Alimony Law: तलाक के समय पत्नी का भत्ता हक या लिमिटेड? जानें पूरी कानूनी जानकारी
Alimony Law, गुजारा भत्ता (Alimony / Maintenance) वह राशि होती है जो तलाक या अलगाव के समय पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है ताकि वह अपने जीवन यापन, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को बनाए रख सके।
Alimony Law : पत्नी की गुजारा भत्ता मांग, कितना मांग सकती है और कोर्ट क्या तय करता है
Alimony Law, गुजारा भत्ता (Alimony / Maintenance) वह राशि होती है जो तलाक या अलगाव के समय पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है ताकि वह अपने जीवन यापन, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को बनाए रख सके। इसका उद्देश्य पत्नी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है, खासकर तब जब उसने अपने पति के परिवार की देखभाल की हो या परिवार के लिए काम किया हो। गुजारा भत्ता केवल पत्नी तक सीमित नहीं है। भारतीय कानून के तहत पति, पत्नी और बच्चों सभी के लिए अलग-अलग परिस्थितियों में भत्ता दिया जा सकता है।
पत्नी कितनी गुजारा भत्ता मांग सकती है?
बहुत से लोग सोचते हैं कि पत्नी तलाक के समय कितनी भी राशि मांग सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है। कानून ने इसके लिए कुछ सीमाएँ और दिशानिर्देश तय किए हैं।
1. भारतीय दंड संहिता और विवाह कानून
-हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, पत्नी तलाक के समय भत्ता मांग सकती है।
-भारतीय दंड संहिता (IPC) और कोर्ट के नियम यह तय करते हैं कि भत्ता पति की आय और संपत्ति के अनुरूप होना चाहिए।
-यानी अगर पति की कमाई सीमित है, तो अदालत कोई अत्यधिक राशि नहीं तय करेगी।
2. कोर्ट द्वारा तय करने वाले कारक
कोर्ट गुजारा भत्ता निर्धारित करते समय कई पहलुओं पर विचार करता है:
-पति और पत्नी की आय और संपत्ति
-पत्नी की शिक्षा और कार्यक्षमता
-बच्चों की संख्या और उनकी जरूरतें
-शादी में पत्नी की भूमिका और योगदान
-पति की वित्तीय क्षमता और जीवन स्तर
इसलिए पत्नी केवल यह दावा नहीं कर सकती कि उसे “इतना ही चाहिए”। कोर्ट की मंजूरी और वास्तविक परिस्थितियाँ तय करती हैं।
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गुजारा भत्ता की सीमा
कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि भत्ता उचित और न्यायसंगत हो।
-अल्पकालिक भत्ता (Interim Maintenance): तलाक के दौरान अस्थायी गुजारा भत्ता दिया जाता है।
-स्थायी भत्ता (Permanent Maintenance): तलाक के बाद जीवनभर या तय अवधि के लिए दिया जा सकता है।
-कोर्ट कभी भी पति की आय से अधिक राशि नहीं तय करता।
उदाहरण के लिए, अगर पति कमाई में सीमित है, तो कोर्ट अत्यधिक भत्ता नहीं देगा, भले ही पत्नी अधिक मांग करे।
क्या पत्नी हमेशा भत्ता पाने की हकदार होती है?
कानून के अनुसार, हर पत्नी भत्ता पाने की हकदार नहीं होती।
-यदि पत्नी स्वयं आर्थिक रूप से सक्षम है या शादी में उसका योगदान सीमित था, तो भत्ता कम या नहीं दिया जा सकता।
-तलाक के दौरान या बाद में यदि पति आर्थिक रूप से कमजोर है, तो अदालत भी सीमित भत्ता दे सकती है।
-विशेष परिस्थितियों में, यदि पत्नी ने पति के परिवार की देखभाल नहीं की या खुद संपन्न है, तो भत्ता अस्वीकार भी किया जा सकता है।
बच्चों के लिए भत्ता (Child Support)
तलाक के समय केवल पत्नी ही नहीं, बल्कि बच्चों के लिए भी भत्ता तय किया जाता है।
-बच्चों का भत्ता उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए दिया जाता है।
-यह भत्ता अलग से तय होता है और पिता की आय और संपत्ति पर निर्भर करता है।
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कोर्ट प्रक्रिया
गुजारा भत्ता पाने के लिए पत्नी को अदालत में याचिका दायर करनी होती है।
-याचिका में पति की आय, संपत्ति और परिवार की जानकारी दर्ज करनी होती है।
-कोर्ट इसके बाद दोनों पक्षों की सुनवाई करता है।
-अदालत तय करती है कि कितनी राशि और कितने समय के लिए भत्ता दिया जाएगा।
यदि पति भत्ता देने में असमर्थ है, तो कोर्ट संपत्ति या अन्य साधनों से भत्ता दिलाने का आदेश दे सकता है।
क्या भत्ता लेने के लिए टाइम लिमिट होती है?
हिंदू विवाह अधिनियम और अन्य कानूनों के तहत भत्ता पाने के लिए कोई सख्त समय सीमा नहीं है, लेकिन यथासंभव जल्द याचिका दायर करना उचित होता है। तलाक के तुरंत बाद याचिका दायर करना सामान्य है। यदि याचिका लंबे समय तक नहीं दी गई, तो अदालत इसे कम महत्व दे सकती है। पत्नी तलाक के समय कितनी भी राशि मांग सकती है, यह सच नहीं है। भारतीय कानून यह सुनिश्चित करता है कि भत्ता उचित, न्यायसंगत और पति की आर्थिक क्षमता के अनुरूप हो। अदालत दोनों पक्षों की स्थिति, बच्चों की जरूरत और परिवार के योगदान को ध्यान में रखकर भत्ता तय करती है।
-गुजारा भत्ता तलाक के समय पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है।
-राशि कोर्ट तय करती है, केवल मांग करने से नहीं मिलती।
-पत्नी की योग्यता, पति की आय और बच्चों की जरूरतें मुख्य कारक हैं।
-भत्ता अस्थायी और स्थायी दोनों रूपों में हो सकता है।
इसलिए, तलाक के समय पत्नी कोर्ट की सहायता से उचित भत्ता प्राप्त कर सकती है, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि “जितना भी चाहे” जैसी कोई सुविधा कानून में नहीं है।
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