काम की बात

अफगान महिलाओं की दास्तान : जज, डॉक्टर बनने से लेकर घरों मे ‘Lock’ रहने तक!

हर किसी ने अपने राज में अफगान महिलाओं पर चलाया अपना डंडा


तालिबान के कब्जे के बाद ही लगातार लोग अफगनिस्तान से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। देश के बाहर निकलने की जद्दोजहद में लोग अपनी जान भी गंवा दे रहे हैं। पिछले सोमवार की काबुल एयरपोर्ट की वह तस्वीर तो आपको याद होगी ही। जहां तालिबान से निजात पाने के लिए दो लोग फ्लाइट पर लड़कर जाते वक्त अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।

इस सप्ताह के बाद भी अफगनिस्तान की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया है। अफगान नागरिक हर हाल में इससे निजात पाना चाहता हैं। इस बीच तालिबान ने यह साफ कर दिया है कि विदेशियों की देश छोड़ने की तारीख को 31 अगस्त से आगे नहीं बढाई जाएगी। इस बात की जानकारी मंगलवार को तालिबान ने प्रेस कांफ्रेंस करके दी है। वहीं दूसरी ब्रिट्रेन, अमेरिका समेत अन्य देशों ने यह कहा है कि 31 तारीख यह संभव नहीं है कि सभी नागरिकों और सेना को बाहर निकाला जा सके।

इस बीच अब सबसे ज्यादा परेशानी अफगनिस्तान के नागरिकों को हो रही है। जो तालिबान के खिलाफ लगातार विरोध करते नजर आ रहे हैं। पिछले सप्ताह ही हमने देखा था कि अफगान महिलाएं राष्ट्रपति भवन के पास तालिबान के खिलाफ नारेबाजी करती नजर आई। जलालाबाद में अफगान जनता पर तालिबान के झंडा का विरोध करते हुए स्वतंत्रता दिवस के दिन अफगनिस्तान के झंडा को ऊंचा किया। जिसके विरोध में तालिबान ने फायरिंग भी की। लेकिन इस फायरिंग ने लोगों के हौसले को कमजोर होने नहीं दिया है।

मलाला ने ब्लॉग के जरिए व्यक्त की व्यथा

तालिबान के कब्जे के बाद अफगनिस्तान के नागरिक जमकर विरोध कर रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच अभी भी महिलाओं को सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। तालिबान का सामना कर चुकी नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई ने उस भयावह समय को याद करते हुए अफगान महिलाओं को लेकर चिंता व्यक्त की है। इस वक्त मलाला अमेरिका के बोस्टन में फेशियल परालिसिस की सर्जरी करा रही है। साथ ही वहां से तालिबान की क्रूरता पर भी नजर टिकाई हुई है। इस दौरान मलाला ने एक ब्लॉग लिखकर पोस्ट किया है। जिसकी चर्चा बहुत ज्यादा हो रही है।

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अपने ब्लॉग पोस्ट में मलला ने लिखा है “मैं नौ साल बाद भी महज एक गोली से ऊबर नहीं पाई हूं, अफगनिस्तान के लोगों ने पिछले चार दशकों में लाखों गोलियां झेली हैं। मेरा दिल उन लोगों के लिए तड़प उठता है जिन्होंने मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इनके नाम हम भूल जाएंगे या हमें कभी पता नहीं चलेगा।“

वह आगे लिखती है कि “मैं दुनिया भर के राष्ट्र प्रमुखों को खत लिख रही हूं, उनसे फोन पर बता कर रही हूं। अफगनिस्तान में अभी भी जो महिलाओं के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट हैं मैं उनसे संपर्क कर रही हूं पिछले दो हफ्तों में हमने कई लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचाने में मदद की है लेकिन मुझे पता है कि हम सभी की मदद नहीं कर सकते हैं।“

मलाला लगातार अफगान महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर चिंता व्यक्त कर रही है। मीडिया में भी लगातार पहले के तालिबान के शासनकाल और अमेरिकी सेना के दौर की कुछ तस्वीरें, किस्से लगातार पेश किए जा रहे हैं जिसमें यह बताने की कोशिश की जा रही है कि एक बार फिर अफगान महिलाएं तालिबान के राज में गुलामों की जिदंगी जीने पर मजबूर हो जाएगी। 1996 से 2001 तक उनकी जिदंगी कैसी थीऔर उसके बाद उनकी स्थिति में कैसे बदलाव आया और अब एक फिर महिलाओं की जिदंगी में क्या बदलाव आने वाला है। उन्हें जिस बात का डर था आखिर में वही हुआ।

डॉक्टर बनने से लेकर स्कूल बंद होने तक की कहानी

लेकिन अफगनिस्तान की महिलाओं की स्थिति हमेशा ऐसी नहीं थी। बीबीसी की एक खबर के अनुसार किसी समय में काबुल में महिलाएं मिनी स्कर्ट में घुमती दिखाई देती थी। लेकिन धीरे-धीरे चीजों में बदलाव होता गया, जिसका नतीजा यह है कि आज महिलाओं को काम तो करने दिया जाएगा लेकिन शरिया कानून के तहत ही काम करने की अनुमति है।

मंगलवार को तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि जब तक महिलाओं की सुरक्षा की उचित व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक उन्हें घर पर ही रहना चाहिए। यह एक अस्थायी प्रक्रिया है। वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार (UNHRC) की प्रमुख मिशेल बाखलेट का कहना है कि “तालिबान का महिलाओं और लड़कियों के साथ बर्ताव खतरे की एक मूलभूत लाल फकीर है।“

अफगनिस्तान की महिलाओं के इतिहास के बारे में बात करे तो 1880-1901 तक शासक अब्दुर रहमान खान ने अपने शासन काल में महिलाओं के जिदंगी में सुधार के लिए कई काम किए थे। जिसमें मुख्य रुप से पति की मौत के बाद उसके भाई से महिला की शादी की परंपरा को खत्म करना, शादी की उम्र में इजाफा करना, साथ ही महिलाओं को तलाक लेने का भी अधिकार दिया गया। लेकिन यह सभी चीजें शहरी इलाकों तक ही सीमित थी। ग्रामीण इलाकों में लोग रुढ़ीवादी थे।

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बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार साल 1928 में काबुल महिलाओं को मिलने वाली आजादी को लेकर कबायली नेताओं ने ग्रामीण इलाकों में विरोध शुरु कर दिया। इस बीच लड़कियों को शादी की उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 साल तो कर दी गई लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्कूल बंद कर बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा गया।

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50 के दशक के बाद सोवियत संघ के राज के दौरान महिलाओं को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने के तरफ ध्यान दिया गया। जिसके तहत लड़कियां नर्स, डॉक्टर और टीचर बनने लगी। अब महिलाओं के अधिकारों में और इजाफा हुआ। साल 1964 में तीसरे संविधान में महिलाओं को राजनीति में भी आने का मौका दिया गया। जिसका नतीजा यह हुआ कि पहली महिला मंत्री को स्वास्थ्य विभाग दिया गया।

70 के दशक तक महिलाएं यूनिर्वसिटी, संसद, अस्पताल हर क्षेत्र में काम करने लगी। इसके बाद मुजाहिदीन का समय आया जहां महिलाओं के साथ क्रूरता का शिकार होना पड़ा। रोज हिंसक घटनाओं की खबरें आने लगी। महिलाओं को अब पूरे कपड़ों में रहना का फरमान दे दिया गया। 10 साल की उम्र से ऊपर की लड़कियों को स्कूल जाने के रोक दिया गया।

वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर पर हमले के बाद अमेरिका का अफगनिस्तान पर नियंत्रण हो गया। इसके बाद भी अफगान महिलाओं को थोड़ी राहत मिली। महिलाएं नौकरी करने के साथ-साथ राजनीति में भी आगे आई। लेकिन एक बार जिस जद्दोजहद से अफगान महिलाओं ने अपने जीवन में बदलाव किए हैं उसमें वह दोबारा से पिछड़ने वाली है।

पिछले सप्ताह ही देखा गया था तालिबान के कब्जे के बाद महिलाओं को पहले काम पर जाने के रोका गया उसके बाद उन्हें जाने की अनुमति दी गई। बाद में फिर उन्हें रोक दिया गया। एक महिला एंकर ने जब उसे ऑफिस जाने के रोका गया तो उसने सोशल मीडिया पर मदद भी मांगी थी। लेकिन इससे महिलाएं रुकी नहीं है अफगनिस्तान की तरक्की शील महिलाएं आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी को एक अच्छा जीवन देने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

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