8 सामाजिक जंजीरे जो महिलाओं को तोड़ने की ज़रूरत है
8 सामाजिक जंजीरे जो औरतों को तोड़ने की ज़रूरत है
हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे है जहाँ औरतों पर हर श्रेणी में उत्तम रहने का दबाव रहता है। औरत और पूर्णता एक ही सिक्के का पहलु माना जाता है। अब वक़्त है हर उस सोच बदलने की, जो एक औरत को खुले होते हुए भी बेड़ियों में जकड कर रखती है।
हम अक्सर औरतो को सही कपडे पहनने को बताते है। पर देखा जाए तो हर औरत को ये हक़ होना चाहिए की वह अपनी इच्छानुसार कुछ भी पहन सके और अपने ढंग से खुद को ढ़ाल सके।
अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना
हम 21वीं सदी में जी रहे है। ये समय ऐसा है जहाँ लोगो को अपना हक और अपनी हदों का पूरा ज्ञात है। यहाँ हम किसी पर भी रोक टोक कर उन्हें काबू नहीं कर सकते। उसी प्रकार महिलाओं पर रोक लगाने से कुछ नहीं होगा। उनको अपना हक पता है और अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने में हिचकिचाहट केसी?
देर रात बहार रहना
समय हमारा चरित्र नहीं बताता। औरते चाहे काम से या अपनी मर्ज़ी से घर से देर रात निकले, उसका चरित्र और उसकी आज़ादी पर सवाल उठाने का हमें कोई हक नहीं देती। हम स्वतंत्र देश में रहते है, जहाँ हर व्यक्ति के पास अपनी आज़ादी है।
पीरियड्स में मंदिर जाना
ये तो हमारे जीवन का एक इसा हिस्सा है, जिससे कोई नज़र नहीं फेर सकता। और इस समय में मंदिर जाना या कोई भी पावन काम करना अशुभ होता है। अरे, ये तो एक औरत के ज़िन्दगी का अभिन्न अंग होता है।
लड़को से हँस के बात करना
हँसना किसी भी व्यक्ति की सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता हैं। तो क्यों एक लड़की का किसी भी लड़के से हँस कर बात करना बुरा है? दूसरे लिंग के व्यक्ति से बात करना ये निष्कर्ष नही देता की वह लड़की चरित्रहीन है या ख़राब है।
एक औरत के लिए उसकी आज़ादी आज उतनी ही ज़रूरी ही जितनी एक मर्द के लिए अपना अहँकार। इन बेड़ियों को खुद ही खोल दिया जाए तो ही अच्छा है वरना एक आम औरत कब दुर्गा से काली का रूप में परिवर्तित हो जाए कोई नहीं जान पाएंगे।