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Bihar Art : बिहार की वो कलाएं जिन्होंने महिलाओं को दिलाई पहचान! इतिहास पढ़ कर आप हो जायेंगे ‘Inspire’

BiharArt: बिहार की आन – बान और शान वो शिल्प कलाएं जो आपको जाननी चाहिए


Highlights-

. कला और संस्कृति से उजागर यह प्रदेश 110 सालों से भारत का गौरव बना हुआ है।

. मधुबनी पेंटिंग को छोड़ दें तो बिहार के अलावे लोग बिहार के और किसी कला को नहीं जानते।

. टिकुली कला, टेराकोटा शिल्प, सिक्की शिल्प, सुजनी कला बिहार की पहचान हैं।

Bihar Art : बिहार भारत के उत्तर – पूर्व में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज्य है। कला और संस्कृति से उजागर यह प्रदेश 110 सालों से भारत का गौरव बना हुआ है। 1912 से पहले बिहार बंगाल प्रोविंस का हिस्सा था इसके अलावा ओडिशा और झारखंड भी इसमें शामिल थे। 1936 में बिहार ओडिशा से और सन् 2000 में झारखंड से अलग होकर बिहार भारत के नक्शे पर एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। 22 मार्च को प्रत्येक वर्ष बिहार दिवस मनाया जाता है।

बिहार कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। बिहार के कला और कलाकार देश – विदेश में बिहार को गौरवान्वित कर रहें हैं लेकिन बिहार की हस्तशिल्प उन कथाओं में से हैं जो समय के साथ भूली जा रही है। लोगों को बिहार के हस्तशिल्प के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। मधुबनी पेंटिंग को छोड़ दें तो बिहार के अलावे लोग बिहार के और किसी कला को नहीं जानते। आज इस आर्टिकल के माध्यम से आपको हम बिहार के शिल्पकला के बारे में बतायेंगे।

मौर्यकाल में बिहार की शिल्पकला अपने चरम पर थी। इतिहास में झाँके तो अंग्रेजों के भारत आगमन समय तक बिहार की अर्थव्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण अंग थे – कृषि, शिल्पकारी एवं व्यापार। लेकिन अंग्रेजों ने अपने शासन के शुरुआत में ही इन तीनों अंगों पर हमला बोलकर विदेशी चीजों को बढ़ावा दिया। परिणाम स्वरूप बिहार के शिल्पकारों की अवनति होनी शुरू हो गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार के परम्परागत शिल्पों को पुनर्जीवित करने की कोशिश प्रारंभ हुई।

1. टिकुली कला

भारतीय संस्कृति में स्त्रियाँ सौंदर्य के प्रतीक के रूप में अपने माथे पर चंदन, कुमकुम, सिंदूर से बिंदी या टिकुली चित्रित करती आ रही हैं। समय के साथ – साथ इस श्रृंगार के परिवर्तन के क्रम में टिकुली कला का जन्म हुआ। 19वीं शताब्दी के मध्य तक सोना, चाँदी, काँच के टुकड़ों पर टिकुली कला का निर्माण होता था। धीरे – धीरे यह कला लकड़ियों पर आ गई और सोने की जगह एनामेल पेंट का उपयोग किया जाने लगा। टिकुली कला में पौराणिक कथाओं एवं आधुनिक विषय यथा नृत्य, नारी, प्रकृति के दृश्य का चित्रांकन किया जाता है। प्रदेश की राजधानी पटना इसका मुख्य केंद्र है।

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2. टेराकोटा शिल्प

टेराकोटा शिल्प बिहार के सबसे प्राचीन एवं सर्वाधिक उपयोगी शिल्पों में से एक है। सहज उपलब्धता और अपने लचीले गुणों के कारण मिट्टी शुरू से ही बिहार में दैनिक जरूरतों और कला के माध्यमों से लोकप्रिय रही है। टेराकोटा शिल्प में मिट्टी के विभिन्न – विभिन्न शैलियों के बर्तन और अनेक वस्तुएं बनाई जाती हैं। दरभंगा, मधुबनी और भोजपुर इस कला के मुख्य केंद्र हैं।

3. मिथिला पेंटिंग

मिथिला पेंटिंग सिर्फ पेंटिंग न होकर भरी पूरी संस्कृति है जिसमें कला – साहित्य के सभी रस एवं तत्व प्रमुखता से शामिल हैं। मिथिला पेंटिंग की कुछ खास विशेषताएं हैं। इस चित्रकला में अंकित बड़ी – बड़ी आँखें, नुकीली नाक, पतली कमर आदि सर्वत्र एक सी दृष्टिगत होती है। इस कला का मुख्य केंद्र बिहार का मधुबनी जिला है।

4. सिक्की शिल्प

बिहार के जीवन शैली की एक बड़ी पहचान है सिक्की शिल्प। सिक्की जिसे वहाँ की बोलचाल की भाषा में कुश भी कहते हैं। यह मिथिलांचल क्षेत्र में उपजने वाली एक सुनहरी घास है जिसे वहाँ की महिलाओं ने शिल्प का रूप दे दिया है। सिक्की से बने खिलौने, गमला, डलिया, मैट, टेबल आदि बहुत ही सुनहरे एवं आकर्षक होते हैं। सिक्की शिल्प का मुख्य केंद्र बिहार का मधुबनी जिला है।

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5. सुजनी कला

बिहार की वस्त्र शिल्प परम्परा में सुजनी शिल्प का प्रमुख स्थान है। जन्म के बाद बच्चों के उपयोग के लिए सुजनी शिल्प की शुरुआत हुई थी। परम्परागत रूप से पुराने धोती – साड़ी के टुकड़ों को एक साथ सिलकर सुजनी बनाई जाती है। वर्तमान समय में सुजनी के बेस कपड़ों में काफी विविधता देखी जा सकती है। अब पुरानी धोती या साड़ी के साथ – साथ रंगीन पोपलीन, सिल्क एवं मारकीन इत्यादी का भी उपयोग होने वाला है। बिहार में दानापुर, भोजपुर और मुजफ्फरपुर इसके प्रमुख निर्माण केंद्र हैं।

 

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