होंने शुरू से ही अपनी बेटी को बिल्कुल अपने बेटों की तरह पाला और बिना कोई भेदभाव किए घर में बहन – भाइयों में समानता को बरकरार रखने की पूरी कोशिश की। वह कहते हैं इस कृत्य से समाज में यह संदेश जाता है कि लड़का – लड़की दोनों बराबर हैं। इसके अलावा वह बेटी को दान का पात्र नहीं मानते और वह कन्यादान के सख्त खिलाफ हैं।

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वहीं दूल्हा अपनी दुल्हन की बारात का बेसब्री से इंतज़ार करता है और बारात आने पर अपनी दुल्हन का आरती की थाली से स्वागत करता है। इस कदम से दुल्हे ने समाज के उन लड़कों के लिए एक उदाहरण पेश किया है जो अपनी पत्नी को ज़िम्मेदारी से अधिक कुछ नहीं समझते।

भारतीय समाज में पत्नी को अर्धांगिनी का दर्जा दिया गया है जिसे बेटर हॉफ भी कहा जाता है।

हाल ही में एक विडियो इंटरनेट पर खूब वायरल हुई। इस विडियो में शादी के सात वचन लेने के समय दूल्हा पंडित की एक बात का बड़े अलग अंदाज़ में जवाब देता है।

सात वचन की परंपरा के वक्त पंडित दुल्हन से कहते हैं आज से वह दूल्हे की अर्धांगिनी हैं, अर्धांगिनी मतलब आधे की हिस्सेदार। इस पर दूल्हा बोल उठता है ‘आधी की क्यों पूरे की हैं’। इसके बाद दूल्हा कहता है दुख सारे मेरे हैं और सुख सारे इनके। यह एक तरफ सुनने में तो बहुत प्यारा है ही साथ ही यह दर्शाता है कि कैसे लड़के अब समाज की उन हर पुरानी रीति – रिवाजों को अपने प्रेम और पार्टनर की इज्जत के लिए चैलेंज कर रहे हैं।

 

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इस तरह की कहानियां बताती हैं कि किसी भी शादी में प्यार और पार्टनर की इज़्जत से बढ़कर कोई परंपरा नहीं हैं।

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